पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५३१

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है। कोछियाना' । - -- -(क्रि वि० [सै० कति+वार, हि० के १ = कई)+वा (वार) के '७-वि० [हिं० कसा ३० केसा' । कई गर । कई दफा । उ०—-मैं तोस कैवा फह्यौं तू जिन कैस -क्रि० वि० के समान । का सा । ३० - झिझिया के सो घट इई पुरयाइ । लगलिग करि लोइननु उर में लाई लाई |---- भय, दिन ही मैं वैन कु च । मतिराम (शब्द॰) । बिहारी र०, बो० ६६ ।। को -प्रत्यं० [हिं० दे० 'को'। उ० • ब्रह्मादिक को जीत कश'---संआ पुं० [अ०] कृपया पैसा । सिक्का | नगदी । महमद मदन मरेधी जद । ददन नँदैनलन रेप रस प्रगट यौ -शबुक = रोव। वहीं । कयो तब !- नई० ग्रं॰ पृ॰ ३६ । | कश-वि० जिसका दाम नगद दिया गया हो । सिक्का देकर लिया कोइछा- सच्चा पुं० [हिं० दु] दे० 'खइचा' । कोईq–सच्चा सी० [हिं० कु] दे० 'कु' । उ०---झरके पानी यौ०–कैयनेमो = नकद खरीदे माल की रसीद। होमक को गैरव उपज जाहि -विद्यापति, पृ० २४६।।

  • शिक-वि० [सं०]१. केशवला । वई बड़ वालवाला । २ वाल कोकण -संज्ञा पुं० [सै० कोण] दक्षिण भारत का एक प्रदेश,

| के समान । केय के नमान सूक्ष्म (०) । | जिसके अंतर्गत कनारा, रत्नागिर, कोलावा, बंबई और थाना के शिक-संवा पुं० १ केशसमूहे । २. शृगार । ३ नृत्य का एक भाव जिसमें सुकुमारता से किसी की नकल की जाती है।४, विशेप-प्राचीन काल में केर, तुलव, सौराष्ट्र कोकण, करहाटे, प्रम ! प्रणय (को०) । | कटि और देवर मिल कर सुप्नोंकण कहताते थे । के शिक निषाद-- संज्ञा पुं॰ [स०] सगीत में एक विकृत स्वर जो न ३ उक्त देश का निवासी । ३ एक प्रकार का शास्त्र (को॰) । नामक श्रुति से प्रारंभ होता है और जिसमें तीन प्रतियाँ कोकणा—सा स्त्री॰ [० कोण] परशुराम की माता रेणुका । भगती हैं । | इन्हे कोक इवती भी कहते हैं ।

  • * * ¢, [.३e वन मौन ३ क विकत यौs--*णमूत = परशुराम ।

स्वर जो सुदीपनी नाक श्राति से प्रारंभ होता है और जिसमें कोकणी---सच्चा मी० [सं० फोडणी] कोकण देश की भाषा जो चार थठियां लगते हैं। भोपायों के मैच से बनी है। के शिकी-सच्चा सौ० [सं०] १. नाटक की चार वृत्तियों में से एक।। , कोचना-क्रि० स० [सं० कुर्च = लिखना, सरोजनी या देश॰] चूमना विशेष—यह वृत्ति शृगार-रस-प्रश्वान नाटकों में होती है। इनमें गोदना । गाना। उ०-कोचत जन कजाफी कम बात काम नृत्य, गीत, वाद्य और भोग विलास का अधिक वर्णन किए। कानन कमान तीन फानन दिखावत है-श्याम०, पृ० १३५॥ जाता है। ऐसे नाटकों में स्त्रीपात्र अधिक होते हैं । कोचफी —सा बी० [हिं० के दांच-+ फली] दे० 'कौछ' । २ दुर्गा (को०) ।। कोचा--सी पु० [मुं० क्रौञ्च] एक प्रकार का जलपक्षी ।

  • शियर-संशा पुं० [अ०] १ वह कर्मचारी जिनुके पाम रुपया कोचा--सा पुं० [fइ० कांचना] १ बनियों की वह ल लग्घी

पैसा जमा रहती हो मर जो उसे खर्च करता हो । आमदनी जिसके पतने निरे पर वे लोग लास लगाए रहते हैं और जिससे लेने और खर्च करनेवाज अादमी । खजानची। वृक्ष पर बैठे हुए पक्षी को कचकर फेंगा लेते हैं। स्वचा । २ के शोर--संज्ञा पुं० [सं०] किशोर अवस्था । बचपन् । अल्प वय [को०] । 'भड़भूजे का वह करना जिससे बालू निकाला जाता है ।

  • यं-सा पुं० [सं०] वृहदारण्यक उनिषद् में उल्लिखित एक ३ मोदी लिट्टी ।।

ऋप [छे । कोछ–सुझा पुं० [म० कक्ष, प्रा० कच्छ] [क्रि० को छिपाना] १. कृश्य-सा पुं० [म०] केरासुम इ । केशमार [को०] । स्त्रिय} के अचल का एक फोन । सन–वि० [हिं० दे० 'कैज्ञा' । उ०—कॅमृन देश राज वह अहः । मुहा०--कॉछ भरना= अचल के कोने में चावल, मिठाई, हुलदी। चित इचय प्रभु देखन ताही !---कवीर सा०, १० ४३८ । अदि मगरद्वय डालना (सामाग्यवत' स्त्री के प्रस्थान से कैसर-चा पु० [ले० सीजर] १ मुम्राट्। बादशाहे । जैसे- समय तथा सीमनोनयन संस्कार में पढ़ रोति होती है)। हिंद । २. जर्मनी के सम्राट की कृपाधि । कोछना---क्रि० स० [हिं० कोछ+ना (१०) कोयाना । उ०-२ कसा'--वि० [सं० कौश, प्रा० कैरस] [स्त्री० केसी] [क्रि० वि० फेस) केसर नों उपटी अन्हुवाइ चुन चुनरी चुटकोन सो कोठी । वेनी जु मग भरे मुन। वो देनी सुगंध फुनेल तिलोंछी --- । किस प्रकार के। किन ढग का । जनै,यह कैसा आदमी हैं? २ (नियँघार्थक प्रश्न के रूप में) किस प्रकार का ? | बेनी (शब्द॰) । इसी प्रकार का नी । जैसे,—जद हम उस मकान में रहते कोछियाना'---क्रि० स० [हिं० *छो] (स्त्रियों की सारी का नहीं तव किया है ।। वह मग चुनना वो पहनने में पेट के अाने मुसा जाता है । a वि० [हिं० +सा) के समाने ! का ना । की तरह का । फुवती चुनना । कन-क्रि० वि० [६० कम दस कार से 1 किस ढंग से ? कोछिगाना- क्रि० म० [हिं० काठ (स्त्रियों के ) कॉ3 में कोई जैसे,—यह काम के से होगा ?। २ किस हेतु : फिसलिये ? चीज भरकर उसके दोनों छोरों को मार्ग को मोर कमर में क्यों ? १३,तुम यह कैसे प्राए ? १३ तैन ।