पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५३६

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कोक १०५३ कोकिल कोक–सच्चा सौ० [फा०] कच्ची सिलाई । कोकवसबा पुं० [सं०] एक संकर राग जो पूरी बिलावन, केदारा, कोकग्रगम (५-सपा पुं० [सं० फोक+अागमन] कामशास्त्र । काम | मारू मौर देवगिरि से मिलाकर बनाया गया है । कला । उ० - काव्य को अागमहि बखनिहु ।--माधवानल०, कोकवा- संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का धस जो वरमा मौर | पृ० २०६। अासाम में बहुतायत से होता है । यह टोकरे बनने के काम कोई-वि० [तु० फोक] ऐसा नीला जिसमे गुनावी की झलक में अाता है । | हो। कोडियोला। कोकशास्त्र-सवा पुं० [सं०] कोककृत रतिशास्त्र । कोकई–मुच्ची पुं० [d० कोक] ऐसा नीला रम जिस में गुलाबी की कोकहर—सच्चा पुं० [सं० कोक +हर] चकवा की अनद हरण करने झलक हो । कोडियाला रग । वाला--चद्रमा । शशि ।। विशेष—यह नील, शहद और मजीठ के सयोग से बनता है। कोका'-सा पुं० [अ०] दक्षिणी अमेरिका का एक वृक्ष । फोककला-सच्चा स्त्री० [सं०] रतिविद्या संभोग संबंधी विद्या । उ० विशेष—इसकी सुखाई हुई पत्तियाँ चाय या कहवे की भाँति गहि अग संगै अासन दियब, कोक कला रस विस्तरिय । शक्तिवर्धक समझी जाती हैं। इसके व्यवहार से थकावट और ० रासो, पृ० ४१ । भूख नहीं मालूम होती, इसलिये वहाँ के निवासी पहाड़ों पर कोकट–वि० [सं० कुक्कुटी] मटमैले रग का । गदा । मैले से भरा चढ़ने से पहले थोड़ी सी सूखी पत्तियां चबा लेते हैं। इनमें एक ६ (कपडा) । प्रकार का नशा होती है, इसलिये एक बार इनका व्यवहार कोकटी- सज्ञा स्त्री॰ [सं० कुवफुटी, हि० कुकटी] दे० 'कुकडी' । उ० आरंभ करके फिर उसे छोड़ना कठिन हो जाता है। कोकेन | कोकटी की रूई खरीदकर उसने दो सेर सूत्र इसनिय काते। इसी से निकलता है। —रति, प०१३१ । कोका–सच्चा स्त्री० [तु० को कह] धाय की सनान । दूध पिलानेवाली कोकदेव-सचा पुं० [सं०] १ कोकशास्त्र या रतिशास्त्र का रचयिता । की सतति । दूधभाई या दूधवहिन । २ सूर्य (को०)। ३ कपोत । कबूतर (को॰) । कोका-सच्चा पुं० [हिं० को] एक प्रकार का कबूतर । कोकन--संज्ञा पुं॰ [देश०] एक ऊँचा पेड़ जो असाम और पूरबी बंगाल को कासच्चा सी० [?] नीली कुमुदिनी । मे होती है। विशेष--दे० 'कोकावेरी'। विशेष—इसकी पत्तियां शिशिर में झल जाती हैं । इसकी लकी कोकाबेरी-सच्ची श्री० [कोका+देलो नाली कुमुदिनी । नील कुई। अंदर से सफेद निकलती है जिसपर पीली पीली धारियाँ होती है । विशेष—यह पुरानी झीलो या तालावो में होती है । इमका फून । हैं । लकड़ी का वजन प्रति घन फुट १०से १६ सैर तक होता नीले रंग का, बड़ा और सुहावना होता है। इसमें भी कुई है। देखने में तो मुलायम होती है । पर न फटती है। की तरह बीज होते हैं, जिनका आटा व्रत में फलाहारा की और न झुकती है । यह चाय के सदूक और नाव बनाने के तरह खाया जाता है । इसके बीज भूनने से लादा हो जाते काम मे आती है तथा मुकानों में भी लगती है । हैं,जिसे चीनी में पागकर जड्डू बनाते हैं । कोकनद-सपा पुं० [सं०] लाल कमल । १ लाल कुमुद । लाल कुई । कोकाबे नी–सवा स्त्री० [सं० कोका+हिं० वेली] दे० 'कोकाबे'। कोकना—क्रि० स० [फा० फोक (= कच्ची सिलाई) +fहि० ना। उ०—कोकाबेली, पवन सियरी वारि की चारुताई । को है। (प्रत्य॰) ] कच्ची सिलाई करना । कच्चा ! करना । लंगर ऐसो, फरह नह ये जासु तल्लीनाई।--द्विवेदी (शब्द॰) । डालना। फोकना --क्रि० स० [हिं० ककना] बुलाना । चिल्लाना। ३० कोकामुख–सद्मा पु० [सं०] भारत का एक प्राचीन तीर्थ जिसका कोकै पाइयो अरी परधान । दोधों ॐ जब तिहा चगुण उल्लेख महाभारत मे अाया है। भान -वी० रासो, पृ०६७ । कोका-सच्ची पुं० [सं०] सफेद रंग को घोडा। उ० हर कुरग कोकनी'---सा पुं० [सं० कोक = चकंवा] एक प्रकार का तीतर ।। महुअ बहु भीती । गरर को काह बलाह सुपती (–जापसी कोकनी-सज्ञा पुं॰ [देश ०] एक प्रकार का सतरा जो सहारनपुर और (शब्द॰) । | दिल्ली में होता है । कोकिल--सच्चा पुं० [सं०] १. कोयन । फोकनी-सझा पुं० [तु० कोक = असमानी] एक प्रकार का रग जो पर्या-पिक । परभृत । ताम्राक्ष । वनप्रिय । परपुर । अन्यपुष्ट। शहाव, लाजवदं और फिटकिरी से बनता है। वसतदूत । रक्ताक्ष। मधुगायन ! कनकठ । क माघ । क'कलीकोकनी*--वि० [देश ०] १ छोटा । नन्हा । जैसे,—कोकनी बेर, रव । कुहूख । कोकनी केला। २. घटिया । निकृष्ट । जैसे,- कोकनी यौ०---कोकिलक ठी= दे० 'कोकिल वैन । फोफिल नयन = तास कलावत। मखाना को कलि बनी कोयले जैसा मधुर बोलनेवाली । कोकवधु-सया पुं० [सं० को कवयु] रवि । सूर्य । दिनकर (को०)। ३०–लक सित्रिनी सारनैन । हे सगामिनी कोकिलवैनी। कोकम–सद्मा पुं० [सं०] एक छोटा सदावहार पेड़, जो केवल दक्षिण —जायसी नं २, पृ० १२। कोफिल रव । दे० 'कोमिनाव' । भारत में होता है। १, नीलम की एक छाया। एक प्रकार का चूहा जिस केकाटने विशेष-दे० 'मसले । से ज्वर आता है और बहुत जलन होती है। ४ छप्प का