पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५७०

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मित किया। कित --सा पं० [स• कृय] दे॰ त्य' । उ०-पdि f६ वो क्रिय या ३ (१7 (०) १२ पर; } वर (३) । कृत मान मुक्कै सु मोह घर ।---पृ० १० ११३ । १३,ये की विधि (५०) । ११, छि किम-सधा पुं० [सं० क्रिमि] ६० किमि'। ०-गुरुधन रहे २ (६०) । | संसार । क्रिम कूप महँ परत निहारः ।---वीर ०, मियाकलाप-सी पुं० [भ] १ ग्त्रानुर जिया। में । ३ रिस म्पच फा ६६ र १०) । क्रिमि--सी पुं० [सं०] १ की। फीट । ३ पेट फी एक रोग ! किया --स! q० [५०] १ नि: फ; एक गि उधि । विशेष-दे० 'कृमि' । fift का ५ रविण । रोग । । । ।न। क्रिमिका-सा औ• [सं०] ६० 'क्रिमि' (को॰] ।

  • विधि (भे०] । क्रिमिकोंइ-सपा 3० [सं० मिमिको] चोल देश के ए राजा न्याका---सा पु० [५० f-सा काय व शास्त्र व 17 9,74 $ का नाम ।

fiधान ।। ६६ ।। विप--यह फट्टर शैव धा मोर इसने अपने देश के सब पंयि । झिया कार- १॥ पुं० [१०] १ १३ १ ३ १४ । २ ति ११० से लिखा लिया था कि शिय सर्वोत्कृष्ट देवता हैं । इसने । २५ राना छ५ ।। इन । [२] । रामानुज स्वामी को कैद भी मारना चाहा था, पर फिरता। धि ---- ५० [सं०] [यम । ११ ] * ईग। उ०:नहीं हुई। ३ः ॥६६ किशन को ।। 2 ।।-प्रेमघन,भा०२, क्रिमिनी -- सा भी० [सं०] सोमराजी [को०] । गृ० ३२० । क्रिमिज---सा पुं० [सं०] गुरु । मगर []। हिमाचतुर--- ५० [a] शुगर २ ६ ३१ ३ १ १६ भद। 14 क्रिमिज -सपा की० [सं०] लाख । वात् । नाप जो कि पद मा मा ३ , और उसी नाम क्रिमिनल-वि० [५ ०] अपराधी । ॐ प्रीति कार्य राधे । ३०–रे पि ४ प पुर। जो ३३* क्रिमिनल इनवेस्टिगेशन डिपार्टमट---सी पुं० [१०] [सप्वरूप रतो । चितुर को क ६६ 'त' प्रोन :सी० आई० डी० } सरकार का वह विभाग या महकमा जो fi० ग्र'२, पृ० ३२३ ।। अपराधों का गुस्न रूप से अनुसधान करती है । भेदिया विभाग। हिमाचारमा १० ११०] 4 आर पार | मने प्रकार के धुफिया महफमा । भेदिया पुनिस 1 पुफिया पुलिस । सी० काम । ३०-पा गत हैं। कार के इपिउ, में फिर से ई० बी० ।। निश्चित -प्रम्प, पृ० १३ । क्रिमिनल प्रोसीजर कोड-सा पुं० [H ०} अपरा भीर दई समधी या झियात--- : j० [ H• हित ] ? 7-6 पर पानी में विघानो का संग्रह ! दंडविधान । जन्ता फौजदारी ।। ३ एप । २, ३ क्रिमिभक्ष- सुद्धा पुं० [सं०] १क नरक का नाम । क्रितिपति-- १० [सं०] हे कापत झr fiTने ४३ से भिन्न क्रिमिशैल--सया पुं० [सं०] वल्मीक । चाँदी (३०] । करना कर पिस फ] वर्णन यि ३ | जैन,-मः १५ क्रिय-सा पुं० [सं०] मेप राशि । म; सत्र द ग मरिहै । सु सु र निम रि३ ।। क्रियमाण---सपा पुं० [सं०] १ वह जो किया जा रहा हो । वह जो विशेप-- हुछ लोग इसे प्रतियोf+ + एE ; भर नु योग हो रहा हो ।३फर्म के चार भेदों में से एक वि० दे० 'काम'। हो भनी प्रत कार के प्रदेश मानते हैं । ११ वरण 11 में क्रिया-स| बौ० [सं०] १ किसी प्रकार का व्यापार । किसी राम भी पतु दाब है। छा होना या किया जाना । कर्म । २ प्रयत्न । चैप्टा । हिलना क्रियात्म-वि० [सं०] ब्यावहारिक । ३०-- * ५ दा हो दोलन। ३ अनुष्ठान । पारम । ४ व्यारण घT वह पग, परम भने रहे। मौर जिन जिन दो में से हैं जो सने जिससे किसी व्यापार मा फरना या करना पापा जाय । में ही हिदी की प्रगति रिम रूप से करते रहे हैं । जसे, माना, जाना, मारना इत्यादि । ५ चौच मादि कम् ।। भि० ५०, पृ॰ १२ । निर्मक में । स्नान, सध्या पण अादि कृत्य । उ० प्रति झ्यिादेवी-सी पुं० [सं० क्रियाद पिन्] धर्मशास्त्र में यह प्रतिदि झिया फरि गे गुरु पाही। महाप्रमोद प्रम मन माही -- जो ताक मौर म पदि का न म ३ ।। तुलसी (शब्द॰)। ६ श्राद्ध प्रादिप्रकर्म । उ०—-अविरल विशेप--ऐसा प्रतिवादी पनि प्रकार के तीन प्रGिधादियों में माना गया है ।। भगति मगि वर गीध गया रिघाम। तेहि की कि । यथोचित निज पर कीन्हीं रामा--तुलसी (शब्द०)। | क्रियानिर्देश- उधा पुं० [सं०] गवाही । साक्षी (२०] । यौ॰—क्रिया कर्म = मृतक कर्म । अंत्येष्टि किया । ' क्रियानिष्ठ-वि० [सं०] स्नान, सपा, तर्पण मादि नित्यकर्म , करनेवाला । ७ प्रयिश्चित्त भ'दि कर्म । ६ उपाय । उपचार। चिकित्सा। क्रियापय–सया ५० [ सं० क्रिया+पथ } {में 63 । ३०---किपः (ये . न्याय या विचार के साधन् । मुकदमे की कार्रवाई । १०. धति ने जो भयो सो सूर्य असुर मिदयो । वृह मनु छ के ध्यापन । शिक्षा (को०)। ११ किसी कला पर भाधिपरम हुरि प्रगटे क्षण में फिरि प्रगटायो -सूर (शब्द०)।