पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५६३

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१०६१ क्य गत ? जैसे,—(क) तुम्हारे हाव में क्या है ? (ख) तुम क्या 'कौन' घोर 'क्या' । 'कौन' में विभक्ति लग सकती है, क्या' में करने आए थे ? नहीं। 'क्या' के याने संज्ञा आने से वह विशेषणवत् हो जाता मुहा०- क्या उसाड़ना= कुछ न कर सकना । कुछ हानि न हैं । जैसे,—क्या वस्तु ? इस शब्द के अागे अधिकतर वस्तु, पहुंचा सकता ।-(वजलि) 1 क्या कहना है ?=(१) प्रशंसा पदार्थ, चीज अादि सामान्य बन्द विशेष्य रूप से अाते हैं, सूचक, धन्ये । साधु साधु । वाम । वाह वा । बहुत ग्रन्छ। विशेष जाति या व्यक्तिबोधक नहीं । है। बहुत बढ़िया है । (२) (व्यग्य) प्रशंसा के योग्य नही -वि० १. किना ? किस कदर ? जैसे,—इस काम में तुम्हारा है। बहुत बुरा है । वहुत अनुचित है। बिलकुल ठीक नहीं है। क्या खर्च पढ़ा ? २. बहुत अधिक । बहुतायत से । इतना जैसे,---पहला व्यक्ति-वह बहुत अच्छा तिब्रता है । दूसरा अधिक ऐसा । जैसे,—(क) का पानी दरसा कि सव तरावर व्यक्ति–पा कहना है । क्यों व ३ = दे० 'क्या कहना है । हो गए । (ख) क्या भीड़ थी कि विल रखने को जह न थी । क्या क्या= सब कुछ l वव कुछ । दया कुछ क्या क्या कुछ ३ कैसा । किस प्रकार का । विलक्षण ढग का । अपूर्व । =सन कुछ। बहुत कुछ। बहुत सी वस्तुए। वहुत सी बातें । विचित्र । जैसे,—(क) वह भी क्या यादमी है । (ख) क्या जैसे—(क) उसने क्या क्या कुछ नहीं दिया ? (ख) तुमने क्या क्या लोग हैं । ४ बहुत अच्छा । वहृत उत्तम । कैसी उत्तम । क्या कुछ नहीं कह डाला । क्या यह और क्या वह =(१) जैसे,—वावू साहब भी क्या अादमी हैं कि जो मिलती है, जसा यह, वैमा वह । दोनो वरवर हैं । जैसे,—(क) उसके प्रसन्न हो जाता है । लिये क्या अंधेरा और क्या उजाला । (ख) उसका क्या व ३-० वि० १ क्यों ? किसलिये ? किम् कारण ? जैसे,— रना भौर क्या न रहना । (२) जव इसी को हम कुछ नहीं | (क) तुम मुझ वया कहते हो। मैं कुछ नहीं कर सकता। समझते, तब उसको पा समझते हैं। दोनो तु हैं । जैसे, (ब) अब हम वही क्या जाये। पा भेइ, क्या भेड़ की लात 1 यह क्या करते हो ?=(1वयं मुहा०--ऐसा क्या = ऐसा क्यों ? इसकी क्या आवश्यकता है ? और खेदसूचक) यह ठीक नहीं करते। यह बुरा करते हो ! क्या अाए, क्या चले ?= बहुत जल्दी जा रहे हो। अभी यह विलक्षण क य क ते हो । यः क्या किया ?= दे० 'यह थोड़ा और वैटो । ( जब कोई किसी के यहाँ अता हैं और क्या करते हो ?' (किसी की) या दलाते हो - घपा प्रसग जल्दी जाना चाहता हैं. तब उसके प्रति यह कहा जाता है) । लाते हो ? क्या चर्चा करते हो ? वात ही कु अौर है । दशा २ नहीं। जैसे,—जद उसमे दम ही नहीं तो क्या चलेगा। हौ भिन्न हैं। वरावरी नहीं कर सकते । जैसे,—उनको क्या क्या४–अव्य० केवल प्रश्नसूचक शब्द । जैसे,—वया वह चला गया ? चलाते हो ? वे अमीर हैं चाहे दस घोः रखें। क्या चीज है? मुहा॰--क्या थाग, में डालू = इस वस्तु को लेकर क्या करू ? = नाचीज है। तुच्छ हैं। (किसी को) क्या चलाई = दे० यह मेरे किस काम का हैं ।