पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५४८

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कौरम क कोरम–सह्या पुं० [अ०] किसी समा या समिति के उतने सदस्य महा०—कोरा छुरा यो उतवह उस्तरी जिसपर ताजा जितने की उपस्थिति कार्य निर्वाह के लिये अावश्यक होती है। सान रखा हो । वह सान रखा हुआ। छुरा जो चला। न किसी सभी या समिति के उतने सदस्य जितने के उपस्थित गया हो । कोरे छुरे या उत्तरे से मडना=(१) ताजी घाय रहने पर सभा का कार्य शरभ होता है । कार्यनिर्वाहक सदस्य के छुरे से सिर में इना, जिसमें बाल जड से मुड जाय अथवा सखया। गणपूति । जैसे,—साधारण सभा का कोरम ६ बा कष्ट हो। (२) सूखा मूड़न । बिना पानी लगाए मूना । सदस्यो का है, दर ६ ही उपस्थित हुए, कोरम पूरा न होने के कारण अधिवेशन न हो सका (३)खूब लूटना । खूब झेलना । कोरी धार या बढ़ = हथियार । कोरमकोर-वि० [हिं० फोरमकोर] १ पूर्णत । पूरी तौर से । २. की धार जिसपर सान रखा हो । तीक्ष्ण घार । कोरा पिडा= एकमात्र । सिर्फ । उ०—ये देानो लेखक मनुष्य के नैतिक अछूना शरीर । विना ब्याही पुरुप या विनश्याही स्त्री । व्यवितत्व को कोरमकोर अर्थाश्रित मानते हैं और क्षण क्षण २. (कपडा या मिट्टी का बरतन) जो धोया न गया हो । जिससे । जल का स्पर्श न हुअा हो। जैसे, कोरा घड़ा । वोरा कपडा । में उसकी खिल्ली उड़ाने को तैयार रहते हैं ।-नया, कोरा नैन सुख। पृ० १७ । महा०—-कोरा बरतन =(१) मिटट्टी का वह् बरतन जिसमे पानी कोरमा--संज्ञा पुं॰ [ तु० ] अधिक घी में भुना हुमा एक प्रकार का न डाला गया हो (२) नवोढा स् । अछूती कुमारी। मास जिसमे जल का अंश या शोरबा विलकून नहीं होता । (बाजारू)। कोरा सिर =(१) वह सिर जिसमे छुरा न लगा कोरबस-सज्ञा पुं॰ [देश॰] मदरास के भासपास रहने वाली एक जाति। हो । वह सिर जिसमे पेट के वाले हो । (२) वह मला इमा विशेष—इस जाति के लोग प्राय दौरियाँ अदि बनाते और सारे भारत में धूम घूमकर अनेक प्रकार के पक्षियों के पर एकत्र सिर जिसमे तेल न लगा हो। करते हैं । ३. जो रंगों में गया हो। जिसपर कुछ लिखा या चित्रित न किया गया हो । जिसपर कोई दाग या चिह्नु न हो । सादा । कोरवा--सा पुं० [ देश० ] १, पान की खेती का दूसरा वर्ष । साफ । जैसे,—कोरा कागज । विशेष---जो पान पौधो में दूसरे वर्ष लगती है वह अधिक उत्तम मुहा०- कोरा जवाब= साफ इनकार । स्पष्ट शब्दों में अस्वीकार । माना जाता है । ४.खाली । रहित । वचित् । विहीन । जैसे,—उन्हें कुछ वहीं २. दे० 'कोरा'। मिला, वे कोरे लौट आए। कोरस-सच्चा पुं० [अ०] पाँच सात व्यक्तियों का एक साथ गान । मुहा०—-कोर रह जाना = कुछ न पान। सिद्धि लाभ न करना। समवेत गान । समूहिक गान् । तृ०- रंगभूमि को कोरस वचित रह जाना । सो रस व बरसावे ।- प्रेमघन॰, भा॰ १, पृ० ४९ । ५ जिनपर कोई अघिात या बुरा प्रभाव न पड़ने पाया हो। कोरसकेन–सच्चा पुं० [ देश० ] एक बड़ा मौर सुहावना पेठ । अपत्ति या दोष से रक्षित । निरापद या निष्कलक । घेदार । विशेष—यह अवध, वगाल, आसाम और मदरास में अधिकता मुहा०--कोर वचना=किसी आपत्ति या दोप से साफ बचना । से होता है। लगाते ही यह पेट बहुत जल्दी बढ़ जाता है। ६ विद्याविहीन । मुखं । अपढ़ 1 जर्छ । ७ धनहीन । अकिंचन । और घना तथा छायादार हो जाता है। इसकी लकडी बहुत ६ केवल । सिर्फ । खाली । जैसे—कोटी बातों से काम न मजबूत होती है जो अधिक दामो पर विकती और इमारत चलेगा। के काम में आती है। कोरा-सज्ञा पुं॰ [सं० फरक] एक चिड़िया को तालो के किनारे कोरहन-सा पुं० [?] एक प्रकार का धान । उ०—कोरड्न रहती है। इसकी चोच पीली और पैर लाल होते हैं। यह धड़हन जवृहन मिला । औ संसार तिलक खेळविला ।—जायसी जेठ असाढ़ में अा देती है और ऋतु के अनुसार रंग { शब्द॰) । बदलती है । कोरहा+-वि० [हिं० फोर+ही ( प्रत्य॰) 1[वी कोरही | कोरा-सझा पुं० [?] बिना किनारे की रेशमी धोती। | कारवाए। नोकवार । | मन में किसी बात की कोर कसर कोरा*-सक्षा पुं० [सं० को गोद । वृछ । बनाए रखनेवाला । बुराई का बदला लेनेवाला । क्रि० प्र०-- लेना । यौ--कोरही सदरी = कसेरों की वह पत्नी और छोटी सवरी कोरा–सद्मा पुं० [देश॰] १.एका छोटा पड़ा। जो महीन काम करने के लिये होती है। विशेष—यह गढ़वाल, वरार, मध्यप्रदेश और मोसम में कोरही--वि० [हिं० को= गोद] गोद में बच्चत रहनेवाली । बहुतायत से होता है। यह पेच कद मे छोटा होता हैं। इसके को –सम पुं० [सं० कोड] गोद । चद्द गे । उ०-नैन जो चक्र फिर हीर की बड़ी सफेद, चिकनी और नरम होती है। देहरादून वह ओ । चरच घाई समाइ ३ को ।—जायसी प्र०, और सहारनपुर में इसपर खोदाई का काम होता है। इसकी पृ० २३७ । छाल, फूल पौर पत्त दवा के काम में आते हैं । कौर-वि॰ [सं० केवल] [स्त्री॰ कोरी] १ जो दरat न गया हो । २. एक प्रकार का सलमा जो कारचोबी के काम में माता है। जिसका वहार न मा हो । नम । अछूवी । ३. कख के खेत की पहची सिंचाई ।