पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५३८

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कौच १०५४ कौटर कोच-सझा पुं० [सं०] १ संकोच । संकोचन । २. एके मिश्र जाति । लक्ष्मी ते नाश करती फिरती है कि 'को जागर' अति कौन कैवर्त और कुसाई स्त्री के सुयोग से उत्पन्न जाति [को०] । जागता है ।। कोचकी सजा मुं० [देश॰] मकोइया से मिलता जुलता एक प्रकार का कोजागरी-वि० [सं० कोजागरीय] कोजागर के पर्व वाला । कोजागर रग जो ललाई लिये भूरा होता है और कई प्रकार से बनाया या अाश्विन पूणिमा सबंधी । उ०—दीप कोजागरी वाले कि | जाती है । | फिर अावे वियोगी सव -हरी घास ०, पृ० ३६ । कोचना-क्रि० स० [सं० कुच= लकीर करना, दिखना] धंसाना । कोट-सज्ञा पुं० [सं०] १ दुर्ग । गढ़ । किला । चुभाना । छिन । यौ॰—कोप । कोटयाल । महा०---कोचा करेला == वह चेहरा जिसपर शीतला के बहुत से २. शहरपनाह । प्राचीर 1 ३ रज मदिर। महल । राजप्रासाद । दाग हों। (व्यंग्य में) । ४ छप्पर ! झोपडा (को०)। ५ दाढ़ी (को०) । ६ कुटिलता। फौचनी-सच्चा स्त्री० [हिं० कोचना] १. लोहे का एक छोटा औ नार फुटिलपन (को०) । जो सुई के आकार का होता है और जिससे तलवार की म्यान फोट–सद्मा पुं० [सं० कोटि] समूह । यूथ । जत्था । उ०--चले तुरंग के ऊपर छा चमडा सोया जाता है । २ बैल हाँकने की छड़ी । अपार कोटि कोटि को कोद करि । सोहुत सकल सवार रामापैन । औगी । ३. फोचने की कोई भी वस्तु । गमन अनद भरि 1--रघुराज (घाब्द०)। २ कोटि । करोड़। कोचबकस-सबा पुं० [अ० कोच+घाँस] घोडा गाड़ी में वह कचा उ०—अनतहि चदा ऊगिया सूर्य झोट परकास दरिया स्थान जिसपर होकनेवाला वैठता है । घानी, पृ० १५ । कचरा सच्चा पुं॰ [देश॰] बड़े पेडो पर चढ़नेवाला एक प्रकार की कोट-सज्ञा पुं० [अ०] अ गरेजी ढग का एक पहनावा जो कमीज घनी लता । या कुरते के ऊपर पहना जाता है और जिस का सामना बटन विशेष—इसकी पत्तियाँ एक अंगुल लवी तथा दोनो ओर नुकीली दार होता है । होती है। जेठ, अषाढ़ में इसमें पीले रग के फूल गुच्छों में लगते यो०-कोट पतलून= साहवीं पहनावा । योरोपीय पहनाना । हैं, और दूसरे वैसाख तक फल पक जाते हैं । यह लता गोडा, कोट अरलू-सच्चा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की मछली जो समुद्र में बहराइच तथा खसिया और भूटान में होती है । होती है और जिसफा मासे खाने में बहुत स्वादिष्ट होता है। कोचरी—सा जी० [देश॰] एक प्रकार का पक्षी । उ०—करे कलोल कोटक---संज्ञा पुं० [सं०] १ झोपड़ी बनाने वाला व्यक्ति । २ एक कोचरी उलूक उच्च लूकहीं --सुजान०, पृ० ३० ।। वर्णसकर जाति । सुगतराशु और कुम्हार की लड़की से उत्पन्न कोचवान--सुच्चा पुं० [अ० कोचमैन] घागाडी हाँकनेवाला । व्यक्ति [को॰] । कोचा--सज्ञा पुं० [हिं० कोचना] १. तलवार, केटार, अादि का हलका कोटगधले सज्ञा पुं० [दश०] एक प्रकार का छोटा पेड़ । घाव जो पार न हुआ हो । विशेष-इसकी लकड़ी कड़ी, चिकनी और मजबूत होती है और क्रि० प्र०—देना ।—मारना ।—लगाना । इमारत के काम में आती है । वगाल, मध्य प्रदेश और मदरास २ लगती हुई वात् । चुटीली बात । ताना । व्यग्य । में यह पेड़ अधिकता से होता है । कोटचक्र---सज्ञा पुं० [सं०] तत्र के अनुसार पक प्रकार का चक्र, क्रि० प्र०—देना । जिसका प्रयोग युद्ध से पहले अपने दुर्ग का शुभाशुभ परिणाम कोचिडा--सधा पुं० [३०] जंगली प्याज जो दक्षिण हिमालय में जानने के लिये होता है । | होता है और खाने तथा देवा के काम में आता है । कोड़ा। कोचिला- सुद्धा पुं० [हिं०] दे० 'कुचला' । विशेष—यह आठ प्रकार का होता है, जिनके नाम ये हैं--- कोची-सज्ञा पुं॰ [देखे०] बबूल की तरह का एक जगली पेछ । मृण्मय, जलकोटक, ग्रामकोटक, गह्वर, गिरि, इमर, वक्र मूमि और विषम । वनरीठा । सीमाकाई । कोही–सच्चा स्त्री॰ [हिं०] दे० 'कोठरी' । उ०-प्रौर नापनदास विशेष—यह पूरब और दक्षिण भारत के जगलों में अधिकता ने अपने घर के अागे दोऊ ओर वैष्णवन के उतरिबे को न्यारी से होता है । इसकी छाल और पत्तियां प्राय,औषध के काम न्यारी कोनी करि राखी दृती !—दो सौ बावने, 'भा० १, में माती हैं। इसकी सूखी फलियों को लोग अविले या इमली पृ० ११६ । | की भाँति रगड़ कर उससे सिर के बाल धोते हैं । कोटन-सा पुं० [सं०] शीत ऋतु । हेमंत ऋतु [को०] । कोचीन--- सच्चा पुं० [देश॰] मदरास प्रात की एक देशी रियासत जो कोटपाल—सच्चा ५० [सं०] दुर्ग की रक्षा करनेवाला । कि नैदार ! ट्रावनकौर राज्य के उत्तर में है ।। कोटपीस—सद्मा पु० [अ० फोर्टपीस] दे॰ 'कोर्ट पीस' । कोजागर-सच्चा पै० [सं०] अश्विन मास की पूर्णिमा । शरद पूनो। कोटभरिया----सच्चा स्त्री० [सं० कोड5+हि० भरना] वह लकडी जो विशेष—ऐसा माना गया है कि इस रात को लक्ष्यी संसार का नाव के किनारे किनारे ऊपर की ओर जड़ी रहती है । भ्रमण करती हैं और जिसे जागरण फरते और उत्सव मनाते कोटमास्टर--सज्ञा पुं० [अ ० क्वाटर मास्टर] ३० क्वार्टर मास्टर' ! पाती हैं, उसपर प्रसन्न होती मौर उसे घन देती हैं । मानों ओटर-सा पुं० [सं०] १ पेड़ का खोबना माग । उ०—-रूखने तर