पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५५९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

को وفاه कोला महा०-- कोरे लगना =(१) किती वात को चुपचाप सुनने के प्रतिज्ञा । प्राण ! वादा। इकरार । उ०-~-कौन ‘यावरू' की लिये द्वार के कोने पर छिपकर खड़ा होना । किसी घात में या किं न जाऊगा उस गली । होकर के चैकर देखो आज छिपा रहना । उ०---मन जिन सुने बति यह माई । कौरे लग्यो फिर गया |--कविता० की, भा० ४, १० ११ । इगो क्तिहू केहि दैई सो जाई ।—सूर (शब्द॰) । (२) यौ०.कौल करार= परम्पर दृढ़ प्रतिज्ञा । कौल का पुरा या रूठकर द्वार के कोने में खड़ा होना । मुह फुनाना ।। पक्का = बात का सच्चा । जबान का धनी। कोरा-सा पुं० [सं० कवल] १. वह खाना जो कुत्ते, अंत्यज मादि मुहा०—कौल तोड़ना = किमी से की हुई प्रतिज्ञा छोडना । प्रतिज्ञा को दिया जाय । २ मिक्षा । 'भीख ! ३०–'भले बुरे के कौर के अनुसार कार्य न करना । कौल देना= किसी से प्रतिज्ञा खैहो । वीर० श०, पृ० २२ । करना। किसी को वचन देना । कौल निभाना = दादा पूरा क्रि० प्र०---साना 1--डालना ।—देना । करना। उ०-नट नागर कछु कहने वने ना उनको कौल कोरा- सय पुं० [हिं० दे० 'कौड़ा' । निभायो ।--नट, १० २२ । कोल लेना = प्रतिज्ञा कराना। कोरापन--सम्रा पुं० [हिं० कोरा+पन (प्रत्य॰)] भीख माँगने वचन लेन । कल से फिरना =३० 'कौन तोड़ा' । कौल झी स्विति । मिखमॅगई । भक्ष्यवृत्ति ! ३०-लौकी मठ साठ हारना = दे० 'कौन देना । उ०---मगर मियाँ आजाद कोल तीरथ न्हाई । कोरापन तक न जाई । कबीर ग्र०, १० ३३२। हर के निकल गए !-—फिसाना, भा॰ ३, ५० ६३ । कोरी'-सुज्ञा स्त्री० [सं० क्रोड ] १ अकवार । गोद । ३०-ौरी ३ एक प्रकार का चलता गाना ! सूफियाना गीत । कौवाल । में न अादे जिन्हे वाड़ न हिनावे बलवान न झुकावे एते मान । न कौल-सच्चा पुं० [सं० कोल] सुकर । सुपर। उ०-“कहू कौलपु जे डिठियत है ।भारतेंदु (शब्द॰) । | कहू लीनगाह । कई चीतलं पाडुल व्याघ्र नाह।—० रस, मुहा०—कौरी भरक र भेटना पर मिलना = आलिंगन करके लिखें --संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'कोर' । उ०-नाला विनोचनि कौनन मिलना । उ०—-छत्रसाल त्यॉ गये विजौर। भेटे रतन साहु सो, मुसकाइ इनै अरुझाइ चितेगी ?--मतिराम (शब्द॰) । | भर कोरी !-लाले (ब्द०) कौई-वि० [हिं० कला = संगतरा+ई (प्रत्य॰)] ललाई लिए २ एक अकवार भर केटे हुए अनाज के पौधे जो फसल के समय । पीला । सुगतरे के रस का 1 नारगी। मजदूरो को मुज़दूरी में दिए जाते हैं। कौलकेय--वि० [म०] ऊँचे वश में उत्पन्न । कुलीन [को०] । कोरी-सका स्त्री० [सं० गोरा ग्वालिन की फली । गुवार । कोलकेयर--सैया पुं० कुलटा स्त्री से उत्पन्न पुत्र किये। कौरी-सज्ञा पुं० [सं० कौरव ३० *कौरव' । उ०-- जित जित मन कौलटिनेय-सा पुं० [सं०] १. ( साझवी ) भिक्षुणी का पुत्र । २. अर्जुन को तितहि रथ चुनायौ । कौरी दल नासि नासि कीन्हीं। जारजपुत्र (को०)। जन भायौ ।—सुर०, १।१३।। कौटेय-सच्चा पु० [सं०] जार कर्म (०] । कणिय-सुधा पुं० [सं०] १. एक राक्षस का नाम । २. अग्नि । अनन। कौलदेर-संज्ञा पुं० [सं०] १ व्यभिचारिणी स्त्री की संताने । जारज । ३ पवन । वायु । हुवा (को॰] । एक जाति । इम जाति के कबूतर की दुम लवी और कमल में'–वि० [सं०] १, कमें या कछुवा सवघी । २ कूर्म अवतार पुत्र । २ भिखारिन के पुत्र (को०] । । सवधी । जैसे, कर्म पुराण । कौलदुमा-वि० [हि कौल = कमल + दुम? = दुमदार] कबूतर की कमि--संवा पुं० एक कल्प का नाम [को॰] ।

  • एक जाति । इस जाति के कबूतर की दुम लवी और कमल झालेज--सी पुं० [यू० कलेज] एक प्रकार का दर्द जो पसलियो के

की पत्ती की तरह छिछी होती है । नीचें होती हैं। वापसूल । । कौलव-सुज्ञा पुं० [सं०] ज्योतिष में वव आदि ग्यारह रणों में से --सा पुं० [सं०] १. उत्तम कुन में उत्पन्न । अच्छे खानदान तीसुरा । ३०-बदि भाद, अाउँ दिना, अरष्ठ निसा बुधवार । का । वाममार्गी । कौलाचारी । उ०—-कहने की अावश्य कौलव करने से रोहिनो, जन्मे नदकुमार-मैद० अ०, झती नहीं कि फौल, कापालिक अादि इन्हीं वज्रयानियों से पृ० ३३६ । । निकाले ।-इतिहास, पृ० १३ । विरोध-—इसके देवता मित्र हैं । इसे करण में जन्म लेने वाला । विद्वान और गुणी पर कृतघ्न होता है । -वि• कुल संवघौ । खानदानी । कुलझम से अगव्र या प्ठे । कौल -सज्ञा पुं० [सं० कमला ] एक प्रकार की सारी जो बहुत ३० - फुटि निगुन गुण धारिन्छ अनि पयो मह मिति । | अच्छा अौर स्वादिङ होता है। क्मना । कॉल कानि ।-जग० ०, १० ६६ । । कौला--सा पुं० [सं० फोल =ो,गोद] १. द्वार के इधर उधेर छ। कीन-सा पुं० [ सै० कमल | कमल । सरोज ! उ०--बहै लाल वह भाग जिससे खुलने पर द्वार भिड़े रहते हैं। कोना । कौर।। नोहू तसे वारिधी। मन कौल फूले कुलगी अपार । मह०---ौले लगना=(१) ठार द्वार के कोने में खेजा होना । हमीर०, १० ५९ । (२) किसी बात को चुपचाप सुनने के लिये द्वार के कोने में लि'---सम पु० [सं० केवल 1 प्रसि । छौ । छिपकर खड़ा होना । घात में रहना । कौने सोचना=पूजा, सा पुं० [ तु ० रावल ] सेना को छावनी का मध्य भाग । श्रा आदि के सेमस द्वार के युवर उधर पानी छिन । ससा पु० [अ० मत ] १, कयन् । उक्ति ! वावगे । ३ ३, पाखा ।