पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५३

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ऐतेमवेश उत्तरकोसिल उत्तमवेश- संज्ञा पु० [ स० ] शिव [को०] । कुछ साको। गोरो, गरूर गुमान भरी कही कौसिक, छोटो उत्तमत- वि० [सं० ] बहुश्रुत । वडा विद्वान् [को०] । सो ढोटो है काको ।—तुलसी ग्रे ०, पृ० १६० । जैसे, हमारे उत्तमश्लोक-वि० [ स० 1 यशस्वी । कतिमान [को०) । प्रश्न का उत्तर अभी नहीं आया । ३ प्रतिकार । बदला । जैसे, उत्तमश्लोकः स पु० १ सुयश । उत्तमर्क ति । पुण्य । यश ) २ हम गालियो का उत्तर घूसों से देंगे। ४ एक वैदिक गीत।

  • गवान ! नारायण । विष्णु [को॰] ।

५ राजा विराट का पुत्र । ६ एक काव्यानकार जिसमें उतरे उतभसग्रह-सज्ञा पुं० [सं० उत्तनसङ्ग्रह] परस्त्री से लगाव [को०] । के सुनते ही प्रश्न का अनुमान किया जाता है अथवा प्रश्नों को उतमसाहम - सझा पु० [१०] १ एक हजार पण के जुर्माने का ऐसा उत्तर दिया जाता है जो अप्रसिद्ध हो । जैसे -- (के) घेनु देड 1 २ कोई वडा दड, जैसे-शूनी, फाँसी, जायदाद की जब्त घुमरी रावरी ह्या किंत हैं जदुत्रीर, वा तमाल तरुवर तकी, होना अगमग, देशनिकाला इत्यादि। तरनि तनूजा तीर ( शब्द०)। इस उदाहरण मै 'तुम्हारी उत्तमोग-संज्ञा पुं० [च० उरामाङ्ग] सिर । शीर्ष । मस्तक । गाय यहाँ कहाँ है' इस उत्तर के सुनने से हमारी गाय यहाँ उत्तमाभस–सद्या गुं० [३० उामान्भस] साढ्यमतानुसार नौ प्रकार कही है?' इस प्रश्न का अनुमान होता है । (ख) “कहा विषम | की तुष्टियो में एक जो हिंसा के त्याग से होती है। योग की हैं? दैवगति, सुख कह? तिय गुनगान । दुर्लभ कह ? गुन परिमापा में उसे सार्वभौम महाव्रत कहते हैं। गाहकहि, कहा दु ख ? खल जान' (शब्द०)। इस उदाहरण उत्तमा–वि० [सं० उत्तम का वि० ०] अच्छी । भली ।। मे ‘दुख क्या है आदि प्रश्नो के ‘खल' आदि अप्रसिद्ध उत्तर उत्तमा-सुज्ञा चौ० १ पुरी विशेप । २. शूक रोग के १८ भेदो में से होता है । उ० --(क) को कहिए जन सो सुखी का कहिए पर | एक जिसमें अजीर्ण तथा रक्तपित्त के प्रयोग से इद्रिय पर मूग श्याम, को कहिए जे रस विना को कहिए सुख वाम (शब्द०)। या उर्द की सी लाल फुसियाँ हो जाती हैं। ३ दूधी । दुद्धी यहां जल से कौन सुखी हैं ?' इस प्रश्न का उत्तर इसी प्रश्न- दुग्धिका । ४. इदीवरा । युग्मफन् । ५ हिंदी साहित्य संमेलन वाक्य अादि का शब्द 'कोक (कमल)' है। इसी प्रकार और की एक परीक्षा का नाम । भी है। ( ख ) गाउ, पीठ पर लेहु, अग राग अव हार करु, उत्तमोती-सच्चा बी० [सं०] वह दूतो जो नायक या नायिका को गृह प्रकाश करि देनु कान्ह कह्यो सारंग नही (शब्द०)। यहाँ | मीठी बातों से समझा बुझाकर मना लावे। गाग्री, पीठ पर चढ़ा, प्रादि सब बातो का उत्तर 'सारेग