- (स्त्रियाँ खिझलकिर ऐसा बोल ‘क्या चलाते हो ।' क्पा जाता है ? = या नुकसान होता है ? देती है)। कौन सा इजं होता है? कुछ हानि नहीं । जैसे,--जर। कह क्यार --संज्ञा पुं० [सं० केदार] घालवाल । याला ! थांवला । देना, तुम्हार। क्या जाता है ? क्या जाने = कुछ नहीं जानते । उ०—(क) भुगदि मूमि किय क्यार, वेद मिचिय जल ज्ञात नहीं मालूम नहीं । जैसे,—क्या जाने वह कहीं गया पूरन ।—पृ०, रा०, १ । ४१ (ख) सब विधि भरत मनोरथ है? क्या प्रती दुनिया देखी ? = व्या कारण हुग्रा (जो क्यार । व्रज पावस नित देरसत प्यार }---घनानंद, पृ० १८८ । स्त्रामाविरुद्ध ये किया ?}} चया नाम । = नाम मरण । * माता ।-(जव बातचीत करते समय कोई वात य"द क्यार---प्रत्यं० [अ०] अवध की सबध कारक का विभक्ति । फा। नही ग्रावी, तव इस वाक्य को बीच में बोल कर एक जाने क्या -मझा ० [हि° किया। इ० का है । जैसे—तुम्हारे साथ उम दिन वही-क्या नाम ?- क्यो--क्रि० वि० [सं० किम] १. किसी व्यापार या घटना के कारण मयुरीप्रसाद थे न ? | क्या पड़ना - क्या अवश्यकता होना । की जिज्ञासा करने का शब्द ! किस कारण ? किसे निमित्त ? कुछ जरूरत न होना । कुछ गुरज न होना । जैसे,—में | किसलिये ? किस वास्ते ? जैसे,—तुम वहाँ क्यो जा रहे हो ? क्या पडी हैं जो हम पूछने जब ? क्या पूछना है ?= दे० यौ०-—क्योकि = इसलिये कि । इस कारण कि । जैसे,-अब यहाँ क्या कहना है'। क्या है ? क्या हुई है। कुछ हर्ज नहीं से जामो, क्योंकि वह आता होगा । हैं। कुछ परदा नहीं है। क्या बात बघा बात है । ३० मुहा०—क्योकर = किस प्रकार ? कैसे ? जैसे,—-मैं यहाँ क्योंकर क्या कहना है । क्या से क्या हो गया = विलकुल ददल गया । रह सकता हूं? उ०---हम क्यो कर उस कों बुरा कहूँ !-प्रेमऔर ही दशा हो गई । वया सुमझने या गिनते हैं ? = कुछ घन॰, भा॰ २, पृ॰ ३३ । क्यों नहीं | =(१) ऐसा ही है। ठीक नहीं समझते । तुच्छ मझते हैं। तो फिर क्या है ! तो और कड़वे हो । नि सदेह । वैक।--(किसी वति के समर्थन में)। किसी बात की आवश्यकता नहीं । तो सप पूर। है । तो सदै (२) हों। जरूर !--(स्वीकार में)। जैसे,—प्रश्न--तुम ठीक है तो बड़ी अच्छी बात है। जैसे-वे SrI ज़ाये, तो वहाँ जाओगे ? उत्तर क्यों नहीं ! (३) ऐसा नहीं है। ठीक नहीं करते हो -- (यंग) । (४) कभी नहीं। मैं ऐसा नहीं प-यद्यपि यह शब्द सर्वनाम है, तथापि इसने वियक्ति नहीं कर सकता }---(व्यग्य) । यो न हो =(१) तुम ऐसे ती। इसी से बस्तु की जिज्ञासा के लिये दो सर्वनाम हैं महानुभाव से ऐसा उत्तम कावं क्यों न हो ? वाहु व ! कुवा फिर क्या बात है।