पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५६७

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ऋति १०६५ क्रिछ क्रान'- वि० [सं० शान्त] १ जिसे कोई वस्तु ऊपर से प्रकार छेके क्रोतिभाग--संग पुं० [सं० क्रान्तिभाग खगोलीय नादीमंडल से हो । जिये कोई वस्तु ऊपर से छोपे हो। देवी व ढका हुअा। क्रांति मंडल के किसी विदु की दूरी ।। २ जिसपर अाक्रमण इथे। हो । ग्रस्त । उ०—महाबली विक्रम क्रातिमंडल-~-सा पुं० [सं० ऋf तमन] वह वृह जिसपर मूर्य विक्रात क्रांत मदर गिरि कीन्हे रघुराज (शब्द०)। | पृथ्वी के चारो ओर घूमता हुअा जान पडना है। उ०-वियु यौ~भारत । और झाविमंडल के मिलन को क्रातिपात झवे हैं-~-वृहत, क्रि० प्र०—करना ।—होन।। ३. आगे बढा हैं पा | अतीत । अतिदलय-सा पुं० [सं० क्रान्तिवलय] ३० कातिवत' को॰] । यो०-सीमाकात ।। झातिवृत्त - सण पुं० [H० अन्तिवृत्त] सूर्य का मार्ग । क्रि० प्र०क ना होना। प्रतिसाम्प-~-सा पुं० [सं० क्रान्तिसरय) ज्योतिष में ग्रहों की ४ गत १ गया हुा (को॰) । तुल्पक्राति ।। क्रति -सबा पुं० १.घोड़ा । २.पैर। ३.कदम । इग (को०) । ४. विशेष---यद्यपि सय ग्रहों की तुल्यक्राति होती है, क्यापि सूर्य प्रौर जाना । गमन । चलना (को०) ! ५ किसी ग्रह के साथ चंद्र का चद्र से क्रातिसम्म में मंगल कार्य ववत है । | योग होना (को॰) । क्राइस्ट---समा पुं० [अ०] ईसा मसीह ।। प्रतिदर्शी–समा जी० [सं० कान्तशन्] १ ईश्वर । परमेश्वर । क्राउन-सा पुं० [अ०] १ राजमुकुट । ताज । १ राजा । सन्नाट । २ त्रिकालदर्शी । सर्वज्ञ । थाह। सुल्तान ३ राउ।। ४ छापने के सागज़ की एक नाप क्राति'- सच्चा सौ० [सं० ॐान्ति] १ ग भरने की क्रिया । कदम जो १५ इंच चौडी र २० इच लुबी होती है। यौ०-डदल झाउने क्राउन से दूना ! ३० इच लंबा और २० रखना । एक स्धान से दूसरे स्थान पर गमन । गतिं । २. । | इंच चौडा ---(छापाखाना)। खगोल में वह कल्पित वृत्त, जिसपर सूर्य पृवी के घारौ ग्रोर । क्राउन कालोनी-सज्ञा पुं० [अ०] वह कालोनी या उपनिवेश में घूमता जान पड़ता है। किसी राज्य या साम्राज्य के अधीन हो । राज्य या साम्राज्य पय०-अपमछल । अपवृत्त । अपक्रम । अपम । तर्गत उपनिवेश ।। यौ०-झातिक्षेत्र 1 क्रातिज्या । क्रांतिपात । क्राभिग। क्रांति- क्राउन प्रिंस--सा पुं० [४०]किसी स्वतंत्र राज्य की राजधहासन | महले । तिमाला। झातिवलय । फातिवृत्त । का उत्तराधिकारी । युवराज । जैसे,—अफगानिस्तान के ३ खगोलीय नाडीमडल से किसी नक्षत्र की दूरी । ४ एक देशा क्राउन प्रिंस ।। से दूसरी दशा में परिवर्तन । फेरफार। इलट फेर । जैसे, कुचिक-संवा पुं० [सं०] अरे से लकडी चौरनेवाला प्राराक्रम राज्यक्राति ।। (को०] । अति ---सच्चा स्त्री० [सं० क्रान्ति] शोभा । तेजस्विता । उ० -- ऋथ-सा पुं० [सं०] १ हिसा करनी २.एक नाग का नाम । (क) कहा झाति छवि वरन वरनत बरनि न जाय !-- कबीर ३ एक वदर का नाम जिसने राम-रावण-युद्ध में सेनापति श॰, भा० ४.१० २६ (ख) थोडछ 'मान हैंस की झाती । का काम किया था । ४.एका राजा का नाम जो पाहूग्रह के अमर वीर पहिरै वह भी --कवीर सा०, पृ० १००२ । अवतार माने जाते हैं । उ०—चल्यो क्राउ नरनाये माथे पर झातिकक्ष--सा पुं० दे० क्रान्तिक] दे० 'क्रातिदूत' । मुकुट मनोहर -गोपाल (शब्द०) । ५ धृतराष्ट्र के एक प्रतिकारी-वि० [सं० क्रान्तिकारिन्] किसी व्यवस्या में उलट पुत्र का नाम । फेर या परिवर्तन करनेवाला । इनकलाव लाने वाला। क्रपिक क्रायिक-सा पुं० [सं०] १, व्यापारी । व्यवसायी । तिकारी-सी पुं० सता को उलट देने का प्रयास करनेवाला । २.खरीददार । ग्राहुन [को०)। ब्यक्ति । ३०--झातिक रियर को यह ज्ञात हो जाता कि जो 8 ल@–वि० [सं० कराल] भयंकर । भयावइ । ३०-फाल झान कुछ वे कर रहे थे उसमें उन्हें गांधी जी का समर्थन प्राप्त न की नहीं सारा । ऊ चे झवल सीस जमु मारी ।-प्रणि०, घा -भारतंय, १६८।। पृ० २१०। विक्षेत्र-सी पुं० [सं० क्रान्जुिक्षेत्र ] गणित में वह क्षेत्र जो क्रानि क्रिकेट-- सा। पुं० [अ०] एक प्रकार का अगरेजी ४ग का गॅद का | निकालने के लिये बनाया जाय । खेल, जो ग्यारह ग्यारह पदिमियो के दो पदा में खेला जात प्रतिज्या--सा जी० [सं० क्रान्।ि ज्या] ऋतिवृत्त क्षेत्र में अक्षक्षेत्र | है । गेंद । बल्ला । | 5 एक अग । वि० दे० ज्य' । यौ॰—क्रिकेट वै:-क्रिकेट खेलने का बल्ला । प्रातिप-सभा पुं० [सं० क्रान्तिपति के वितु जिनपर झातिवलय चयन--सा पुं० [स० कुच्चायण चौद्रायण व्रत । | और खगोलीय विपुवत की रेखाएँ एक दूसरी छ। काटती हैं। टि -वि•[सं० ] ३ कुच्छ' । ३०-देवि 3 फाई कर विश-जब इन fव पर पृथ्वी माती है, तब रात मौर दिन सो, प्राने होत जो हुपि । बा३ त मन वन, प्रान क्रि ५र होत हैं। बिउ छाप १-६०, पृ० १६० ।