पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उत्थित उत्तरिक ५७० उत्तरक–सझा पुं० शिव । महादेव [को०] । उत्तेजना–पज्ञा स्त्री० [सं०] [वि॰ उत्तेजित, उत्तेज] १ प्रेरणा। उत्तारण-सज्ञा पुं० [सं०] १ उद्धार करना । ३ पार ले जाना या बढ़ावा। प्रोत्साहन । ३ वेगो को तीव्र करने की क्रिया। उतारना । ३ विष्णु [को॰) । यौ०-उत्तेजनाजनक = भड़कानेवाला । क्रोध उत्पन्न करने वाला। उत्तारी–वि० [सं० उत्तारिन्] १ पार करने या उतारनेवाला । २ उत्तेजित--वि० [सं०] १ क्षुब्ध । अाविष्ट । २, प्रेरित । प्रोत्साहित । अस्थिर । ३ अस्वस्थ [वै]। उ०---जनता उत्तेजित होकर प्रदर्शवादी हो जाती है |-- उत्तार्य-वि० [स०] १ पार करने योग्य । नौका से पार करने योग्य । कायाकल्प, पृ० १८३ ।। २ वमन करने योग्य [को०)। उत्तोरण---वि० [सं०] तोरण से सजाया हु। को॰] । उत्ताल-वि० [म०] १ अशात । क्षुब्ध । उ०-~-मदर थका, थके उत्तोलन--सच्चा पुं० [सं०] १ ऊपर का उठाना । ऊँचा करना। असुरासुर, थका रज्जु का नाग, थका सिंधु उत्ताल शिथिल हो। तानना । २ तौलना । वजन करना । उगल रहा है झाग -धूप और घु, पृ० २१ । २ प्रवल । यो०-झडोत्तोलन, ध्वजोत्तोलन == झडा फहराना या ऊंचा करना। विकराल । प्रचड [को०] । ३ उन्नत [को०] । ४ कठिन [को०] । उत्त्रास--सच्चा पुं० [ स०] १ अत्यधिक भय । २ प्रातक [को॰] । ५ प्रत्यक्ष (को॰] । उत्थ--वि० [सं०] उत्पन्न या निकाला हुअा 1 निकला हुआ। उत्ताल---मज्ञा पुं० १ वन मानुष १ एक विशेष सवैया [को॰] । विशेप--इसका प्रयोग पदात में होता है-जैसे, आनदोत्थ [को०] । उत्ताव - सज्ञा पुं॰ [स उत्ताप] दे॰'उत्ताप' । उ०—पप्प पच पंथह उत्पथq)-संज्ञा पुं० [हिं०]उझान । उत्थान । उ०—वहैं कोई रिद्धि न गवन, अातुर खर उत्ताव, ।—पृ० रा०, ५८।५० । सिद्धि है वहँ नहि पुण्य न पप, हरिया विपय न वासना बढ़ें। उत्तिम--वि० [हिं०] दे॰ 'उनम'। उ०—सब स सार परथमैं अाए । उर थप नहि थाप ।--राम० घर्म०, पृ० ६१ । सातौ दंप । एक दीप न उलिम सिहल दीप समीप - उत्थवता--क्रि० स० [स० उत्थापन] अनुष्ठान करना। आरम जायसी ग्र० (गुप्त) २५ । करना। उ०—राजा सुकृत यज्ञ उत्य येऊ । तेहि एक अचमा उत्तिर-मज्ञा पु० [स० उत्तर] वह पट्टी जो खभे में गले के ऊपर और भयऊ ।---सवल सिंह ( शब्द॰) । कप के नीचे होती हैं। उत्थ-क्रि० वि० [१०] वहीं । इधर । उधर । उ0--इत्था जत्था जित्यो उत्तीर्ण - वि० [स] १ प र गया हुआ । पारगत । २ मुक्त । ३ कित्थ, हू जीव तो नान दे |-दादू वानी, पृ० ५१३ । | परीक्षा में कृतकार्य । पास शुद | उत्थान-सच्चा पुं० [सं०] १ उठने का कार्य । २ उठान । अार में । उत्तु ग--वि० [न० उत्तुङ्ग] १ ऊँचा । बहुत ऊँचा। उध-हिमगिरि के ३ उन्नति । समृद्धि । बढती ।