पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५४६

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कोमल' कौयाँ कोमल-वि० [सं०] [सद्धा कमलता] १.मदु । मुलायम । नरम । ३ सुकुमार । नाजुक । ३ अपरिपक्व । फच्ची । जैसे कोमल मति वालक । ४ सु दर । मुनहरु । यौ०-कोमलचित्त=वह चित्त जो शीघ्र द्रवित हो जाये । दयापूर्ण चित्त । कोमल- सच्चा पुं० १ सगीत मे स्वर का एक भेद ।। विशेष--सगीत में स्वर तीन प्रकार के होते हैं---शुद्ध, तीव्र और कमल। पहज और पचम शुद्ध स्वर हैं, और इनमें किसी प्रकार फा विकार नहीं होता । शेप पोचो स्वर (ऋपम, गधर्व, मध्यम, धैवत और निपाद) कमल और तीव्र दो प्रकार के होते हैं । जो स्वर धीमा और अपने स्थान से कुछ नीचा हो, वह कमल कहलाता है। धीमेपन के विचार से कमल के 'मी तीन भेद होते हैं--कोमल, कमलतर सौर कोमलतम् ।। २ मृत्तिका। मिट्टी (को०)। ३ जातीफल । जायफल (को०)। ४. जल (को०)। ५. रेशम (को०)। कोमलक- सच्ची पुं० [२०] कमल की नाल का रेशा । मृणालतेतु | (को॰] । कोमलता--सच्चा स्त्री॰ [स] १ मृदुलता । मुलायमियत । नरमी । २. कोमलाग---वि० [स० फोमलाङ्ग] [वि० जी० फमलगी] कमल अगवाला। जिसका शरीर मृदुल हो। कोमुलगी--वि० [सं० कोमलाङ्गो सुकुमार अगोवाली। कोमला- सच्चा सौ० [सं०] १ वह वृत्ति जिसके अनुप्रासो मे व्यासपद हो, पर उसकी मधुरता बनी रहे। इसके दूसरे नाम प्रसाद | और लाठी या लाटानुस हैं । २ खिरनी का पेड़। कोमासिका-सूझा ली० [सं०] फलों के लिये छोटी जानी [को०] । कोय---सर्वं० [सं० कोऽपि, हि० कोई] कोई भी । उ०—(क) जुगन जुगन समझावत हारा, कही न मानत कॉय रे ।-कबीर श०, पृ० ३५ । (ख) मदामद वलए सर्वे कॉय पिइत नीम बाँक मैं है हम -विद्यापति, पृ० २८३ ।। कोयता–समा पुं० [सं० कत्त, प्र० फत्ता= छुरा] वाड़ी टपकाने | वालो का एक औजार जिससे वे छेव लगाते हैं । कोपर- सी पुं० [सं० पल] १ साग पाठ । सब्जी । तरकारी । २ वह हरा चारा जो गौ वैल अादि को दिया जाता है। कोयरी--सज्ञा पुं० [हिं०] दे० कोइरी' । उ॰—प ही करी और काछी भी अच्छी तरकारी और भाजी देख राजी हुए 1- प्रेमघन॰, भा० २. पृ० १८ । । कोयल'–सच्चा स्त्री० [सं० कोकिल काले रंग की एक प्रकार की चिड़िया । कौकिना । कोइलो । विशेप-यह आकार में कौवे से कुछ छोटी होती है और मैदानो में बसत ऋतु के आरभ से वर्षों के अंत तक रहती है यह चिडिया सारे संसार में पाई जाती है, और प्राय सभी भोपामो में इसके नाम भी इसके स्वर के अनुकरण पर वने है । भारत में कोयल अपने अडे कौवे के घोसले में रख देती मौर वही उसमें से वच्चा निकलता है। इसी लिए इसे सस्कृत में 'पपुष्ट' पर मृत' भी कहते हैं । इस अ६ लान, घोच कुछ झुकी हुई और दुम चौड़ी तथा गौन होता है । इसका म्वर वडून ही धुर और प्रिय होता है । वैद्य न के अनुसार इस फा मांस पित्तनाशक और फक्त बढ़ाने वाला है। कपल-सा खौ० एक प्रकार की लता । अपराजिता ।। विशेप-- इसकी पत्तियाँ गुलाव में मिलनी जुनती, पर कुछ छोटी होती है । इसमें नीले और सफेद फन होते हैं, और एक प्रकार फी फलियाँ तगती हैं। इसका प्रयोग औषधियों में बहुत होता है । वैद्यक के अनार यह ठढो, विरेचक और दमनकारक होती हैं । इसकी पत्तियों फ एम पीने से साँ। फा विप उतर जाता है कभी कभी इसका प्रयोग गरेपी दवा भ भी होता है। कोयला'-सा पुं० [सं० फोफिल == जलता हुआ अगर २ वह जना हेमा अंश या पदार्थ जो जली हुई लकडी के अंगारों को बुझाने से बच रहता है। २ एक प्रकार का खनिज पदार्थ जो कोयले के रूप का होता हैं और जलाने के काम में प्रतिा है। विशेष—यह कई रग और प्रकार का होता है । जहाजों मौर रेलो के इजिनो तया भट्को मादि में ही हो जाता है। हैं । इसकी अच वहुत तेज होती है और बहुत देर तक ठहरवी है। इसकी खाने ससार के प्राय सभी भागों में पाई जाती हैं। बनस्पति शोर वृक्ष अादि के मिट्टी के नीचे देव जाने पर बहुत दिनो तक उसी दशा में पड़े रहने के कारण उनकी सुडो लकड़ियाँ अदि जमकर पत्थर या चट्टान का रूप धारण कर लेती हैं और अ दर की गरमी से जलकर उसे वह रूप प्राप्त होता है जिसमें वह स्थानों से निकलता है । इसीलिए इसे पत्थर का कोयला भी कहते हैं । इसमें मिट्टी फा 'भी कुछ अग मिला रहता है जो इसके जल चुकने पर राव के साथ बाकी रह जाता है। मुहा०—कोयलो पर मोहर होना = केवल धोटे मौर तुच्छ खरचो की अधिक जांच पड़ताल होना । छोटे और तुच्छ पदाधं की अधिक और अनावश्यक रक्षा होना । कोयला–सा पुं० दश०] एक प्रकार का बहुत बड़े पेड जो साम मै हो । है । इसकी लकड़ी चिकनी, कड़ी प्रौर चढ़त मजबूत होती है और इमारत के काम में आती है । इराकी परिय} रेशम के कीड़ो को खिलाई जाती हैं। इसे सोम भी फत्ते हैं। कोयष्टि-सज्ञा पुं॰ [सं०] एक जलपक्षी । श्वेत वक । ककुल [को०] । कोयब्दिक-सज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'योयष्टि (को॰] । कोपासा पुं० [ १० फॉण ] १. अखि का डेला । उ०—(क) फरत भरे जल लोचन कोये ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) वाले का लाली परी लोयन कोयन मह । लाल तिहारे दुगन की परी दुगन में छह ।—बिहारी (शब्द०) । २. अखि का कोवा । कोया-सुज्ञा पुं० [सं० कोश] कटहल के फन के अ दर की वह गुठी जो चारो अोर गुदे से ढंकी होती है और जिसके अ दर योज होता है । कटहुल का बीजकोश । २ रेयम से कीड़े की घोल या आवरणे ।