पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५४५

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कोर फोर कोरंड--संज्ञा पुं॰ [सं० बर] १. अवृद्रि का रोग । ३ एक फुट ऊँची पहाड़ियों और तृराइ यो में पैदा होती है । चगाल | पौष (०) । प्रौर मदरास में अधिकता से इसकी चटाइयाँ बनती हैं। कोरंगा--संझा पुं० [द ज्ञ०] गोबर और मिट्टी से पोती हुई एक प्रकार इसे कहीं कहीं मुदर कटी भी कहते हैं। | की बौरी जिसमें अनाज आदि रखते हैं। कोरक-सच्चा यु० [सं०] १. कली । मुकुल । २ फूल या कली का कोरंगी-सा मौ० [सं० कोरङ्गी] १. छोटी इलायची । २. पिप्पली। वह वाह भाग जो प्राय. हरा होता है और जिसके अंदर । कोरबा-सा पुं० [हिं० कोर+ग्रेनाजु] वह अन्न जो मजदूरों को पुष्पदल रहते हैं। फूले की कटोरी । उ०—-कोरफ सहित मदुरी में दिया जाता है। अगस्दिया लढ्यो राह अवतार । कला कलाधर ही गिली जनु कोर-सवा • [स० कोण] १. किनारा । तट । उपकुठ। उ०--- उगलत एहि वार |-गुमान (शब्द॰) । ३. कमले की चार जना मिनि लेइ चने है, जाइ उतारे जमुनवा के कोर । नाल या डंडी I मृणाल । ४. चरक नाम का गधद्रव्य । ५ -घरम०, पृ० ७४ 13 किनारा । सिरा । हाशिया। इ० शीतल चीनी । केसरी बन्यो है बागो मोतिन की कोर लगो । फूल झरे जब कोरक-सज्ञा पुं० [सं० कोरक = मृणाल] एक प्रकार का मोटा और वह मुख छोन -भारतेंदु उ॰, भा॰ २, पृ० ४६१ ।। मजबूत वैत जो अासाम और वरमा में होता है और जिसकी मुहा०----कोर निकालना=किनारा वनाना । फोर मारना या छडियाँ बनती हैं। छाँटना= बढ़े हुए या धारदार किनारे को कम या बरावर कोर कसर-सा स्त्री० [हिं०कोर+फा०कसर १ दोष और त्रुटि । कृरना --वडई या सगतराश) । ऐव और कमी । १. अधिकता या न्यूनता ! कमी वेथी। ३ कोना। गोशा 1 अतराल । जैसे;-अगर इसके दाम में कुछ कोर कवर हो तो उसे ठीक मुहा०-कोर बना= किसी प्रकार के दबाव या वेश में होना। कर दीजिए। कृत में होना । जैसे—(क) “द तो इनकी कोर दवती हैं, क्रि० प्र०—निकलन- निकालना । अब वे कहाँ जायेंगे ? (ख) जबतक उनकी कोर न दवेगी, तब कोरट-सको पु० [अ० फोर्ट आफ बाउंस] १. ३० ‘कोर्ट अफू वार्ड स' । तक ३ रुपया ने देगे । जैसे,--कोरट का मुहरिर। २. किमी जायदाद का शौर्ट आफ ¥ द्वेष । वैर। वैमनस्य । उ०—-उत3 सूत्र ने टरित कृतहू, मोस वार्ड से में आना या लिया जाना । | मानव कोर 1—सूर (शब्द॰) । क्रि० प्र०—करना ।—होना । क्रि० प्र०—भनिनो --रत्नना ।। मुहा०-कोरट छूटना=किसी जायदाद का कोठे आफ् वार्डस ५ द्वेष । ऐव। बुराई । ६. कमी । कसर । उ०—सुतौ पुरवली के प्रबंध से निकलना । किती जायदाद पर से कोरट का प्रबंध अकरम मोर) बलि जा करो जिन कोर ---रै० वानी, उठना। कॉरट वैठना=किसी जायदाद की कोरट के प्रबंध पु० १७ ।। में अना। क्रि० प्र०—निकालना । कोरड –संज्ञा पुं॰ [देश॰] चावुक । कT } कोउ।। उ०—(क) यौ०-कोरकसर । हुने कृट लै कोरडे कोने मृत के समान । दिए छोड विस बार ७. हथियार की धार । वाढ । ८, पंक्ति । श्रेणी । कतार । उ० तिनि अप निज निज यान -अवै०, पृ० १२ (ख) कोर वधि पाँचो मये ठाढे । अागे घरे जंजालन गढेि । कोला राव बोला ई लुगाई नै उतारो । डा जो फिर तो सूदन (शब्द॰) । कोर से फेरि मारो ।-- शिखर०, पृ० ६.१ %ि० प्र०—बपना। कोरदार-वि० [हिं० कोर+फt०दार.] किनारेदार । नुकोला । कोर-ससे भी० [देश॰] १. चैत्री फसल को पहली सिचाई । २. अनिया। उ०—ये २ केजे खजन चकोर भर गंजन सो, वह अवैन। या मर खाद्य पदार्थ जो मजदूरों का कुलियों को करत कजाकी कजरारे नैन कोरदार।–पोद्दार अभि० ग्र०, जलपान के लिये दिया जाता है । पनप्यावे । छाक । पृ० ५७३। त्रि० प्र०——देना ।--बाँटना ।—पाना ।—लेना आदि। कोरप, कोरदूषक-- संज्ञा पुं० [सं०] कोदो । कोद्रव [ये। कीर–संा पुं० [सं०] सुत्रत के अनुसार शरीर की आठ प्रकार की कोरना'-क्रि० स० [हिं०] दे॰ 'कौड़ना। सघिपों में से एक प्रकार की सुधि । इस सधि पर से अवयव कोरनारे-क्रि० स० [हिं० फोर+ना (प्रत्य॰)] १ लन्डी ग्रादि में मुढ़ सकते हैं । उगली, कनाई, कुहनी और घुटने की संधियाँ । कॉर निकालना । २ छील छाल कर ठोड करना । दुरुत्व इसी के अंतर्गत हैं । २. कुड्मल । कली (को॰) । करना । उ०—वनदासी पुर लोग महामुनि किए हैं काठ से झार-सहा पुं० [अ०] पलटन | सैन्यदल । जैसे,—वालंटियर कोर। कॉरि ।—तुलसी (शब्द॰) । ३. किनार बनाना । छांटना । कोर-वि० [फा०] सूर । मधी। दिना प्रौधोवाला (को॰] । ३. खरोचना । खोदकर गड्ढा बनाना। उ०--मोझरी की कोर--वि०--[हिं०] करोड़ । कोटि। झी कधि अविनि की वेल्ही बाँध, मू] के कमंडलु, खपय झोरई--सा औ• [देश॰] एक प्रकार की घासे । झिये करिके -तुलसी प्र ०, पृ० १६५ विष-यह घास हिमालय में काश्मीर से वरमा रु ६००० कारना ... कोरनी--सब धी० [देश॰] पत्थर पर खुदाई का काम । सुगतराशी।