पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५५८

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कौडी कौतिगहार को कर लेना । को वहतक बहुत योडा थोडा पर्या०-फपदिका । वाटिका ।। ४.अाँख का ज्ञेला १५ छाती के नीचे बीचोबीच की वह हुड्डू महा०-ौडी का= जिसका कुछ मुल्य न हो। तुच्छ । फौजी । जिसपर सबसे नीचे की दोनो पसलियाँ मिलती है। काम का नहीं = किसी काम का नहीं । निकम्मा । निकृष्ठ । मुहा०-कौडी जलना = 'भूम्य, क्रोध अादि से शरीर में तोप होना। कौडी या दो कौडी फा=(१) जिसका कुछ मूल्य नही । तुच्छ । उ०—उसकी फौडी तो यो ही जल रही है, क्यों चिढ़ाते हो ? निम्मा । (२) निकृष्ट । खराव | कौड़ी के काम का नहीं = ६ जेधे, ख या गले की गिलटी । दे० 'कौड़ो काम का नहीं' । कौडी के तीन तीन निकना= क्रि० प्र०—उसकना ।—उसकना |-छकना ----निकलना । बहुत सस्ता होना । कौडी के तीन तीन होना = (१) बहुत ७ कटार की नोक। १०–कौडी के आर पार है कौडी सस्ता होना । (२) तुच्छ होना । बेकदर होना । नाचीज होना। कटार की ।—(शब्द॰) । कौडी मोल या कौडी के मोल बिकना= वहुत सस्ता बिकना । कौडी गुडगुड-सह्य पुं० [हिं० डी+गुडगुड] लव को का एक खेल । ४०--विमती जो कोही मोल यहाँ होगी कोई इस निर्जन बिशेप-हुत से लड़के दो और पत्तियों में आमने सामने बैठते में 1-अपरा, पृ० ६७ । कौडी को न पूछना=(१) मुफ्त भी हैं। इन दोनो पत्तियों के दो सरदार होते हैं। पैसा या जूता न लेना । विलकुल निकम्मा समझना । (२) नितात तुच्छ यदि उछालकर चित पट से इस बात का निश्चय किया जाता ठहराना । कुछ भी कदर न करना । जैसे, वही तुम्हें कोई है कि पहले किस पंक्ति से खेन प्रारंभ होगा । जिस पंक्ति छोड़ी को भी न पूछेगा । कौडी कोस दौड़ना= एका कोही से खेल मारभ होता है, उसका सरदार अँजुन्नी में धूल भर के पीछे कोसो का घावा मारना । यो सी प्राप्ति के लेता है जिसके अंदर कौड छिपी होती है। सरदार थोड़ी थोडी लिये बहुत परिश्रम सरना । फोडी कौडी == एक एक कोडौ । धून अपनी पक्ति के सब लडको के हाथ में डाल अाता है। फौड़ी कौड़ी को मुहताज = रुपए पैसे से बिलकुल खाली । फिर दूसरी पक्तिवाते वूझते हैं कि धूल के साय' कौडी दरिद्र । कोही कौड़ी अदा करना, चुकाना या भरना= किस लडके के हाथ में गई है। यदि वे ठीक बुझ गए तो सेव ऋण चुका देना । कुल बेवक कर देना । फोकी फोडी जिसके हाथ मे कौडी रहती हैं, उसे चपत लगाते हैं । भर पाना : सार लहूना वसुन कर लेना । कीडी कोडी कड़िी जगनमगन--- सच्चा पुं० [हिं०] दे० 'कोही गुडगुड । नोउना = वठूत योद्धा थोडा करके घन इकट्ठा करना । कौडी जुडा-- सुशार पुं० [हिं० कोडी+जुड] एस प्रकार का गहना बद्दत कष्ट भै रु या बटोरना । फोही फिरना=(१) जुए में जिसे स्त्रियाँ सिर पर पहनती हैं । अपना दीव