पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५३२

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१०४८ कैवल्य रि'-- * {५० दर, २० कर] वर का वृक्ष । ३०० कैल--- सा पुं० [सं०] चेल । मनोविनोद । क्रीडा (०) ।। । हुन झरि के फल --पृ० १०, २।३५५ । कैवकिल--सा पुं० [सं०] यवन (को०)।

  • -- • [१ • मि० ० कि रात १ ६१ तान में न को एक कैलातक-- पु० [सं०] १ सुरा । मदिरा २ मधु [२] ।

aन । १ 'करत' । ३ एक प्रकार का मान बिन ते सनि झी फेलास--स। पुं० [सं०] १ हि भानय की एक चोटी का नाम, जो मुजन र ३३ दिए ए ने में का हिसावे जाना जाता है। तिव्वत ने राक्षसतन या रविणहृद से उत्तर पोर पचास विप-चुप पौर ममेरिका में बिकुल उलिन सोने का नील की दूरी पर है । पुरणानुसार यह शिव जी तथा कुबेर वार २३ 1ही ना सौर उसमें अपेद अधिक मल का निवासस्थान माना जाता है। f५। 33 है । इमपि जो ना बिलकुन शुद्ध होता है उसे यौ०-फलानाय । फेलासपति= शिव । कैलासवास = मरण । २८ फैरट का !! जाना है । ३६ प्राधा सोना सौर प्राधा दूरी 15 ॥ भेल । तो बहू सोना १२ कैरट का मौर यदि २ एक प्रकार का पट्कोण देवमदिर, जिममे आठ भूमियो सौर ४. ३ नोन मोर एक चोई मेल हो तो वह सोना अनेक जिधर होते हैं । इ सफा विस्तार अठारह हाय होता १८ संरट का महा 1ता है। इसी प्रकार १५, १६, २० हैं । ७३,स्वर्ग । उ०-ॐची पेवरी ॐच उदासा । जनु पौर २२ कैरट फी भी मोना होता है जिनमें से अति में सबसे कैलास इद्ध कर वास। 1----जायसी (शब्द)। पता न ता है । कैलासी -सया पुं० [सं० लास +ई (प्रत्य॰)] १.कैलास निवासी केर- पं० [४०] [* * रवी] १. कुमुद । ३. सफेद कमल ।। | महादेव। 1 फुर । ३ । । ५. पारो । केलेया--सा पुं० [सं० फोकियक्ष ताल मखाना । कैवतं-- सज्ञा पुं० [सं०] मनु के अनुसार भार्गव पिता और भयौवी ॐ रवयपु-देश ६० (४० केरवन्ध) चंद्रम । निशाश्वर (०) । माता से उत्पन्न एक वर्ष संकर जाति । ब्रह्मवैवर्त पुराण में है रबिना--- भ० [सं०] १ कुमुदगुफ्त वापी । ३ फुमुद पुणे कैवर्न की उत्पत्ति क्षत्रिय पिता और वैश्य माता से लिखी । ३री या समूह ) । रदी'-- पं० [सं० करविन्] चद्रमा । है। इसी शब्द से व्युत्पन्न आजकल का केवट शब्द है । कैवर्त के--सा पुं० [सं०] मछुवा । केवट [को॰] । रो'.-४॥ • H०] १ दिनी (रात) । २ थी । कैवर्तमस्त--सा पुं० [सं०] दे० 'कैवतं मुस्तफ' [को०] । के'• Hn १७ [४० केरव= मुद] [ी० फेरी १ भूरा (१) । कैवतं मैस्तक-सा पुं० [सं०] *वटी मोथा । कैवतका --सबा जी० [सं०] एक लता का नाम जो अपध के काम ३ ॥ ३ भेद से एक प्रकार का देत जिसके सफेद रोको | पार्ट है।

  • पंधर से चमड़े की नमाई भतरु से है। ऐसे वैल पड़े तेव विशेप-महू अधिकतर मालवा में होती है तथा हल्की, वृष्य

पर सुनार इठे हैं । चना । सौफन ।। और कसुली होती है । यह कफ, घमी मोर मदाग्नि को

  • -३० । रे ।।। २. निमकी भूरी प्रो हो । कजी । दूर करनेवाली समझी जाती है ।
  • राट*--१॥ पुं० [३०] वर विप रु एक भेद, जिसके अनर्गठ

|पय०-मुर गा। वारु। । गिनी । वन्न गई । सुभाग । ५फीन, कोर, धिमा पा;ि ६ ।। कैवल- सद्मा पु० [सं०] वायविड" । वाभिरग। कैरात'-० [४०] १. किरात उवि सुंदu । किरात देवा। कैवल्य-सा पुं० [सं०] १ शुद्धता। येलपन। निलिप्तता । एकता। २ मूनि । पवर्ग निर्वाणि ।

  • रात'-६६० [44] १ दिरापा। ९, घर चदन। ३ ३१वान् ।

विशेष-दर्शनी का यह सिद्धात है कि जीवात्मा पे तो यावरण २६।। रे ।। ५. एक प्रकार की बिपि ।। ६ । | ३ क रण म येवा अविद्या में भ्रमवत समार में सुख दुख भोग ३ १३म का एक भेद (संगीत) । ७ झिरत देश का रहा है। उसे मुद्ध में भ्रमरहित करना ही छात्रों ने अपना परम (६) ।। फथ्य सुमन है और उसके भिन्न भिन्न साधन वतृलाप हैं ।

  • ६, क ति **३० [सं०] ६० *राव[9] ।

छ।ज्य शास्त्र में-विविध दुवो की अस्पत निवृत्ति के फवय

  • -- [४०] १५४न ।

माना है प्रोर विवेक को उसका एकमात्र साधन पाया है।

  • -• • [६० *रा) १ भूरे रंग की । जैसे-कैरो सोच।

योगशास्त्र में विशेपबर्थी अरममाव की भावना अपति प्रकार ३. म; भि । ५। १ ।। । गाय । की नियति हो कैयप पचाय ३ मोर चित्र को वृत्तियों के रा- ७॥ • [f६०] • '4' ।। भिध को ही उसका साधने पहा है। पैदाव में अद्वितीय इर--- । १• [प • १ गरे। विपित्र या पंचाग जिउने ब्रह्म भाव की प्राप्ति को कैवल्य माना है और भविद्या की मना र १ ४२४ ३ ३ ३ ३. मू।। फेम्ति । निरोध को इन साधन टएर है। न्याय में कुछ भी ११।। मरय विमुक्ति को कंबल्य या अपवर्ग । और उसक।

  • - ४॥ • ६६० होता] ने 11 की ना निकली इदं वो सधन प्रमोश पैदा । तरज्ञा र केयर हैं ।

३, १६ इनपद का नाम ।