पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५५७

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कीचे 'तीर्य १०७५ कौतिग्ग मई कौतिगहार । देह अछत अलग रहै, दादू सेवि अपार !-- कोथिसिया स्त्री० [हिं०] ‘कौय' ।। कौथुम-वंश पुं० [सं०] कोयुमी शाखा का अध्ययन करनेवाला । देटूि, पृ० ५८३ ।। कौतिग्ग-सा पु० [हिं०] दे॰ 'झौतिग' । उ०—सुलकंत श्रोन कौथुमी-सा सी० [सं०] सामवेद की एक शाखा जिसका प्रचार पृ० j०, कुयुम ऋपि ने किया था । घर चलिया खान ! कौतिग्ग देव हर रुह माल | कौद--सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'कोद' । उ०-दोय लाख पैद चहुँ १६६७ ।। गढ़न कौद }--हु० सी०, पृ० ६० ।। कौनुक--सुज्ञा पुं० [सं०] [वि० कौकित, कौतुको] १. कुतुहुन । २. कोदन--वि० [फा०] मदबुद्धि । कमसमझ । नासमझ ।। अश्विर्य। अच भा। उ०—सत दीव कौतुके मग जाता । हौदालिक, कोदालीक-सुज्ञा पुं० [सं०] धीवर पिता और धोबिन मारे राम सहित श्री भ्राता ।—मानस, ११५४ । ३ विनोद । दिनः । ४ अनद } प्रशंसा । ५. खेल तमाशा । माता से उत्पन्न एक वण सुकर जाति । क्रि० प्र०-कृरना ।-दिनाना ।—देखना --होना । कोद्रविक-व्रज्ञा पुं॰ [सं०] सचिर नोन । काला नमक। ६ वह मांगलिक सुत्र (कॅगन) जो विवाह से पहले हाय में पहना कौघनी-सुज्ञा स्त्री० [हि० करधनी] करघनी । काँधनी । जाता है । ७ विवाह के पूर्व कंगन वाधने की प्रया !

  • कौन-सवं० [सं० क , पुनः किम्, प्रा० फवण] एक प्रश्नवाचका ८, पदं । उत्सव (को०)। ९, विवाह आदि शुभ कार्य (को०)।

सर्व नाम जो अभिप्रेत व्यक्ति या वस्तु की जिज्ञासा करता है। १० उत्सुकता । आवेग । अातुरा (को०) । ११ आश्चर्यजनक उसे मनुष्य या वस्तु को सूचित करने का शब्द जिसको पूछना वन्तु (को॰) । होता है । जैसे,—(क) तुम्हारे साथ कौन गया था ? (ब) इन यौ०-कौतुकक्रिया । कौतुकमंगल =(१) वडा उत्सव ! महोत्सव । आमों में से तुम कौन लोगे ? (२) विवाह संस्कार। कौनुकतोरण-उरलेव के लिये निर्मित मुहा०-कौन सा= कौन । फौन फिसका होता है ? कौन मंगलसूचक द्वार। कौतु कगार= (१) क्रीडागृह । विदगृह ! किससे काम आता है। कोई दूसरे की सहूपिना नहीं करता । (२) दे० ' कोर' ! कौन होना=(१) क्या अधिकार रखना । पया मतलय कतिकिया-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० कौतुक +इया (प्रत्य०)] १. कौतुक रखना । जैसे,—तुम हमारे बीच बोलने वाले कौन होते हो । करनेवाला । २. विदाह सबध करनेवाला नाईः पुरोहित (२) वया संबंध होना। क्या रिश्ता या नाता होना । जैसे,— यदि !-३०--तौ कौतुप्रिन्ह अालेले नाही। वर कन्या बे तुम्हारे कौन होते हैं ? अनेक जग माहीं ।—तुलसी (शब्द०) । विशेष---विमुक्ति लगने के पहले कौन का रूप किस हो जाता है। कतुकी--वि० [मुं० कौतुकन] १, कौतुक करनेवाला। विनोदशील । जैसे-किसने, किसको, किससे, किसमें इत्यादि । यद्यपि ३०-मुनि कौतुकी नगर ते हि गयऊ। पुरवासिन सुव पूछत सुरकुत के अनुसार हिंदी व्याकरण में इस चुद को केवल भयॐ —तुलसी (शत्र०)। ३. विवाह संबध करानेवाला । सर्वनाम ही लिखा है, क्यापि जद इसके ग्रा सच्चा चब्द मी या ३ खेल तमाशा करनेवाला ।। जाता है, जैसे, 'कौन मनुष्य-तव यह विशेपण के ही समान कौतूहल-सा पुं० [सं०] कुतुहल । कौतुक । जान पड़ता है। कतूिहलता-सया सी० [सं० कौतूहल +ता (प्रत्य॰)] कौतूहल का | भाव । मत्सुक्य । उत्सुकता। उ०-क्रीड़ा कौतूहलती। कौन---वि• किस जाति का ? किस प्रकार का ? जैसे,—यह मन की, वह मेरी आनंद उमग !-पल्लव, पृ० १०५ । कौन भाम हैं। लंगडी या दवई ? कविमितवा पुं० [सं०] एक ऋषि जिनका वर्णन गोप्य ब्राह्मण कौन-सा पु० [सै० फौषप] ३० ‘कौणप' । उ०---केवट कुटिल | नै अाया है । भालु कपि कौनप किया सकल सँग भाई !—तुलसी (शब्द०)। रिस सञ्च पुं० [सं०] १. एक ऋषि का नाम जो कुत्स ऋषि के पुत्र, फौप'--वि० [सं०] कुए का। कूप सर्वधी [ये] । जल [। वरततु के शिष्य और जैमिनि के प्राचार्य थे। २ कुत्स नामक । कपि--सुदा पुं० कुए का जल । "प ३ देनाए हुए कुछ साम (नान) जो विकृत यज्ञ में कौपीन–चा पुं० [सं०] १ ब्रह्मचारियों और सुन्यासियों अादि । गाए जाते थे। लँगोटी । चोर । कफनी । फाछा ।। शरीर के वे भाग जो । कीय-संझा झो० [हिं० फोन+तिथि] १. कौन सी तिथि । फोन कौपीन ले ढाकै जाये--गुदा पौर लिग । ३. पप । गुनाह । तारीख । जैसे-माज कीव है ? ३. कौन सबंध । कन वास्ता । ४. अनुचित कार्य । ३०--राम नाम को छोड़ि के राबै करवा चौथ । सो तो यि ?--कबीर (शब्द॰) । कपोदकी-सज्ञा भी० [सं०] कृष्ण की गदा (ये०] । हयगी सुकरी, जिन्हें राम सो कौवेर-वि० [सं०] कुवेर बधा। कुवेर का विदे० । १० [हिं० कौन+स० स्था (स्थान) ] किस संग का । कौवेरतीयंसेश पुं० [सं०] कुवेर चॅपंधी तीयं विनेगे । उ०-फोर। गणना में किम स्वनि का । जैसे,—-दर में तुम्हारा नंबर तीर्थ में देवता ने कुबेर का राज्याभिषेक किया था [--- प्रा० भ० प०, १० १०३ ।।