पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५३७

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कोटरी १०५५ टो मुनि भन्न परचो है। गुरु कोटर हैं यह 5 गिरयो है।-श फरो । अमिन । अन् । अनगिनत । एतं धिके । उaतुला, पृ० ११ । ३ दुर्ग के आसपास का वह कृत्रिम वन जो कोने हैं फोटिक जतन अव कहि काढे कौनु । भो मन में इन रक्षा के लिये लुग:या जाता है। रूपु मिलि पानी में को नौनु ----हिरी (ग्द०) । कोटरा-सा बी० [भ] वाणासुर की माता का नाम । कोटिझम---सा पु० [सं०] श्रेणी का क्रम । विकासक्रम । उ०--- कोटरी- स्त्री० [सं०] १. दुर्गा। चंडिका । काली । २. नग्न स्त्री। हमने उपन्यास । और उसके कोटिम पर ही प्रसि ध्यान नंगी महिला ]ि ! रखफर • • • ऊपर की पत्तिय विवी है ।--वाहित्या, पृ० कोटला-- सा पु० [दु० कोतल] दे० कोतल'। उ०—दुग्न फोटल १५७ । । दृग्न नृपति के किन्ने हुजुर नि !---पृ० रा०, ७ । १०६ । कोटिज्या--सी स्त्री० [सं०] ग्रहों के स्पष्टता के लिये बनाए हुए कोटवार -सबा पुं० [सं० टिपाल, प्रा० कोटवार] दुर्गरक्षक । | एक प्रकार के क्षेत्र का एक विशेष अङ्ग । किलेदार । ३०--पौरि पंव कोटवार बईठा ३ पैम क लुवुधा मुरंग पई 1--पदमावन, पृ० २६२ ।। कोटवालमा पु० [६०] दे० कोटपाल' । उ०—-पाय चेतन झोटवानं 1----रामन०, पृ० १५ । झोटवी--सी बी० [सं०] १० कोटरी' []। कोटा--स। पुं० [अं॰] वह निर्धारित अ श जो किसी को देने या लेने के लिये हो । यौ०-कोटा परमिट । कोटि-सी वी० [सं०] १. धनुष । सिरा। ज्ञान का गोशा । उ०-क्षत्रियों के चाप कोटि समक्ष, लोक मे है कौन दुर्गम विशेप---इस क्षेत्र में ३-झ या घ-, और स-न या घलक्ष ।---साकेत, पृ० १८११२ किलो अस्त्र की नोक या धोर।। सात, पृ० १२१ २ कि अस्त्र का नाक या वा छ अ शक्रोटिज्य है । ३. वगै । भैणी । दरजा 1 ४ किसी वादविवाद का पूर्वपञ्च । कोटितीर्थ--सया पुं० [सं०] तीये विशेष । इस नाम के तीर्थ मने हैं। ५ उत्कृष्टता ।उत्तमृता । ६. अर्धचद्र का सिर । ७ सम्ह। पर उज्जैन और चित्रकूट के तोयं अधिक प्रसिद्ध हैं। बत्यो । ६, किसी ६० अंश के धाप के भाग दो में से एक । कोदिध्वज- सी पुं० [सं०] कोट्यधीशु । करोड़पति [० । कोष्टिपात्र--सा पु० [सं०] नावे का पतवार ०] । कोटिफली--सधा पु० [सं०] गोदावरी नदी के सागरसम्म के निकट | का प्रसिद्ध तीवं है । विशेष--जव सिंह राशि पर बृहस्पति प्रोता है, तब इन स्यान पर वडा मेला लगता है । उस समय तीर्थ में स्नान करने का बड़ा फल है । कहते हैं, इन का अहल्यागमन का पाप इसी वीर्य के स्नान से छूटा था । कौटिर--सपा पुं० [सं०] १. साघु के सिर पर सींग ॐ १३ छ। बनाई हुई जुटा । २ इंद्र । ३. नत। नैतिY. बीरबहटो (5 से थे तक का चाप ६० अस का है। उसकी एक असे का । कोटिश-क्रि० वि० [सं० कोटिस् ] अनेक प्रकार है । बत ग उसके दूसरे में ब ग घ की कोटि है और ग घ उसके दूसरे प्रकार से । । पेर रु १ की कोटि है ।) ६ किसी त्रिभुज या चतुभुज की। कोटिश..---१० बहुत अधिक । बढ़े 21 । अनेने छ । जैसे,--- भूमि या साधर और छण से मुन्न रेखा । १०. राशिचक्र । पापको कोटिन' धन्यवाद । को तृतीय मेन । ११ पसवर नामक सुगंध टू जो धौपचे कोटिवेधी-वि० [सं० कोटिपिन्] १. पिते हैं पर प्रहार करते के काम में आता हैं। १२. अतिरी सीमा पा तिर । टि---वि० [सं०] सौ लाख की सुया । कृढ़ । | बला । २ (३०) अत्यंत कठिन कार्य $ग्ने छ । कोटि-- -- १६ पु० [सं०] १. मेढक । दादुर।३. इ टौ । गोप्वटी फीटिथ-सा पी० [१०] दुर्गा दे । फोटोस वी० [सं०] ३• 'कोटि (६० ।। दिक वि० [६० को+क), ६g 1 उ०—ोऊ कोटिक फोटोर-छा पुं० [३०] १, (नधि के माथे पर) 517 के पछ!! को लाच हजार। मो से प्रति उति चई विपतिको । २ नि। । । ।३.६ (३, दिमिर-ठिा ( ३)। २ नै छ करो। फोटो-म ३० [सं०] पनि । छपवा ।।