उत्तमोनायिका- संज्ञा स्त्री० [स०] वह स्वकीया नायिका जो पति के (जिसके अयं वीणा, घोड़ा, चदन, फूल और दीपक आदि हैं) प्रतिकूल होने पर भी अनुकूल बनी रहे। नहीं” से दिया गया है। ( ग ) प्रश्न–घोडा क्यो अडा, उत्तमरिणी-सच्चा स्त्री॰ [सं०] इर्दीवरी नाम की एक पौधा [को॰] । पान क्यो सडा, रोटी क्यो जन ? उत्तर---'फेरा न था। उत्तमार्द्ध-सज्ञा पुं० [सं०] १ पूर्वार्द्ध की एक अपेक्षा सुदर उत्तरार्द्ध। यौ०-उत्तर प्रत्युत्तर । वह जिसका उत्तरार्द्ध अच्छा हो । २ उत्तरार्द्ध को०]। उत्तर- वि० १ पिछली । वाद का। उपरात का। उ०—(क) देह उत्तमार्घ—सज्ञा पुं० [न०] दे॰ 'उत्तमार्द्ध' को । दाग स्वकर इत अग्छे । उत्तर क्रियहि करहू गो पाछे ।-पाकर उत्तभाह-- सच्चा पुं० [सं०] १ अच्छा दिन । सौभाग्यवाला दिन । (शब्द॰) । अतिम दिन [को०] । यो०-उत्तर भाग ! उत्तर कान ! उत्तमीय-वि० [सं०] मवसे ऊपर। सबसे अच्छा। सबसे ऊँचा।। २. ऊपर का । जैसे,उत्तरदत । उत्तरइन् । उत्तरारणी ३. प्रधान [को०] । उत्तमोत्तम- वि० [सं०] अच्छे से अच्छा । सर्वोत्तम । बढ़कर 1 घेष्ठ । जैसे,——लोकोत्तर। उत्तमोत्तमक- सच्चा पु० [ सं ० 1 लास्म के दस अग) में से एक। उत्तर–क्रि० वि० पीछे । वाद। जैसे, उत्तरोत्तर । कोप अथवा प्रसन्नताजनक, अक्षेपयुक्त, रसपूर्ण, हाव और भाव उत्तरकल्प-संज्ञा पुं॰ [सं०] दूसरा कल्प जिसमे वनिज पदार्थों व ते सयुक्त विचित्र पद्य-रचना-युक्त। (नाट्यशास्त्र) । पर्वत की सृष्टि हुई थी [को०)। उत्तमौजा-वि० [सं० उत्तमीजस्] जिसका वल या तेज उत्तम हो। उत्तरकांड-सा पु० [सं० उत्तरकाण्ड रामायण का सातव या अतिम उत्तमौजा-- सच्चा पुं० १. मनु के दस महको मे से एक ! २ यु मन्यु काड ( अध्याय ) [को॰] । | का भाई एक राजा जो पाडवो का पक्षपाती था। उत्तरकाय--सवा १० [सं०] शरीर का ऊपरी भाग (०) । उत्तरग’- सज्ञा पुं० [सं० उत्तरङ्ग] काठ का मेहराव जो चौखट के । उत्तरकाल-सज्ञा पुं० [सं०] भविष्यकाल (को०] । ऊपर उगाया जाता है (को०] । उत्तरंग'-वि० १ अनद से भरा हुआ। २ लहराता हुआ । ३ कांपता । उत्तरकाशी-संज्ञा पुं० [सं०] एक स्थान जो हरिद्वार के उत्तर में है। | हुमा । उछलता प्रा को । और बदरीनारायण के मार्ग में पड़ता है। उत्तर- पुं० [मं०] १ दक्षिण दिशा के सामने की दिशा । ईशान उत्तरकुरु-सज्ञा ५० [सं०] जवुद्वीप के नौ वर्षों मेंI वडो में से एक। और वायव्य कोण के बीच की दिशा । उदीची । २ किसी उत्तरकोशल-संज्ञा ० [सं०] अयोध्या के प्रतिपाम का देश । पत्रध। बात को सुनकर उसके समाधान के लिये कही हुई वात। उत्तरकोशला--संज्ञा स्त्री० [सं०] अयोध्या नगरी जवाव । उ०—-लघु अनिन उत्तर देत बड़ी लरिहै मरिहै करिहै उत्तरकोसल-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'उत्तरकोश' (को०)।