पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५४१

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कोतरी १०५६ कदिवली चढ़ि काम जाहि कोतर तर पंपी । अवृत्त वृत्त सुदरिय काम करही। कोविक नारि पुरुप जो मरही ।हिदी प्रेमा०, बदिय वर अ पी 1-पृ० ०, २५६७५ ।। पृ० २१६ । कोतरी---सा बी० [देश॰] एक प्रकार की मछली । कोतिक -संज्ञा पुं॰ [सं० कौतुक] दे॰ 'कौतुक' । उ०—कोतिक कोतल--सा पु० [फा०] १. सज़ा सजयी घोडा जिमपर कोई लखे हुय विकराल दीरघ रद किया ।-रधु० ०, पृ० १२९ । सवार नै हो । जलसी घोडा । २. स्वयं राजा की सवारी का कोतिगG+:--सझा पु० [हिं०] दे॰ 'कौतुक' । उ०—गनपति सारद घोड़ा। उ०-गवनहि भरत पयादेहि पाये। कोतल सग जाहि मानि के, राधे पूर्जी पाय । कृष्णकेलि फोतिग कहाँ, ताकी फया 'डोरियायै ।—तुलसी (शब्द०) ! ३ वह घोड़ा जो जरूरत के वनाय ।-व्रज प्र०, पृ० १ । वक्त के लिये साय रखा जाता हैं । कतिल -सञ्ज्ञा पुं० [ तु० फोतल ] दे॰ 'कोइल' । उ००-चपल कोतल-वि० जिसे कोई काम न हो। खाली । कोतिले कलल चंचल, विहद मंद गेल भ्रमर अलब न !--- कोतल गारद--सुशा पु० [अ ० क्वार्टर गार्ड] छावनी का वह प्रधान रघु० ६०, पृ० १२८ ।। स्थान जहाँ हर समय गारद रहती है और जहाँ दलेलबालो कोथ-सा पुं० [सं०] १ आँख की पलक के भीतर का एक रोग । की निगरानी होती है। कयुम्न 1 २. भगंदर । ३ मचन् । मथना (को०) । ४ सड़न । कोतवार—संक्षा पुं० [स० कोट पाल] ३० कोतवाल' । उ०-भरम कोथ.--वि० पीड़ा से युक्त । २. मथित छे । मौरि ने देश कोतवार । काड़ न के ग्रो नहि करयै विचार - कोथमीर-सूझा पुं० [] हरा धनिया । विद्यापति, पृ० ३८६ । कोतवाल---सच्चा पुं० [सं० कोट पाल, प्रा० कोटवाल] १. पुलिस का कोथरो ---सच्चा स्त्री० [हिं०] १ कोठरी । २ दे० 'कोयली' 1 उ०एक प्रधान कर्मचारी जो किसी जिले के प्रधान नगर में राम रतन मुख फोगरी पारख अार्ग खोलि |--कचौर ग्र०, रहता है और जिसके अधीन कई याने और थानेदार होते हैं। पृ० २५९। इसपर नगर की शांतिरक्षा का मार रहता है। डिप्टी कोथला-ज्ञा पुं० [हिं० गूगल अथवा कोठ ला] १. वेडा थैला । के सुपन्टेिंडेंट पुलिस । २. वह कार्यकर्ता जिसका काम पडितो २. पेट । की सभा या पंचायतवाली बिरादरी अथवा साघुग्रों के अखाडै मुहा०—कोयला भरना= भोजन करना । (व्यंग्य) । की वैठक, भोज आदि का निमंत्रण देना और उनकी ऊपरी कयली-सज्ञा स्त्री० [हिं० कोयला] रुपए आदि रखने की एक प्रकार प्रवध करना हो । की लव पतली थैली जिसे लोग कमर में दाँधकर रखते हैं। कोतवाली-सृज्ञा स्त्री० [हिं० कोतवाल + ई (प्रत्य॰)] १. वह स्थान हिमयानी । उ०—खरे दाम घर मैं धरे खोटे ल्यायो जोरि । या मकान जहां पुलिस के कोतवाल का कार्यालय हो । ३ मिहि कोथली माहि घरि दीनी गठि मोरि ।-अधं०, १० कोतवाल का पद या हुदा । ४७ । ७ २. कोठरी । कोतह-वि० [फा०] छोटा। कम । कोथी-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] (तलवार ) म्यान के सिरे पर लगा हुआ। कोतह, गर्दन- सच्चा पुं० [फा०] वह जिसकी गर्दन छोटी अर्थात् बहुत धातु का छल्ला या टुकडा । म्यान की साम । कम लंबी हो । कोदंड-सच्चा पुं० [सं० कोदण्ड ] १ घनुप । कमान । कोतहमदनी):- वि० [फा० कोतद्वगन+ई] छोटी गरदनेवाल। य०---कोदंडकला= धनुर्विद्या ।। उ०--कोवइगरदनी ऐचा छानी । कुवजा डर विर की खानी। २. धनराशि । ३ 'मह । ४. एक प्राचीन देश । कवीर सा०, पृ० १५६६ ।। कोद--सुथा स्त्री० [सं० कोण अथवा कुन] १. दिशा । और। कोहनजर-वि० [फा० कोतह नजर] स्यूज बुद्धिवाला 1 अदूरदर्शी तुफ 1 उ०-- भाग के भाजन जति जहाँ चहु कोदनि मोह [को०] । विनोद निपाये |-गुमान (शब्द०) ३ कोना । उ०--- कोता--वि० [फा० कोतह] {सी० कोती] छोटा ! कम । अल्प । साखी हैं वेनी प्रवीन जु प अवही इतै भाजि दुरे कह कोद में । उ०--सुर गंधर्व सरिस नर नारी, नहि विद्या बुद्धि कोती । --बेनी (शब्द॰) । • रघुराज (शन्द०) । कोदइताई-सज्ञा पुं० [हिं० कोदो+ऐत (प्रत्य०) ] कोदो दलनेवाला । कोताह --वि० [फा०] छोटा ! अल्प । कम । कोदई---सा स्त्री० [सं० फोद्रव] दे० 'कोदो' । कोताही सच्चा झी० [फा०] बटि । कमी । कोर कसर । कोदरा--संज्ञा पुं० [सं०फोद्रद] दे॰ 'कोदो' । कोति--सा जो० [सं० कुत्र =किधर या कुत ] दिशा । शोर । कोदरत-सम्रा पुं० [हिं० कोदो + वरना] कोदो बनने की चक्की ३०-दामिनि ! निज दुति दरपि के चमुक ने अब इहि कोति । जो प्राय चिकनी मिट्टी को बनती है। नृ० १० (शब्द॰) । कोदव--सज्ञा पुं० [सं० कोदन] कोदो । कोतिक(G+:--वि० [हिं० दे० 'तिफ' । उ०—-राजा येती दुख जिनि कोदवला-सच्ची सी० [हिं० कोदो] कोदो के पेड के प्रकार की एक प्रकार की घास, जिसके नरम पते चपाए शौक से खाते हैं।