पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५३०

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केंदम १ - २ ० ट = की शर} ए9 प्रकार का ऊँचा पौर --- {} ? ji । टयुक्त थे । ॐटर -5 - [१०] वृक्ष (०] । भन न ई० म०] म नमक दैत्य का छोटा भाई जिसे विप्रा. | | मर। ।। ८ --- नजि । मरिषु । टिभ । कैटभादंन = दे०'मारि। केटा --३, at: [3] दुई का ए३ नम्। टभरि-:54 ई० [६०] वितु ।। संदर्य-१ • [३० टम्प, कैटयं] १ कृयफन । २ नीम् । ३. म नि । ४, २५न वृत्त । मदनी । मटलग-९, १० म ०] मुचपत्र । फेहरिस्त । फदं । 24-6, १० म० *दर्य, कैय्य] १. फायफत । ३. कृरंज। ३. पुरि ।। । कैन'!-- • [ हि किन] मोर । तरफ। हैतु'-६५ पु० 1 H० फपिय] दे॰ 'र' । त है!---: * { ४०] केतुझी फा हुन । कैनर---१० २३ ६ ६ । के होला । केतकी सुबधी [२०] । वव'- q० [४०] १ घौ । छ। कपट । पूर्तता । २. जुमे । यु ।। ३. वैदूर्य मणि । तहसुनियो । १. धतुर । केतक-t० १ ४ाज । छ । २ पूठं । शठ । ३ जुमा तनै { { 39 । ०१-- ५० {4] १ जुमा चेतना । चूत की । २ जुए में

  • वाली नेता (२०] }

तवान•ि * * [त०] अपह्नुति मतकार का एक भेद नि । पति वास्यमिक विषय के नोपन पा निषेध १२' १ःf न न ॐ स्म से किया जाय। इसमें प्राय । प4, नि gif६ २३ मा आवे हैं । जैसे,---'रसून; मित्र far ॥ धरी पनि पुल भुय माहि'। इसमें जिल्ला का निः ॥ ३१॥ न यदि अयं से होता है । इसे माथी या में चार बनाते हैं। लोग कहते हैं, हाय पूरा फैर्य विना चवाए निगल जाता है मोर कुछ समय बाद उसकी लीद के साय पुरा फैध निफना है, जिसमें गुर्दे के स्थान में लीद भरी होती है । इसीलिये उस्कृतवालों ने एक 'गजव पित्।' न्याय बना रखा है। इसकी लकडी अरदी लिए सफेद र मजबूत होती है और वगहें बनाने के काम में आती है। पर्या०-कपित्य। दधित्य । ग्राही । मनमय । दधिफन । पुष्पफल । दंतशठ । कगित्व। मालुर । मगल्य । नीन महिना । ग्राहि- फले । चिरपाकी । ग्र थिफल । कुचफ ।। कपिष्ठ । गधफल । दतफल । फरवल्लभ । काठिन्यफल । करजफन । कैथा-सुथा पुं० [हिं० केय ] ३० 'केय' । कै थिन-- सच्चा सौ० [हिं० फायय] कायस्थ जानि की स्त्री ! केयी-सपा स्त्री० [हिं० कैय] एक प्रकार का कंध जिसके फल छोटे छोटे होते हैं । केयी-सी खी० [हिं० कायय एक पुरानी लिपि जो नागरी से मिलती जुलती होती है । विशेष—यह शीघ्र लिखी जाती है और इसमें टेक या शौर्य रेखा नहीं होती। इसमें एक ही सरकार होता है और का, ना तु स्वर तथा इ, न ए ग्यजन नहीं होते । सयुकप्रति तथा बिहार में चिट्ठी पत्री और हिसाव किताव प्रयि इसी लिपि में लिखे जाते हैं। कैद-सा प्री० [अ० द] [ वि० कंदी] १. बधन । अवरोध ।। एक प्रकार का दंड जों राजनियम के अनुसार या राजाज्ञा से दिया जाता है और जिसमें अभियुक्त को किसी वंदे स्थान में रयते हैं। कारागारवाच । कारावास । विशेष-प्राजकल म प्र जो कानून में कंद तीन प्रकार की होती है । फेद महज़ या सादी कैद, कैद सख्त और फंदे तनहाई । यौ॰—कदवाना । क्रि० प्र०—करना ।—भुगतना र सन् !- होना । मुहा०—क ३ काटना या भरना = मौद में दिन बिताना । के में रहना । ३. किसी प्रकार की यतं, पटक या प्रधि । जैसे, (क)-पहले मिनि पास मुघतारी की परीक्षा दे सकते थे, पर अब इसमें एंट्रेस की कमें लग गई हैं। () सरकारी नौकरी में उम्र की कैद्या'-41 • [५७ छन+फा सात] दुभि1 अकाल । भ री । ३७-- म ने रावराजा की दुहाई । कोन् ११५३ १३ भो न माई-शिधर०, पृ० ११२। -~-३ !* {4 के चुन] एक प्रकार से बारीक लस में १५.1 ने नारे f; भगाई जाती है। यह प्राय सुनहले । । ८}र न १ ५न, ३, पर कभी कभी यात्री ने पर -- ६ - [५० ¥पि, प्रा० इत्य] एE 52ीला पैर जो ३ ३ ३६ * 17न ३ ३ पौर जिम वैन के प्रकार के क्रि० प्र०—रखना ।-तगनी --लगाना ।—होना । कैदक-सा ओ० [अ० क दक] एक प्रकार का फागज का बदे या ६ पट्टी जिसमें किसी एक विपर्य या व्यक्ति से संबंध रखनेवाले फागज प्रादि ये जाते हैं । कैदखाना–६। पु० [फा० कवयनह] वह स्थान जही कैदी र जाते हैं। कारागारे ! यदीगृहे । नेपघाना । केंदतनहाई-- क्री० [अ० कद+फा• तनहाई] पद कंद जिसमें कैदी को पत्रुत ही छोटी औरत कोठरी में अकेले पा जाय । झालकोठरी । केंदमहज--- • [ २१ करमत्र ] व३ फेद जिसमे कैदी की


;'को पHिal , ३ को १ नोतरी पर भारी

ॐ { {१ ३३न । पर ए३ + में न रद हैं। ६५ने ने घर पदमि होता है पर उछमें बटन । ३।