पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५५६

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कौन १०७३ कौकिके कौं'ना सझी पुं० [सं० कोण] कोना । उ०-चत भई घर आँगन की --प्रत्य० [हिं०] कर्म, सप्रदान और संवघ कार का फिरे । ने जाम उसासिन भरे ।—नद० अ० १० १५२ । विभकि प्रत्यय 1 उ०—(क) चतुभुजदास दाद करते और काँभ–सच्चा पुं० [सं० कौम्म ! सौ बरस का पुराना घी, जो बहुत पहिउन की जोत लेते ।-अकबरी, पृ॰ ३८ । (ख) खंजरीठ गुणकारी समझा जाता है !--(वैद्यक) । मृग मीन fचारति, उपमा कौ अतुल इति । च वल चारु चपल कभ- वि० कु भ या पद्धे में रखा हुआ या उससे सबधित [को०] । अवलोक नि, चितई न एक समाति ।-सूर० १० । १८११। कभसपि-सज्ञा पुं॰ [स० कौम्भसृप दे० 'कौंभ' । (ग) रावन अरि कौ अनुज विगीपन ता को मिले सरत नाई । कर--सा पुं० [देश॰] एक प्रकार का वडा पेड़ । बनखौर । सूर०, १।३। । विशेष—यह वृक्ष प्राय पजाब, नेपाल और उसकी तराइयों में कौ –सच्चा पुं० [हिं० ] दे० 'क्रीवा' ।। होता है । इसकी लकडी अदर से हेलकी गुलाबी होती है और कौफ्राना--क्रि० अ० [f० कौ प्रा] १. भौं वक्फा होना । चकूप काना। इमारत के काम में अाती है । इसके काठ से थालियों और रक | माचर्य से इधर उधर ताकना। २. सोते मे स्वप्न देखकर या वियाँ भी बनाई जाती हैं । इसके फलो को पहाड़ी लोग सुखकर यों ही अचानक कुछ बडबड उठना । चक्की में पीसत्ते और दूसरे अनाज के साथ मिलाकर खाते हैं। क्रि० प्र०--उठना । करा--सुज्ञा पुं० [हिं० कविर] दे॰ 'काँवर' ।। कोरा-सज्ञा पुं० [हिं० कोब्रा +सं०र१= शब्द] कौवा को शब्द । कौं रो---सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] पान की चौथाई ढोली, जिसमे ५० पान । कौवार । काँन काँव के पुार । शोरगुन । होते हैं । कंबरी। कौआरी-समा स्त्री० [हिं० प्रार] एक प्रकार की जलपक्षी । कल-सच्ची पुं० [सं०, प्रा० कमल] दे० 'कमल'। उ०—-धीमी बयार कौमाल—सच्चा पुं० [अ० कोवाल] कौवाली गानेव.ला व्यक्ति । लगने से छोटी छोटी लहरें उठती हैं, फूले हुए कल अपने कौवाली-सञ्ज्ञा पुं० [अ० कौवानी] दे०'कौवाली' । हरे हरे पर्ती में धीरे धीरे हिलते हैं !-४००, पृ० २६। कौकु च्यातिचार-सम्रा पुं० [सं० काकूक्त्यातिचार] वह वाक्प सिके कला-सङ्को भी० [ से कमला ] कमला । सरस्वती । उ०— | फहने, वोलने या पढ़ने से अपने या अरों के मन में काम, क्रोध कवि विस रस कौंला पुरी । दूरिहि निअर निअर भा दूरी। अदि उत्पन्न हों । जैसे, ऋ गार के वित्त, बारहमासा अरवि —जायसी अ ० (गुप्त), पृ० १३६ ।। --(जैन) । कनी हड्डी-संज्ञा स्त्री० [सं० कोमल +६० हड्डी ] कुरकुरी हुड्डी ।। कोकृत्य---सच्चा पुं० [सं०] १ दुष्कर्म । कुकृत्य । दुष्टता । १पश्चाताप। कौंसल---सज्ञा पुं० [अ०] १ बैरिस्टर। ऐडवोकेट । २. राज का । अनुशोचन [को० । प्रतिनिधि । कौक्कुटिक-सच्चा पुं० [सं०] १ कुक्कुटपालक या मुर्गे का व्यापारी। कौंसलर:-सा पुं० [अ०] परामर्शदाता । समति देनेवाला ।। २ एक प्रकार के साधु जो जीवहिसा न हो अत जमीन देखते कसली—सच्ची पुं० [अ० कौंसल] वैरिस्टर । ऐडवोकेट । जैसे,—' हाईकोट में उसकी ओर से बड़े बड़े कौसुली पैरवी कर रहे । चलते हैं । ३ (लक्ष०) दभी या घमडी व्यक्ति [को । है |--{ प्रतिके )। कौक्षय-वि० [सं०] १ कुक्षि या उदर सबथी । २ म्यानयुक्त [को॰] । कौसिल-सच्चा स्रो० [म ० १. किसी विषय पर विचार करने के कक्षेपक -सच्चा पुं० [सं०] खड्स । वलवार ओ। लिये कुछ लोगों की वैक । २. कुछ विशेष मनुष्यों की वह कोच-सच्ची पुं० [से ०] मटि गइ का अ गरेजो का पलगे या वैच। स मा जो किसी राजा या शासक का शासन के सवये मे पररा- कौच-सच्चा पुं० [सं० कपच] दे॰ 'कवच । उ०-धरे टोय कु हो कसे मर्श देने के लिये बनाई जाती है। विधानसभा । जैसे,— कौम अ ग ।—हम्मीर, पृ॰ २४ । लाट की कौंसिल, प्निवी कौंसिल, अदि। वारसा सी० [सं०] ६४ कलाप्रो में से एक । कुरूप को सु वर कौंहर--सूज्ञा पुं० [देश॰] इद्रायने की जाति का एक प्रकार का फल बनाने की विद्या। जो पकने पर बहुत सु दर लाल रग का हो जाता है । काहुते कौट–वि०सं०] १ अपने घर पर कूठी में रहनेवाला । स्वतंत्र । हैं जिस स्थान पर यह फल रखा जाता है, वही सौर नही मुक्त । २. गुह मे पावित । घरेलु । घर छ । ३ जालसाज । war । कृवि लोग प्रायः इससे एडी की उपमा दिया करते बेईमानी । ४. जाल में फंसा हुअा या जलयुक्त [को॰] । हैं। उ०—(क) कौहर सी ए डीन को लाली देखि सुभाइ । पाये महावर देन को पाप भई वैपाय -बिहारी (शब्द॰) । कौट–सच्ची पुं० १ जलसाजी । बेईमानी। छल । घोवा । फ्रेब । (ख) जौहर, कोल, जपाल विद्म का इतनी जो वैधूक मे ३ वह जो झूठी गवाही दे [को०)। कोत है !-शभू (शब्द॰) । । यौ०--ौज= कुटज। कौतक्ष = स्ववृत्र रूप से काम करनेवाला की हरी-सच्चा ० [हिं० कोहर] दे॰ 'कहर' । बढ़ । प्रतिक्ष का विलोम । कीटनाक्षी = झूठी गवाही। की --सर्व० [हिं०] दे॰ 'कोई' । उ००-ईसीय ने देवल प्रतज्ञों कौढ साक्ष्य 5 झूठी साक्षी । झूठी गवाही । गयण सलूणा वचन सुमति । इचय ने साती को धड इ, इसी कौटकिक-सम। पुं० [सं०] १ व्याघ। बहेलियो । २ केसृाई । मासे मस्त्री नही रवि तले दीठ - सा, पृ० १५ । विक्क वा [को०)।