पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५३३

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कोक १०५१ कोरडार कोइलनकालने के समय इ दानी इसलिये है। पड़ी हैं, उनमें से कोई ले नो । (व) हमारा कोई क्या कर लिप -पृ० १०, १। ७१६ । (ख) कौइक प्रखर मति लेगा ? । बस्य उटी पंव सभोर ।—दोला, दू० ६७ । | मुहा—कोई एक या कोई सा = जो चाहे सो एक ।। कोइार - मुक्की पुं० [हिं० कोइ+ अार (प्रत्य॰)] वह खेत या ३ एक भी (मनुष्य ) जै-वहाँ कोई नहीं हैं। स्थाने ही कोइरी लोग साग, तरकारी आदि वोत हो । कोई-वि० १. ऐसा एक ( मनुष्य या पदार्थ ) जो अज्ञात हो । कोइना - सा पुं० [हिं० कोग्रा+इना (प०)] महुए का पका मुहा०--कोई वम का मेनुमान= थोड़े ही कल तक मौर छन । गोलँदा । जीनेवाला । शो मरनेवाला । कोइराना-सस पुं० [हिं० कोइरी] वह वस्ती जना कोइरी रइवे हो। २. बहुतों में से चाहे जो एक । ऐसा एक जो अनिदिष्ट हो। कोइरा-[हिं० कोइरी ! दे० 'कोइडार' । जैसे,—इनमे से कोई एक पुस्तक ले लो । ३. एक भी । कुछ कोइरी-तज्ञा पुं० [हिं० फोयर = साग पात] एका जाति । इस जाति मी । जैसे—(क) कोई चिंता नहीं (ख) यह कोई पढना के लोग चाग, तरकारी प्रादि बोते गौर वेचते हैं। काछी । नहीं है। कोइल'—सद्म औ० [स० कुण्डली] १ गोल छेददार लकडी जो महा०----यह भी कोई बात है ? = यह कोई बात नहीं है। ऐसा मक्खन निकालने के समय दूध के मटकै या मेहंडे के मुंह पर नहीं हो सकता। ऐसा नहीं होना चाहिए । जैसे,—(क) जब रखी जाती है और जिसके छेद में मचानी इसलिये डाले दी कोई बात है। जाती है कि जिसमें वह सीधी घृने और उससे मटका न फूटे। हम अाते हैं तब तुम चल देते हो । यह भी २ कर में की वह लकडी जो ढरकी के बगल में लगी रहती (ख) यह भी कोई बात है कि जो हम कहे वह न हो । कोई-क्रि० वि० लगभग । करीव करीब । जैसे,---कोई दस अदिमियो कोइन–सा बी० [हिं० को ल ना] दे० 'झोइरी' । | नै चदा दिया होगा । कोइ –सुद्धा वी० [सं० कोकिल] ३० 'कोयल' 'कोसिन' । उ०-- कोउf--सर्व०, वि० [हिं० को+हू-भो] कोई । उ०—कोउ नप वा ठोटी सरिको जवे सफर मप वैराय । तबहिं रसातनि को होउ हुमहिं का हानी !--मानस, २१ १६ । वि० दे० 'कोई । गई होइन दाग नगाय - म० धर्म०, पृ० २३४ कोउक --सर्व० [हिं० कोऊ+एफ ]कोई एक । तिग्य । कुछ कोइन- सच्चा पुं० [अ० कोलियरी कोयले की खान । लोग । उ--जौं इहू फागुन पीय, फाग न वे नहु प्राय केइिलसिसा उक तुम पर प्राय है। व्रज । के हों के इहू जोय, पुं० [हिं० कोइल+अस] (प्रत्य॰) दे० 'कोइ ?" कोइलाबा । ---नद०प्र०, पृ० १७१। पुं० [हिं०] दे० 'कोयला' । उ०—कम काट कोइला कर श०, पृ० २५। । किया ब्रह्म अमिन प्रचार कोक -सवं० [हिं० को+ भी] कोई । उ०—सावन सरित कोइलारी--सुङ्गा स्त्री० [हिं० फोलना] १. - गुर वि की मुद्धी ।१। न रुकै कर जौं जतन कोऊ अति । कृष्ण गहे जिनको मन तो का वह गोल का जिसे वेदमाश चौपयो के गरवि मे ते क्यो कुफहि अगम अति ।- ० ग्रं॰, पृ० है । इसलिये फैसा देते हैं जिसमे झटका देने या खीचने से उनका कोकंव-सुज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का पेड़ जि पुरै सेव अग खट्र गेली दवे । इसे व्यवहार से बदमाश चौपाये सीधे हो जाते हैं। | होते हैं। वि० दे० 'विसविल' । | और चुपचाप खड़े रहते हैं। कोक-संज्ञा पुं॰ [सं०] [स्त्री० कोकी] वकदा पो । चक्रवाक । कोइलियास भी० [हिं० कोयल +इया (प्रत्य॰)] दे० सुरखाव । 'कोयल' । यौ०-कोकवचु= सूर्य । साइन--सच्चा सी० [हिं० कोयतु] १. वह कच्चा माम जिसमे किस २ एक पडित को नाम जो रतियास्त्र का प्राचार्य माना जाता प्रकार का गाघात लगने से एक क्वाली सा दाग पड़ जाता है। है। इसका पूरा नाम कोकदेव कहा जाता है। ऐसा म:म कुछ सुगंधित और स्वादिष्ट होता है। यौ--फोक गम । फोककला। कोकदस्छ। विप–साधारण लोगों का यह विश्वास कि ग्राम छी यह ३ चगीत का छठा भेद जिसमें नापिका, नायक, रच, रमाभास, र समाजादि का ज्ञान दशा उनपर कोयल ३ पादने या वैठने से हो जाती है। अलकार, उद्दीपन, प्रलंबन, समय २.ग्राम की गुठली । ३ दे० 'झोपल'। आवश्यक होता है । ४. विष्ण, 1५. भेड़िया ! कई-सर्व० सं० फोपि, प्रा० कोविं] १.ऐमा एक मनुष्य या यौ०-कोमुत्र । कोजोस । पदार्थ) जो अज्ञात हो । न जाने कौन एक। जैसे,—वहाँ छोई ६ मैदक। सड़! या, इसी से मैं नही गयो । यौ०-कोकाद=लोमडी । मुहा०--कोई न कोई= एक नहीं तो दूसरा । यह न हो, वह् । ७ बगली सजूर । ८ यत । पिक (को०)। ६. पिकनी वा जैसे-कोई न कोई तो इमारी बात सुनेगा। निरगिट (को०)। १० कामशास्त्रारति झलः । ३०---उपनाइये १.स ऐक जो मनिदिष्ट हो । वहतो में से चाहे वो एक । कोक पद्ध' सुगराई विवादति है रञ्चिकाई नै ।-घनानंद, अविशेष वन्नु या टपक । जैसे,--(क) वहाँ बहुत सी पुस्नफ १० २० ।