पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५५

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२१ ज्ञ उतारक उत्तरायण य्यतृपद, जैन, भूपए के अभियोग के उत्तर में कोई कहे कि उत्तशृखल-पिं० [हिं०] ३० ‘उच्छल । उ०- 7 जाने वादी नै हृमें मारा है। (५) ग्रव्यापी, अर्थात् जिनके उत्तर जिते अन ईश्वरवादः ।-न मान्ने, १० ४६१ ।। का कोई टौर टिकाना न हो। (5) निगूढ़ायं, जैसे, इपए के उत्तसुमग –मधा पु० [हिं०] १० 'उत्तु माग' । ३०-- नाद मुट अभियोग में नियुक्त कहे कि हैं, या मुझपर चाहते हैं?' तसे मंग, रचि नहु त मन सुरग ---पृ० रा०, १६) है । अथ नि मुझ पर नही, किती और पा चाहते होगे । ( 6 ) उत्ती+---वि० [हिं० उतना [० उत्ती} उतना । ग्राइल, ने, 'मैने पर लिए हैं, पर मुझर चाहिए नही। उत्ता'- वि {० उतरा देते है । 3- डिका में डाले (१०) व्यायागम्य, जिन उत्तर में कठिन या दोहरे अर्थ के कुत्ता । सत्र के मन में उता --चर]० वा पृ० २८ । शब्दों के प्रयोग से व्याख्या की ग्रावश्यकता हो । (११) अमार, उत्तान-वि० [म • ! पोट को जमीन पर उगाए हुए । वित्त । सोच? | जैसे किसी ने अभियान चलाया कि अमुक ने व्याज तो दे यौ०–उत्तान्पणि । उलान्पाद । दिया है पर मू- घने नहीं दिया है। और वह कहे कि हमने उत्तान-स। पुं० वरक के मत है उन रक्त का एक भेद । इनकी प्रभाव त्वचा और नाम पर होता हैं। उ०-चात रन्क चौक दाज तो दिया है पर भूलधन लिया ही नहीं। ने दो प्रकार का कहा है-एक तो इत्यान, दूरा गभीर ।- उत्तरायण- सा पुं० [म०] १ मूर्य की मकर रेया में उत्तर, कई रेवी की अोर, गति । २ वह छह महीने का नमय जिसके बीच माधव नि०, पृ १५१ । सूर्य मकर रेखा में चलकर बराबर उत्तर न र वदता उत्तानक-सा मुं० [म०] उबट्टा नामक वन ०] : २ता है ।। उत्तानकम--संज्ञा पुं० [१०] पैठने की मुद्रा [2] । विशेष-सूर्य २२ दिगम्बर को अपनी दक्षिणी अनमीमा मकर- उत्तानपत्रक-मजा १० [२] नाल एर? [] । रक्षा पर पहचता है कि वह में मकर की प्रयन मकान 7 थाने उत्तानपात(५)..नज प ० [हिं०] ६० 'उरत न द' । उ०—उन्तान त २३-६४ दिमबर में उत्तर की अोर बढ़ने लगता है ग्रो २१ जुत्र । सुन अग्र जैन, ' हि जयं त इन ग्रचनतम |--० ० | पार्क रेखा अति उत्तरी भयननीमा पर पहुँच जाता है। उत्तरायणी--- सच्चा स्वी० [ म०] मगीत में एक मुर्छन। जिसका इत्तानपाद-संज्ञा १० [म.] ए राजा जी रवायंभुव मनु के पुत्र मौर रवर ग्राम यो है-- ४, नि, रे, ग, म, प, ल, रे, ग, म, प, । प्रhि; यत ४व के पि थे । ३०-नृप उत्त नपार्दै सुत उत्तरराणि-- सी सी० [सं०] दे॰ 'उत्तरारण' (०] । ताम्, व हरिभगत नएउ नुत जाम् ।--7निस, १॥ ४२ । उत्तरारणी-सज्ञा स्त्री० [सं०] अग्नि मथन की दो लकडियों में से । उत्तानपादज- संज्ञा स्त्री० [सं०] १ ,उतारा । २ [२] । पर की नडी। उत्तानश्य--वि० [सं०] ऊपर की तरफ मुंह करके लेटा है।[२०] । उत्तरार्ध - सज्ञा पुं० [सं०] पिछली अाधा। पीछे का अधं भाग । उत्तानशय-सज्ञा पुं॰ दुधमुहाँ वा [को०] । उत्तरापाढा-सा जी० [सं०] २१वां नक्षत्र । उत्तानहृदय-वि० [म०] १ निश्छ । निपः । साफ दिलाना । उत्तरासग---सा पु० [सं० उत्तरासग] दे॰ उत्तरवस्त्र' [को०] । २ उदार [को०] । उत्तरी-वि० [सं॰उत्तरीय] उत्तर दिशा से सवधित । उत्तर का [०]। र उत्तरी. स चौ॰ [सं०] कनटिकी पद्धति की एक रागिनी (संगीत) उतनत-वि० [सं०] १ कपर उठाया या फाया दुप्रा । २ की तरफ मुह किए हुए [को०)। उत्तरी ध्रुव--सा पुं० [हिं० उत्तरी +9 व पृथ्वी का ऊपरी मिर। उत्ताप-ज्ञा पुं० [सं०] [पि उनप्त मौर उत्तापित] १. गर्मी । तपन । नुमेरु [को॰] । २ कष्ट । वेदना । ३ दु म । शोक । उ०••जो कार्य में उतरीय-सा पुं० [सं०] १ उपरना। दुपट्टा । चद्दर । अोढनी । अभिमत द्रव्य, ३ दिने निज समर्थ । तो अपनी करनी २ एक प्रकार का बहुत बड़ी सेन जो वेड मजबूत होता है। पर छाप, पछताते पाकर उत्तर -मरावती (शब्द॰) । और सहज में काता जा सकता है। यह वडा मुलायम और ४. जोन । उग्रभाग । उ २-३ उिविध उरत प ३३ प्रवरुद्ध चमकीला होता है तथा सुर्व सन से अच्छा समझा जाता है । ना गर्जना, (यो उन्नत अनिल17 पूरित की पत्न साधन उत्तरीय--वि० १ ऊपर का । परपला ।२ उत्तर दिशा का ! भारो ॥-सीधा पाठ (ज०) । उत्तर दिशा नवघी ।। उत्तापित-f० [स०] १ गमं । तुपा ३१ । नहाने । ३ । यो०-उत्तरीय पट । दु वो क्लेशिन। उत्तरोयक'- सया पु० दे० 'उत्तय" को०] ।। उतापी-वि० [न० उत्तापिन्] उदृत गरिन । उन। उता पुग्न। २ उत्तरीयक-वि० दे० 'उत्तरी" [२] । दु जो किया है । इ स {F} } उत्तरेतर-वि० [२] उत्तर दिशा में नि । ददिणि [यै] । । उत्तार'-- f३० [न- १, नो । भैइ { । उत्तरत्तिर-- क्रि० वि० [मुं०] अागे अने। एक के पीछे एक । एक के उत्तार--; ० १, उद्धार करना । । । 1 । रिनारे पर | अननर दूसरः । श्मशः । नातार। दिनों दिन । उतारना । ३ त ?रना। ( बनने । ५ ६ ५ ":[{ { ६ । उत्तर्जुन-सा मुं० [नं०] १ प्रचइ तुजंन । ३ भयंकर नर्जन [३०] । उत्तलित----fi० [३०] ऊपर की तरफ उछाल मा फेंका हुप्रा [ । उत्तारवा'-- १० [] द्धार रमे ।। ।। [२] ।