पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५७

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उत्प ५७१ उत्पुलको उत्पट-सज्ञा पुं० [स०] १. पेड की गोद । २. ऊपर पहनने का कपड़ी। उत्पति--संक्षा पुं० [सं०] १ कष्ट पहचानेवाली किस्मिक घटना । उपरना । दुपट्टा । उपद्रव । ग्राफत । १. अशाति १ हलचल ! ३ ऊधम । दगा। उत्पत-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का पक्षी [को०] । शरारत । उत्पतन--सज्ञा पुं० [सं०][वि० उत्पतनीय, उत्पतित] १ ऊपर उठना । । उत्पातक-सज्ञा पु० [सं०] १ कान की एक रोग । लोलक के छेद मे २ उडना (को०) । ३. उछलना । कूदना (को०) । ४ उछालना | भारी गहना पहनने से अथवा किसी प्रकार के खिचाव से लोलक (०) । ५ उत्पन्न करना (को॰) । में सूजन, दाह और पीडा उपन्न होती है। उत्पातक-वि० [सं०] १ झडे ऊँचा किए हुए। २ दिप्लवकारी (को०)। उत्पति -सच्चा सौ॰ [ हि० ] दे॰ 'उत्पति' । उ०—(क) नृप प्रस्न उत्पतिक--वि० उपद्रव या उत्पात करनेवाला । करिय यह उये वात । सव कहो वस उत्पति सुतात ।-हम्मीर उत्पातिक-वि० [सं०] अपर प्रकृतिवाला । प्राकृतिक सत्ता से परे रा० पृ० ३ । ( ख ) उरपति प्रलय होत जग माई, कहौ सुनौ (जैन) (को॰] । सो नृप चित लाई ।—सूर (शब्द॰) । उत्पाती--सच्चा पुं० [सं० उत्पातिन्] [श्ली० हि० उत्पानिन] उत्पात उत्पती --संज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'उत्पत्ति' । उ० --नीर पवन की मचानेवाला । उपद्रवी । नटखट । शरीरती । दगा मचानेवाला। उत्पती, कई कवीर विचार, जो निज शब्द समावही, सोई हंस अशाति उत्पन्न करनेवाला । उ०—पोथी पाठ पढ़े दिन राती, हमार-कवीर सा०, पृ० ६६४। ये केवल भ्रम के उत्पाती । कवीर सा०, पृ० ८४० । उत्पत्ति—सा स्त्री० [सं०] [वि ० उत्पन] १ उद्गम । पैदाइश । उत्पाद–वि० [सं०] जिसके पैर ऊपर उठे हो [को०] । जन्म 1 उद्भव । २ सृष्टि । ३ आरम । शुरू। उत्पाद-सज्ञा पुं॰ जन्म । उत्पत्ति (को॰] । उत्पथ-सज्ञा पुं० [सं० ] १. बुरा राम्ता । बिकट मार्ग। २ कुमार्ग। उत्पादक-वि० [सं०] [वि० ० उत्पादिका] उत्पन्न करनेवाला । | बुरा अाचरण । उत्पादन--संज्ञा पुं॰ [सं॰] [वि॰ उत्पादित] उत्पन्न करना। पैदा यौ०–उत्पयगामी । करना । उत्पथिक–सझा पु० [सं० 1 वे लोग जो नगर मे इधर उधर आ जा उत्पादशय-सज्ञा पुं० [स०] १ बालक । २. टिट्टिभ पक्षी (को॰] । रहे हो । उत्पादिका-सज्ञा स्त्री० [स०] १ एक फतिंगी । एक तरह का कीडा ! उत्पन -वि० [हिं० ] दे० 'उत्पन्न । | २ माता (को॰] । उत्पन्न--वि० [सं०] [स्त्री० उत्पन्ना] पैदा । जन्मा हुआ। उत्पादिका-वि० पैदा करनेवाली [को०] । उत्पन्ना---सच्चा स्त्री॰ [स०] अगहनवदी एकादशी । उत्पादित-वि० [सं०] उत्पन्न किया हुअर । उत्पल-संज्ञा पुं० [सं०] १ कमल । २ नीलकमल । उत्पादी--वि० [सं० उत्पादिन् ][जी० उत्पादिनी] उत्पन्न करनेवाली। उत्पलगविक--सच्चा पुं० [ स ० उत्पलगन्धिक ] एक प्रकार का उत्पालो-सज्ञा स्त्री० [सं०] स्वास्थ्य । तदुरुस्ती (को०] । | चदन [को॰] । उत्पज-सज्ञा पुं० [स० उत्पञ्ज] १ पड्यत्र । २ अराजकता । विद्रोह उत्पलपत्र- सज्ञा पुं॰ [सं०] १ कमल की पत्ती । ३ नाखून से चमड़े। । [को०] ।। का हल्का छिल जाना। नखक्षत । ३ चदन का तिलक । ४ उत्पजर-वि० [स० उत्पञ्जर] १ मुक्त किया हुआ । २ अव्यवस्थित चौड़े फलवाला चाकू [को०] । , ३ व्याकुल [को०] । उत्पलपत्रक-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'उत्पलपत्र-४' [को०] । उत्पजल-वि० [सं० उत्पिञ्जल) दे० 'उपि जर' [को०)। उत्पलशारिवा--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] प्रयामा लता (को०] । उत्पलिनी- सच्चा स्त्री० [सं०] १ कमन्न फूलों का समूह । २. फूल उत्पीड-सज्ञा पुं० [स० उत्पीड] १. वहना । २ फैन । ३ घाव (को०)। ४. ३० ‘उत्पीडन' (को॰) । | सहित कमल का पौधा । ३ वृत्त [को०]। उत्पवन-सज्ञा पुं० [सं०] १ साफ करना । पवित्र करना । २ शुद्ध उत्पीड़क-वि० [ स० उत्पीडक ] ग्रसिप्रद । पीडा पहुचानेवाला । या साफ करने का यंत्र । ३ कुछ द्वारा अग्नि पर घृत छिड- उ०—किंतु अविवेक उन्हे उत्पीडक बना देता है ।-रस कना [को०] । | क०, पृ० ४।। उत्पाचित--वि० [सं०] अच्छी तरह उवाला हुआ। अच्छी तरह उत्पीडन—संज्ञा पु० [सं० उत्पीडन] [वि॰ उत्तपीड़ित १ दवाना। पकाया हुअा कि०] । तकलीफ देना । २ पीडा पहुंचाना । उत्पाद–सच्ची पुं० [सं०] कान में पीड़ा होना । २ ३० उत्पादन (को०)। उत्पुच्छ--वि० [सं०] ऊपर पूछ किए रहनेवाला [को॰] । उत्पाटन-सज्ञा पुं॰ [सं॰] [दि० उत्पाटित] उखाडना। उत्पुट-वि० [सं०] खिला हुआ। विकसित (को०] । उत्पाटिका'--वि० [सं०] उखाडनेवाली [को०] । उत्पुटक- सज्ञा पुं० [सं०] कान का एक रोग [को०] । उत्पाटिका'--मज्ञा स्त्री० पेड़ की छाल को । उत्पुलक--वि० [स०] १ पुलकित । रोमाचित २ प्रसन्न । खुश । [को०] ।