पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५५४

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कॉसाकाटी १०७० कोहा कोसकाटी–स स्त्री० [हिं० कोसना+काटना शाप के रूप में कोहकुन –वि० [फा० कोहकन] खोदने का काम करनेवाला । गाली । ददुआ । खनिक । उ०—है तुझ दर अस्ले गौहर के लगन, लाँल के कोसिया–सु बी० [सं० कोशिका] १ मिट्टी का छोटा कसोरा।। | इश्को हुई हू कोहकुन ।—दक्खिन, पृ० १८२ । कोहनी–सच्चा पुं० [फा० कोहक नी] पहाड़ खोदना । परिश्रम । २ चुनी रखने की कूडी ।—(तंबोली) । उ०--शी लव से रोग दिन को असर नहीं । फरहाद काम कोसिला-सद्या स्त्री॰ [सं० कौशल्या] दे॰ 'कौशल्या' । उ०—विहँग कोहनी का किया तो क्या ।--कविता कौ०, भा० ४, अ इ माती सो मिला। रामहि जनु भेंटी कोसिला ।—जायसी । पृ० ४१ ।। (शब्द॰) । | कोहल वि० [सं० क्रोधन, प्रा० कोहण] १ क्रोधी । २ तुनक• कोसिली-सज्ञा स्त्री॰ [दश०] १. पिराक या गुझिया नाम का मिजाज : उ०—हेरि चिर्त तिरछी फरि दृष्टि चली गई कोहन पक्वान । २ माम्रफल के भीतर की गुठली जिसमें वीज मुठि सो मारे ।—रसखान, १० १४। रहा है। कोहल’----सज्ञा स्त्री॰ [हिं॰] दे॰ 'कुहनी' । कोसी.-सी स्त्री० [सं० कौशिकी] एक नवी जो नेपाल के पहाड़ों से कोहनी समा जी० [हिं०] दे० 'कुहनी । निकलकर चंपारन के पास पास गंगा में मिलती है । कोहनूर--सज्ञा पुं॰ [फा० काँह+छ० नूर] एक बहुत बड़ा और विशेष--इसकी वहाव बहुत तेज है । रमायण में लिखा है। प्रसिद्ध हो । कि विश्वामित्र की वहन सत्यवती (दूसरा नाम कौशिकी) जब विशेष--इसके विप० मे ही जाता है कि यह राजा कर्ण के पास अपने पति के साथ स्वर्ग चली गई, तब इस नदी की उत्पत्ति था और पीछे मालवा के राजा विमादित्य के हाथ लगा हुई थी । एक मास तक इसके किनारे पर रहने से एक अश्वमेध था। सोलहवी शताब्दी के आरम मे यह हीरा ग्वालियर के यज्ञ का फल होता है। एक राजा ने गोलकुड के बादशाह को दिया था ! सन् १७३९ में करनाल के युद्ध के बाद वह नादिरशाह को मिला था। कोसी-सच्चा स्त्री० [सं० कोशिका] अनाज के वे दाने दो दायने के उसके वंशज शाहशुजा से यह हीरा राजा रणजीतसिंह ने वाद वाल या फली में लगे रह जाते हैं । गूड़ी । चंचरी। ले लिया। अत मे सन् १८१६ में यह अगरेजो के हाय अपि विशेष-- इस शब्द का प्रयोग प्राय जुमार या मूग के लिये ही और दूसरे वर्ष इगलैड में महारानी विक्टोरिया की भेंट हुआ | होता है। और अबतक वहाँ के राजकोवा में वर्तमान है। पहले यह कोसोस -सच्चा पुं० [सं० कपिशीर्षक] ३• 'कौसीस' । उ०—कोट ही ३१६ रत्ती का घी और संसार में सबसे बडा समझा कोसीसी नपर विसाल । धार नग्नी माइगम कीय वी० जाता था पर अब यह यह फिर से तराशा गया और तौल में रासो, पृ० १०४। केवल १०२३ रही रह गया ।, कोहंडौरी-सम्रा स्त्री॰ [दि० कुम्हY+ वरी] उर्द की पीठी और कुम्हड़े के ६ कोहबर-सा पुं० [सं० कोष्ठवर या कौतुकगृह] वह स्थान या घर जहाँ के गूदे से घनाई हुई वरी। विवाह के समय कुल देवता स्थापित किए जाते हैं और जहाँ कई कोरा-सम्रा पुं० [हिं०] दे॰ 'कुम्हार' । ४०-एक मिटटी के घडा प्रकार की लौकिक रीतियों की जाती हैं । ३०-कोहवरहि भ्राने घुइँला, एके कोरा सानो ।—कवीर० श०, पृ ८६२ । कुवर कु वरि सुग्रासिनिन सुख पाइके । अति प्रीति लौकिक कोह—-सा पुं० [फा०] पर्वत । पहाड़ । रीति लागी करन मगल गाइके ।--तुलसी (शब्द॰) । यौ॰—कोहिस्तान ।। कोहर –सम्रा पुं० [स० कोटर या कुहरो गुफा । कदर । खोह। कोह–समा पुं० [सं० झोघ] क्रोध । गुस्सा । उ०—किकर, कचन, । उ०—नदी सु एक जल किदु व सु एकह सुभ कोहर]-- कोई फोम के —तुलसी (शब्द०)। १० र०, २४॥३४२। । कोह३ - सा पुं० [सं० फुभ, प्रा० उह] अजुन वृक्ष । कोहरा सच्चा पु० [हिं० कुहरा! कुहासा । कुहिर । कुहरा। कोह–सच्चा स्त्री॰ [हिं० खेह, पुं० हि० खोहि खोह] घूल । गर्द। उ०- कोह –सच्चा • [देश०] उबाले यो वले हुए चने अादि । धुवनी । राण दिस हालिया ठाणे आणि रुख, कोह मासमणि चढ कोहल'--सच्चा पु० [सं०] १ एक मुनि जिन्होंने चोमेश्वर से सगीत भाणु ढका --रघु ९०, पृ० १४९। सीखा था और जो नाट्यशास्त्र के प्रणेता कहे जाते हैं २... कोहकन-वि० [फा०] १ पवंत काटनेवाला ! पर्वतभेदी । ३ शीरी जौ की शराब । ३.कुम्हडे की शराब । ४.एक प्रकार के प्रम फरहाद की उपाधि (ो । का दाज़ा ।। कोहकाफ-सुवा पुं० [फा० कोह= पहाड+काफ] एक पहाड जो कोहल-वि० [सं०] अस्पष्ट बोलनेन । साफ साफ उच्चारण न । यूरोप और एशिया के बीच में है। इसके पासपास के स्थानों करनेवाला (को॰] । के निवासी बहुत सु दर होते हैं । फारस अादि देशों के निवासियो कोहाँर --सच्चा पुं० [हिं०] दे॰ 'कुम्हार' । का विश्वास है कि इस पहाड़ पर देव और परियाँ रहती हैं। कोही-सच्चा पुं० [सं० फो= पान] १ मिटटी का बड। कूड़ा । झाकेशस । उ०-कुछ का मत है कि मार्यों का अदि स्यान जिसमें प्राय ऊख का रस या कॉजी आदि रखते हैं। नदि । फोहकाफ के पास या ।—प्रा० भा० प०, १० ५६ ।। २ कपाल की झाकृति का मिट्टी का वर्तन। ३,