पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५६१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

कावापुरी ३०७६ कोशिकाठ, कोशिकार hिq--इसमें फलियाँ लगती हैं जिनमें लोदिंए के समान वीज कौशनी संघा नी० [मुं०] दे० 'कनिका' [खे०१ ।। होने हैं । बवासीर दूर करने तथा वालों को पकने से रोकने के कगलेय-संज्ञा पुं० [९] कौशल्पा के पुत्र , रनवद् । • लिये इसका प्रयोग औषध को भौति होता है । कौशल्---सुधा पुं० [सं०] दे॰ 'की ' {-] । पर्या--कनास। वायसी । सुरगी । काकाक्षी । शिरोवाना । कौशल्या-सा मी० [सं०] १ कोशल के राजा दर को प्रधान कौपरोसा • [हि० कौव+परी] बहुत कात्री और कुली | स्त्री र रामचंद्र की माता । २ पुराज की स्त्री प्रभार स्त्री ---(व्यग्य में) ।। जनमेजय की माता । ३ नत्यवान ही स्त्री । ४]तरराष्ट्र ) कौवारी-- सं ० [देश॰] १ एक प्रकार की चिड़िया । २. कचुर । माता 1 ५ पंचमुखी आरती । पाँच वर. ही अरती । के प्रकार का एक वृक्ष जिसमें बहुत से लाल फूलों का एक कौशल्यायनि--- सुंधा पुं० [सं०] कात्या के पुत्र, राम । गुच्छा लगता है। इसकी जड़े पर्व के कृमि में अती कौशव--सज्ञा पुं० [सं० कौशाग्य] राम के पौत्र अर फु के पुत्र । है। ३. कौवाठोठी । नाम । इन्होंने कौशांबी नगरी वसाई (०] । कौशव--सा पुं० [अ० कौवा मुसलमानों में गर्वया को ऐसे कौशांबी-संवा धी० [सं० फौशाम्बी] ९९ वडूत प्राचीन नगर जिसे | वर्ग । इस जाति के लोग कौवाली गाते हैं। कुश के पुत्र कौशाप ने बYया या । इसका दूसरा नाम वरचकौवाली-सबा ली० [अ० कौवाली] १ एक प्रकार का गाना। पट्टन है। विशेष—पीरो की मजार या सूफियों की मजलिस में यह गाना विशेष—प्राचीन काल में यह नगर यमुः। ॐ ब्रिनारे या, पर होता है । इसके याने की एक विशेष धुन होती है । इसमें प्राय व पमना वह स्थान छोड़कर दूर ची गई हैं । बुद्धदेव कुछ धर्म संवघी या आध्यात्मिक गजलें होती हैं, जिनके कारण दिनो तक इस स्थान पर रहे थे । यही एक मदिर में उनकी * कभी कभी सुननेवाले तन्मय हो जाते हैं। ३.इस धुन में गाई जानेवाली कोई गजल । ३. कौवालों फ। चंदन की एक बहुत बड़ी मूर्ति है, इसलिए यह म्यान बौद्धों का एक तीर्थ हो गया है । प्रयोग से पद्रह को पश्चिम की मीर पेसा ।४, सगीत मे तिलाला बजाने का एक भेद ।। यह स्थान है, और अब भी यह कोराम नाम एक छोटा गांव विशेष-यहू मध्यभान से दूनी जल्दी वजाया जाता है 1 फौवालो और बहुत में पुराने व इहूर हैं। की गज़लों के सिवा और रागिनियों में भी इजका प्रयोग कौशिक--सुज्ञा पुं० [सं०] १ इंद्र । २. कुञ्चिक राजा के पुत्र गधि, होता है। इसका तवले का वोल यह है-* ३ जो इंद्र के अज्ञ से उत्पन्न हुए थे। ३. विश्वामित्र (कुविक धा दिन दिन धा, धा राजा के वयज) ४, जसघ के एक सेनापति का नाम। दिन दिन् घt, नतिन् तिनु ता । ती दिन् दिन घा। घा । धा। ५ कोशाध्यक्ष ६ कोशकार। ७ उन्। ६ नेवला । ६. अपवा--* एक प्रकार का शालवृक्ष। अपकगं । १० रेशमी का। धाधिन धिन् धा, धिन धागे धिन धिन् धा, ना तिन् ११.ऋगर रस ! १२ मज्जा । १३ एक उपपुराण । १४, हनुमत के मत से छह रागों में से एक। फुरुमा, चं भविठो, तिन् उt, तागे धिन धिन् घा । धा पुणकिरी, गौरी और टोड़ी र गिनियों इसकी पत्नी हैं--- कोविदंसा पुं० [सं० कोविन्द] [स्त्री० फोबिन्दी] जुलाहा । तुतुवाये ! (संगीत)। १५. अवर्ववेद का एक हुन । | बुनकर (से)। विशेप----इससे देव, पितृ तुचा पायन, मंत्र के गण, युद्ध तपा कौवेर-वि० [सं०] दे० 'कौवेरी' चे] । राजनीति, वन्न तया व प्टिनि,रण के मन, विवाहू की विधि, कौवेरी–सं • [सं०] ६० 'कौबेरी' ]ि । वेदार से प्रौर वेदाध्ययन की विधि प्रादि पिया का वर्णन हैं। कोवा-सा पुं० [सं०] [वि० कोप] सच्चा [ी० कोशी] १ कुश १६ गुगुल । गुरनुल (को०) । १५.सुपर (को॰) । १८ शिर झा ५ । २. एक गोत्र का नाम । ३. कान्यकुब्ज देश का एक एक नान (को०)। १६ वह जो दिपे बनाने में जाना " दाम् । ४, रेशमी कपड़ा । कोश-वि० १.रेशमी । उ० | स्वगिक शोभा स्तंभों से पेशल जधन । कौशिक-वि॰ १ कोश या म्यान में रया हु।। २.रेशम का । | पर कैंपठी गी कौश जलद छाया ओझल हो | रेशमी (दे० । -युगपय, पृ० ११५। २ कुश से बना हुआ (को०] । कौशिकप्रिय-सभा पुं० [इं०] रामचंद्र ०] । कुशल । चतुराई । निपुणता । उ०—इए कौशिकफन-सा पु० [सं०] १.नारिय कई । ३.नारिपत्र टोकियों के कौशल से उपल सुकोमल उत्पन ज्यो -पात, । | का फल (२] ।। पृ० ३७४।१. मगल। ३.कौशल देश का निवासी । ४. | कौशिका--पश सी० [सं०] १ बल प्रादि पनि ६ बरतने । । । मस्यपुराण के अनुसार वह कक्ष जिसमें ४६ वने हो [ो । गिलास । ३. गुग्गुर । शासक---सा पुं० [सं०] उत्क्रोच । रिश्वत । घुसे [] कोशिकादमजस पुं० 'द ब्रा र जुन - स –सन [मुं०] १.उपहार । पढौकन । मॅट । नजर ।। कोशिकायुध-सय पुं० [सं०] १, 3न। २.६ प्रनु [४०] । 1. इस गेम ।कुद मंगल से । कोशिकारावि, कोशिकार- पुं० १० कोदा। ३ ।