४ जागना (को०]। ५ खुशी । उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छह |--कामायनी, [को०]। ६. लहाई [को०] । ७ गन [को०] 1 ८ सेना (को०१ ।। १० ३॥ २ तीव्र लहरवाल । सीमा। हद (को॰] । १० पुरुपत्व (को०)। ११ किताब उत्तु'डित---संज्ञा पुं० [सं० उत्तुण्डित] काँटे की नोक 1 काँटे का सिरा कौ०] । १२ माल्यार्पण [को०)। १३ प्रवध । व्यवस्था (फो०] ! कि]।। १४ रोग होने का कारण ]ि । उत्तुप-सज्ञा पु० [म०] भूसी निकाला हुआ या 'भुना हुआ चना [को०)। यौ ०.--उत्थान एकादशी= कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी । उत्तू-सज्ञा पुं० [हिं०] १ वह औजार जिसको गरम करके कपड़े पर । देवोत्थान । उत्थानपतन == उन्नति अवनति । बेन बुटो तथा चुन्नट के निशान डालते हैं । २ बेलबूटे का काम उत्थानक-वि० [स०] १ ऊपर उठानेवाला । २ उन्नत करानेवाला। जो इसे औजार से बनता हैं । [को०]।। क्रि० प्र०—करना:-~-का काम वनना। उत्थापक–वि० [स०1 उन्नत करनेवाला । उभारनेवाला । २ मुहा०--उत्तू करना=(१) गाली देना । २ कपड़े पर वेल बूटे। उठानेवाला जगानेवाला । ३ प्रेरणा देनेवाला [को०] । की छाप या चुन्नट डालना । मारकर उत्तु बनाना= किसी को इतना मारना की उमके बदन में दाग पड़ जायें तो कुछ दिन | उत्थापन—संज्ञा पुं० [सं०[ १ उपर उठाना। २ हिलानाडु निा । तक बने रहे। ३ जगाना। उ०—-तव स्नान व कै श्री गिरिराज ऊपर पधारे । सो श्री गोवर्वननाथ जी को उत्थापन किए ।—दो सौ उत्तु-वि० वेदहवाश । नशे में चूर । क्रि० प्र०—करना —होना । जैसे, उसने इतनी भाँग पी ली कि वान०, मी० २ पृ० २३ । उत्तू हो गया (शब्द॰) । उत्थापनभोग---संज्ञा पुं० [सं०] जागरण का भोग । जागरण कालीन उत्तुकशु-सुज्ञा पुं० [हिं० उत्तू+फा० कश] उरतू का काम बनाने- भोग । उ०---भावप्रवण क्यो ? जो, उत्यानभोग में मेवा वाला। अवश्य माना चाहिए ।-दो सौ बावन०, 'मा० १, पृ० १०३ । उत्तूगर-सज्ञा पुं० [हिं० उत्तू +फा गर] दे॰ 'उत्तूकश' । उत्थित-वि० [सं०] उठा हुा । उ०-जलगत के उत्यित जन सी। उत्तेजक–वि० [न०] १ उभाडनेवाला । वढ़ानेवाला। उकसानेवाला। - इत्यलम्, पृ० २७ । २ वचस्या हुआ । ३ उत्पन्न । ४ | प्रेरक । २ वेगो को तीव्र करनेवाला ।। बढ़नेवाला । घटित होने वाला । ६ फैलाया हुया [को०] । उत्तेजन--संज्ञा पुं० [सं०] १ढवा । उत्साह । प्रेरणा उत्थिति--सज्ञा स्त्री० [सं०] दे॰ 'उत्थान' को०] ।