पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५६०

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कौबेरी १०७६ कौरा कौबेरी सच्चा स्त्री० [सं०] १ उत्तर दिशा जिसके अधिपति फुबेर हैं। ६ उत्सव (को०) । ६ (ग्रंथ नाम के म त में प्रयुक्त) टीका ।। २ कुबेर की शक्ति [को०] । व्याख्या । विवेचन । जैसे, एक कौमुदी = साख्पनरवकौमुदी, कौम-सझा स्त्री० [अ० कौम] १ वर्ण । जति । नस्ल । उ०—पाजी | सिद्धांतकौमुदी अादि । | हू मैं कौम का बदर मेरा नाम ।-भारते ६ अ ०, 'भा० २, | कौमुदीचार–सझा पुं० [सं०] कोजागर पूणिमा। शरत् पूणिमा । कौमुदीतरु-संवा पुं० [सं०] दे० 'कौमुदीवृक्ष' (को०] । पृ० ७८९ । २ सल्तनत । राष्ट्र (को॰) । कौमकुम–सम्रा पुं० [सं०] १ एक केतु तारा जिसकी तीन शिखाएँ कौमुदी महोत्सव--सधा पुं० [सं०] शरत् पु मा के उपक्ष में मनपा जानेवाला उत्सव । हैं और जो मगल का साठव पुत्र माना जाता है । ३. रक्त । कौमुदीमुख–सच्चा पुं० [सं०] चाँदनी का उदय । (को॰] । | खून । लहू । कौमुदीवृक्ष---सी पुं० [सं०] दीपस्तु म । दीपधार [को०] । कौमार-सज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० कौमारो] १ कुमार अवस्या । जन्म कौमौदको सच्चा स्त्री० [सं०] विष्णु की गदा । से पाँच वर्ष तक की अवस्था । कौमोदी-सा भी० [सं०] विष्णु की गदा । कौमोद की । विशेष—तत्र के एक मत से सोलह वर्ष तक की अवस्था को कौरसा पुं० [सं० कचल] १ उतना भोजन, जितना एक बार मुहै को मार कहते हैं । में डाला जाय । ग्रास । गुस्सा । निवाला । उ०—राम नाम ३ एक प्रकार की सृष्टि जिस की रचना सनत्कुमार ने की थी । छf; जो भरोसो करे योर फो। तुलसी परोसो पागि माँ ३ कुमार। ४ एक पर्वत का नाम (को०)। ५ कुमारी का | कर कौर को !-—तुलसी (शब्द)। | पुत्र । कौमारिकेय (को०)। क्रि० प्र०—उठाना-खना। कौमारक--सधा पु० [सं०] १ भड़कपन । वचपन । कुमार अवस्था । मुहा०-- मुह का कौर छिन जाना= जीविका का संकट होना २ एक राग को०] । रोजी छिन जाना । उ०—कौर नुह का क्यो ने तब छिन कौमारचारी-वि० [सं० फौनारचारिन्] ब्रह्मचारी । कुमग्विनी (को०] । जायगा । जायेगी पच क्यो न प्यारी थायि ।—भने, कौमारबधको-संज्ञा स्त्री० [सं० कौमारवन्धकी] वेश्या । वार• पृ० ३९ । मुह का कौर छीनना= देखते देखते किसी का अंश देना वैठना । करि फरना= खो जाना । झास वैनन । ३० वनिता [को०] । कौमारभृत्य–सझा पुं० [सं०] वालको के लालन पालन और चिकित्सा किनारे की सुई कमलिनी क्रम से उखाइ उखाड़ कर कार गए ।—श्यमि०, पृ० ११३ । दि की विद्या । यह आयुर्वेद का एच अग है । धाश्रीविद्या । २ उतना अन्न जितना एक बार चक्की मे पीसने के लिये दाईगीरी । डाला जाप । कौमारव्रत-सच्चा पु० [सं०] जीवनभर अविवाहित रहने का व्रत को०]। क्रि० प्र०लना। कौमारिक'–सच्चा पुं० [सं०] १ सपूण जाति का एक राग जिसमें कौर--सच्चा पुं० [देश॰] एसे प्रकार का छोटा, फैननेवाला मा सब शुद्ध स्वर लगते हैं । २ वह पिता जिसे केवल कन्याए जो उत्तर भारत की पहाड़ी और पयली भूमि में होता है। ही हों (को॰) । कौरना----क्रि० स० [हिं० कौडा] थोडा भूनना। सेंकना । उ०कौमारिक–वि० कुमार सबधी । २ मृदु । कोमल [को०] ।। का दुरू और ककौड़ा कौरे । कचरी चार चैचे । सौरे ।कौमारकेय---सज्ञा पुं० [सं०] वह पुत्र जो किसी स्त्री को उसकी । सूर (शब्द॰) । कुमारी अवस्था में उत्पन्न हुअा हो । कानीन । कौरव-सच्चा पुं० [सं०] [स्त्री॰ फौरवी] [वि॰ कौरव कुरु राज की कौमारी-सच्चा सी० [सं०] १ किसी पुरुष की पहली स्त्री । २ सात संतान । कुरु के व यज । | मातृकाओं में से एक । कार्तिकेय की शक्ति । ३ पार्वती का एक कौरव-वि० [सं०] कुरु सवधी । जैसे,--कौरवी ते नी । नाम । ४ याराहीकद । कोलकद ।। कौरव--वि० [सं० कुरव! कुरव या लाल फटमरैया के रम का । कौमार्य-सज़ा पुं० [सं०] कुमार अवस्थी । कु रापन [को०] । लाव ग का । उ०-घर तन को रवे वस्त्र के प्रारि । मैंडी कौमियत—सवा स्त्री० [अ० कोमियत] कौम या जाति का भाव । जनु सुभ मनं मथ रारि ।---]० रा०, २१।६२ । जातीयता । जैसे,—वल्दियत और फौमियत सब लिखा दो । कौरवपति-सच्चा पुं० [सं०] दुघन । सुयोधन । कौमी--वि० [अ० कौमी] किमी कौम या जाति सूबधी । जातीय । फौरवेय- सच्चा पुं० [सं०] कुरु के वंशज । कौरव [को०] । . जसे--कौमी जोश । कौमी मजलिस। कौरव्य-साधा पुं० [सं०] १ कौरव । कुरुसतान । २ एक नगर कौमुद--- सझा पुं० [सं०] कार्तिक मास । फातिक । जिसका वर्णन महाभारत में आया है । कौमुदी-सच्चा पुं० [सं०] १. ज्योत्सना । चाँदनी । जुन्हैया । कौरा–सेवा पुं० [सं० कोल, क्रो; या सं० झपाटक, प्रा० कवाड यौ०---कौमुदीपति = चद्रमः ।, [स्त्री० कौरी] द्वार के इधर उधर का वह भाग जिसके २. कार्तिकोत्सब, जो कार्तिक की पूर्णिमा को होता है । ३ खुलने पर किवाड़ भिड़े रहते हैं। तु।र का कोना । उ०कातिं पूणिमा । ४ अश्विनी पूर्णिमा । ५ दीपोत्सव कीं। द्वार बुहारत फिरत अष्ट सिधि । कौरेन सथिया चीत तिथि । ६ कुमुदिनी । कोई । ७ दक्षिण देश की एक नदी । नवनिधि ।—सूर (शब्द॰) ।