पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५७४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

छोड़पन्न १०६० | च। क्रोडपत्र–सद्या पुं० [सं०] वह पग्न जो किसी पुस्तक या समाचारपत्र क्रोवहा -- सधा पुं० [५० झोपहन fणु का एक नाम {० । में उसकी पूति के लिये ऊपर से लगाया जाये । अतिरिक्त पथ ।। झोघा-सा भी० [सं०] दक्ष प्रजापति की ए॥ ५॥ (३०) । पूरक । जमीमा । क्रोचालु-वि० [4] झोपी । में 7 (०) । झोडपण--सा मी० [सं०] भटकटया । वाटेरी । शोधित--वि० [fi० क्रोध] कुति । ३ । यु!d । कौडपाद-सधा पुं० [सं०] कच्छप । फछुवा [को॰] । क्रोध'-५० ! भ• नोधि | [० धिनी] 'फोg फरवार । क्रोडक, कोडाघ्रि--सा पुं० [सं० झोडा क्रोधादि घ] ३० झोपाव'। गुरुसुइयर। । कोही-सा ली० [सं०] वाराही । शुभरी [को०) । | क्रोधी-सी पुं० [सं०] १ क्रोध नामक पुर। ३ महिए । छोडीकरण-सा पु० [सं०] अलिगन करना । छाती से सगाना[को०] | मैr (को०)। ३. गुहा । वान (०) ।। भैया (को०), 3. है । गैडा (०) । छोडोमुखमा पु० [सं०] १० गैडा' [ये० । कोची-सधा औ० [सं०] रा गीत में गया वर की दो श्रुतियों में में छोडेब्टा--सा थी० [सं०] मोथा। अंतिम ध्रुति । क्रोध-सम्रा पुं० [सं०] १ चित्त की वह तीन उद्वेग जो किसी अनुचित कोश-या पुं० [सं०] १ कोस । ३ विह{}न । ३। लिहून और हानिकारक कार्य को होते हुए देयकर उत्पन्न होता है (को०)।३ रोना। मून (को॰) ।। प्र] fiस दिन का और जिसमें उसे हानिकारक फाय करनेवाले से बदला ने की। गय (को॰) । इच्छा होती है । कोप । रोए । गुस्सा । क्रोशतात---सा पु० [सं०] एक प्रहर । वा घनद्ध पाई। त्रिसे विशेष—दै शेपिक में क्रोध को द्वैप का एक भेद माना है पर zF $ते हैं । | "कशन--एश पु० [सं०] ची। बिना । निजामा १०। उसे द्रोह आदि की अपेद शीघ्र नष्ट हो जानेवाला कहा है । छ । कोशस्तभ --सपा पु० ११० को-+रतम्] डि F ३ नारे एस एम भगवद गीता के अनुसार जो म भिलाषा पूरी नहीं है। है, कोम की दूरी पर गा३। गया 7 पर जिपर कि १ । । वही रजोगुण के कारण वदलवर 'क्रोध' बन जाती है। दूरी का परिमण प्रति रा है ( नाइन स्टोन) । '3०पुराणानुसार यह शरीरस्य दुष्ट शो में से एफ है । साहित्य यदि प्रमचये का कया साहित्य ६ को वन्तंभ हो, तो पन्छ। मे इसे रौद्र रम का म्यायी भाव माना है। होग। -- म०, २ौर गौ, पृ० २०६। पर्या० ----अमपं 1 प्रतिघ । भीम । ॐा। सपा । ऊ त । बोशिया---राश पुं० [पं० ट] तो. स्टिक आदि के बनी २ साठ संवत्सरो में से उन सठ सवत्सर । इस संवत्सर में प्राहु वह स Tई जिससे गधी, ना ना, टर ग्रादि चुना जाना है। लता और क्रोध की नृद्धि होती है !---(ज्योतिष) । कोष्टी-भी पुं० [H० कोट्टो गा । स्पार [४०] । क्रोधकृत ऋण-सा पुं० [न०] वह 'ऋण जो क्रोध में प्राकर किसी भेट झोष्टक - सय ९० [४०] ३० 'क्रोप्टा' (३० । | का धन नष्ट कर देने के कारण लेना पड़ा हो । झोष्टफलेस पुं० [सं०] इगो का फर (9०] । क्रोधज-सुला पुं० [सं०] क्रोध से उत्पन्न, मोह । कोस्ट मेख -स) नी० [सं०] पियुन । पृश्निपणका [B] । क्रोधन'--वि" [सं०] झोपी 1 गुस्स ल । कोप फरनेवाला । फोटुशिप- सच्चा पुं० [भ] ३० 'कोप्टीयं क' । क्रोधन-सबा पुं० १ पोप ने रना । गुस्सान। २ कौशिक के एफ पुत्र कोप्टशीपं-- पुं० [सं०] एक १ र रोग जिसमें यात के का न म जो गर्ग मुनि के शिष्य थे । ३ सुत के पुत्र और । परिण घुटनों में पो पर न हो हैं । देवातिथि के पिता का नाम । Y क्रोध नामक संयत्सर । " कोप्ट्री--सपा स्त्री॰ [सं०] १ मारिन । ना ।२ कुरण भूमि क्रोधना-वि० ० [सं०] क्रोधी स्वभावाती । कर्फशा । वाम। [फो०)। फुडमाद । ३ विदा । । तमलो (9) ! । च-- या पुं० [सं० कध] १ फरारुन नामक पी। २ द्मिालप क्रोधभवन-सच्चा पुं० [सं०] कोप भवन । के अतर्गत एक गवंत फ नाम जो पुराणानुसार मैनाक की क्रोधमूर्छित- वि० [२] क्रोध के कारण विवेक खो देनेवावा । क्रोध पुत्र है ! ३ पुराणानुमार राति पो में से एक । " से पागल । मापे से शहर । विशेप--विष्ण पुराण के अनुसार यह द्वीप दधिमोद समुद्र से क्रोधवत–वि० [हिं० फोघ + वैत = वाला] गुस्से में भरा हुमा । विध तुपा है चोर द्युतिमान् नाम के राजा यहाँ का अधिपति कुपित । उ०- माइक, घर्मराज प अायो । क्रोध से यह था 1 पर भागवत के अनुसार यह रसगर से घिरा हुआ है। वचन सुनायो |---सू (शब्द०) । और प्रियव्रत का पुधुतपृष्ठ इस छ! राजा पा । इस द्वीप के क्रोधवश'--क्रि० वि० [सं०] क्रोधवत् । क्रोध में । जैथे,—उसने सात पडे या वर्ष हैं मीर प्रत्येपी वर्ष में एक नदी र एमा क्रोधवच ऐसा कहा । पहाड है । क्रोधवश-सच्चा पुं० [सं०] १ एक राक्षस का नाम । २ काद्विवेय ४. एक राक्षस का नाम जो मय दानव का पुन या मौर जिसे नामक साँपो में से एक ।। झाँच द्वीप में रूकद भगवान् ने मारा था । क्रोधवशी-सज्ञा स्त्री० [सं०] दक्ष प्रजापति की एक एप और कश्यप यो०- क्रौंचदारण, झौचरिपु, इचशथ, वसूदन = (१) प्रजापति की अाठ पत्तियों में से एक । फाति के ये । (२) परशुराम ।