नहुने र गना । (२) फौजी सिपाहिय झा, कीडना'--सच्चा पुं० [देर ०] [अल्पा० कद्देन] कसेरो का लोहे का किसी विषय में एक म | होना । ( पहले जव सिपाहिये को। किसी बात मे एका क 'ना होता था, तब वे कौड़ी घुमाते थे । एक औजार जिससे वदत्तनों पर नकाशी की जाती है । यह जिन सिपाहियों को वेइ बात स्वीकार होती थी, वे कौडी ले डेढ़ बालित लवा और नोंक पर पतला तया चिपटा होता है। लेते थे। कौडी के बदले हीरा देना = खराने वस्तु लेकर के कौड़े ता.समा पुं० [हि कड़िया ला] कौडियाला नाम को जड़ी। अच्छी दस्तु देना । उ ।---मूल न रख्यिा लाह लोया कौडी के कौड़ ना सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] दे॰ 'कौडियाहो' । बदले ही रा दीया । फिर पठिताना सबलु नाही हायि चल्या कौड नी- सच्चा खी० [देश॰] एक प्रकार का जलपक्षी । उ०— क्यू पाव सौई -दाद.०, पृ० ६३८ । फौडियो पर दांत देना = घोबइन तलचरैया, फोडेनी, चशा इस्यादि ।—प्रेमधन०, लोभी होना । उ०—-मड़ियों पर किसलिये हुम दाँत दें। है । भा॰ २, पृ० २०।। हुमा 'राग तो पटा नही ।-चुभते० पृ० ५२ । फोडी फेरा कौढ--सझा पुं० [हिं० कौढ ३० कोढ़' । उ०—ौर वा वैष्णव के करना= घडी घडी माना जाना । थोडी थोडी वात के लिये सरीर में तें तत्काल सव और तें कौढ़ जात रह्यो ।-दो सौ भी आना जाना है बहुत फेरे लगाना । जैसे,—अब तो वे अापके । बावन, भा॰ १. पृ० ३३० । मुहल्ले में अ गाव हैं, चौड़ी फेरा करेंगे। कौडी भर = वह कौणप–सल्ला ऐ० [सं०] १. स । २ वासुकी के वंश का एक सर्प । थौडा छ । जरा सा । तनिक सा । जैसे,—कोडी भर चुना ला ३ पातफी या आघम जीव ।। दो । फौडी लेना = मस्तूल के चारों ओर लपेटना । (लश)। कौणपदत---सज्ञा पुं० [सं० फौपदन्त भीष्म । कानी, मझो या फूटी कौडी = (१) वह कौड़ी जो टूटी हो । ' हा कौतक-सज्ञा पुं० [हिं० कौतुक ] खेल तमाशा । उ०--सुर नर मुनि (२) अत्यंत अल्प द्रव्य । कम से कम परिमाण का धन । जव कौतुक आए कोटि तैतीसो जाना |--कवीर ग्र १, जैसे,—इम तुम्हें करने की भी न देंगे । चित्ती कौड़ी = वह | पू० २६६ ।। कौड़ी जिसकी पीठ पर उभरी हुई गाँठे हो । इसफा व्यवहार्य | कीतिक : –सञ्चो पु० [हिं०] दे० 'कौतूक' । उ॰—इनके कति देखि जुए में होता है । | देखि अपनो जीउ जियाऊँ।-घननिद, पृ० ५४७ । २ घन । द्रव्य । रुपया पैसा । उ०—-ब्रह्मज्ञान विनु नारि नर । कहहि न दूसरि बाते । कौंडी लागि लोभवस, करहिं विप्र गुरु कौतिग-संज्ञा पुं० [६० कौतुक] विलक्षण और अदभुत वात । कौतुक । घात 1---तुलसी (शब्द०) । ३ वह कर जो सम्राट् अपने उ०-देख त छु कौतिगु इतै देखो नैक निहारि । कव की अधीर रजाम्रो से लेता है । इम ट्रक डटि रही तटिया अँगुरिन फारि !-विहारी (शब्द०)। क्रि० प्र०—देना ।--लेना ।। कोतिगहार –सच्चा पुं० [हिं० फौतिग -+हार(प्रत्य॰)] खेल