पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५७६

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विजष्ट्रयत्म १० क्वणन विशेप---यदि काव्य में किसी एक पद का अर्थ लगाने के लिये क्लेश-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. दु छ । कष्ट । यथा । वेदना । पहले या पीछे के दो तीन पदो तक जाना पड़े, अथवा उनकै कि० प्र०—उठाना ।- देना ।- पाना ।—भोगना ।--सहना । साथ उसका अन्वय करना पड़े, तो वह भी ‘क्निष्टत्व' दोष विशेष—योग शास्त्रानुसार क्लेश के पांच भेद हैं-प्रविद्या, माना जाता है । अस्मिता, राग, द्वेप और अभिनिवेश । रौद्ध शास्त्रानुसार क्लिष्टवर्म-स) पुं० [सं० विलष्टवर्मन्] अाँख की एक रोग, जिसमें क्लेश दस हैं--लोभ द्वेप, मोह, मान, दृष्टि, चिकित्सा, स्थिति, पलके में लाली और पीडा होती है। इस रोप में प्राय अस्त्र उद्धव्य, अहीक मोर अनुताप ।। चिकित्सा कराने की आवश्यता हुआ करती है । २ झगड़ी । लड़ाई। टटा । जैसे,—दिन रात क्लेश करना क्लिष्टा—समा स्त्री० [सं०] पतजलि के अनुसार वे चित्तवृत्तियो अच्छा नहीं। जिनसे आत्मा को कष्ट पहुंचता हो । क्रि० प्र०--केरना --मचाना |--रखना। क्लिप्टिसा सी० [सं०] १ पीडा । व्यथा । दुःख । कष्ट । २. क्लेशक, क्लेशकर—वि० [सं०] कष्ट पहुँचानेवाना ! दुखदायी[क] । तीमारदारी । सेवा [को०) । क्लेशक्षम-वि० [सं०] कष्ट, दुख सहने में समर्थ [को०)। क्लीत-सुज्ञा पुं॰ [सं०] सुश्रुत के अनुसार कीड़ों को एक जाति जिसकी क्लेशित-वि० [सं०] जिसे क्लेश हो । दुःखित । पोनि । उत्पत्ति मल मूत्र ग्नौर सडी लाश आदि से होती हैं और जिनके क्लेशी--वि० [सं० क्लेशिन् ] १ क्लेशकर। दुबई । २ अाहत काटने से पित्त कुपित होता है । | करनेवाला । चोट पहुचानेवाला (को०)। क्लीतक-सज्ञा पुं० [सं०] मुलहठी । जेठी मधु को । क्लेष्टा–वि० [सं० वलेष्ट कष्ट देनेवाला । क्लेशकर । कृलीतकिका-सच्चा सी० [सं०] नील का पेड़ । क्लेस -मच्चा पुं० [सं० कनेश] दे० 'क्लेश'। क्लीतनुक-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ मधूलिका । मुलेठी। २ अतिरसा[२] । क्लैव्य--सच्चा पुं० [सं०] क्लीवत।। नपुसकता । हिजड़ापन । वि० क्नीव-वि० पुं० [सं०] दे० 'नीव' । दे० 'नपु सकैता' । क्वीबतासल्ला जी० [सं०] दे० 'क्लोवता' । क्लोम–सज्ञा पुं० [सं०] दाहिनी ओर का फेफ।। फुफ्फुस । २ कनीवत्व- सच्चा पुं० [सं०] दे० 'वलीवत्व' । | प्यास । पिपासा -माधव, पृ० १७१। क्लीव-वि० ७० [सं०] १ पढ । नपु सके । नामर्द । २ डरपोक क्लोमस्थान--सच्चा पुं० [सं०] हृदय का वह स्थान जहाँ प्यास उत्पन्न कायर । कमहिम्मत् । ३ नीच । अधम (को०) । ४ सुस्त । | होती है ।-- माधव०, पृ॰ १०५ अलसी (को०) ।५ व्याकरण में नप सक लिंग का । क्लोरोफार्म-सम्रा पुं० [अ० क्लोरोफॉर्मं] एक प्रसिद्ध तरल प्रोषधि क्लीवता–सच्चा क्षी० [सं०] क्लीव का भाव । वि० दे० 'नपु सकता' । | जिसमे एक विचित्र मीठी गध होती है । क्लीवत्व स पुं० [सं०] नपु सकता । हिजडापन । नामर्दी । विशेष--इसका मुख्य उपयोग ऐसे रोगियों को अचेत करने के क्लुप्त-सज्ञा पुं० [सं०] १ मुकर्रर लगान यो महसूले । नियत कर। लिये होता है, जिनके शरीर पर भारी अस्त्रचिकित्सा में विशेप-नदियो के किनारे जो गाँव होते थे । उनको चद्रगुप्त के इसी प्रकार की शरीर को बहुत अधिक वेदना पहुचानेवाली समय में स्थिर तथा नियत कर देना पड़ता था । कोई और चिकित्सा की जाती है । इसे सुधते ही पहले कुछ २ उपस्थित । तैयार । कृत (को०) । ३. सज्जित ! शृगारित हलका सा नशा होता है और थोड़ी देर में मनुष्य बिलकुल (को०)।५ कटा हुआ । कृतित (को०)। ५ निश्चित (फो] । अचेत हो जाती है और गाढ़ी निद्रा में सोया हुआ मालूम क्लेद-सच्चा पुं० [सं०]१ झोदापन । गीलापन । अद्विता । २. पसीना। होता है । यदि मात्रा अधिक हो जाय, तो मनुष्य मर भी ३. दु छ। कष्ट (को०) 1४ घाव या फोड़े का स्राव । मवाद । सकता है। यह देखने में स्वच्छ जल की तरह और भारी पी (को॰) । होता है और यदि खुला छोड़ दिया जाये, तो शीघ्र उड़ क्लेदक'-वि० [सं०] १ पसीना लानेवाला।२ गीला या नम करने जाता है। इसका स्वाद बहुत मीठा मोर भला माल में होता वाना । है। खुले स्थान या प्रकय में रखने से इसमें विकार उत्पन्न क्लेदक-सुवा पुं० शरीर में एक प्रकार का कफ जिससे पसीना हो जाता है । महा--लोरोफार्म देना = क्लोरोफार्म सुघाना। उत्पन्न होता है । क्लेदन । ३ शरीर में की दस प्रकार को अग्नियों में से एक । क्वगु–सी पुं० [सं० क्वङ्ग.] प्रियंगु । कगनी[को०] । क्व--क्रि० वि० [सं०] कहाँ [वै] । क्लेदन--सा पुं० [सं०] १ शरीर में पाँच प्रकार की श्लेष्मा में क्वचित-क्रि० वि० [सं०] कोई ही ( शायद ही कोई । बहुत कम । से एक। यह अमाशय में उत्पन्न होती, वही रहती अौर क्वण-सुज्ञा पुं० [सं०] १ वीणा का शब्द । २ घू घरू का शब्द । भोजन पचाती है। शेष चारों बलेष्माए भी इसी की सहायता २ वनि । अावाज (को०)। से काम करती हैं । २ पसीना लाने का कार्य । क्वणन-सम्रा पुं० [सं०] १ शुन्द । ध्वनि । २ किसी वाद्य या घुघरू, क्लेदु-सा पुं० [सं०] १ चद्र । २ सनिपात ।। भाभूषण आदि की ध्वनि । ३ मिट्टी का छोटा पात्र [को०] )