पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५२८

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केशर १०४४ कैची वाना। केशर —सझा पुं० [सं० केसरी] मिह ! १०-घक धकहि धुकहि केहरि कधर बहू बिसा ना, उर अति रुचि र नाग मनि माना। तक्कहि चकहि, दिघ्घ उसासन उल्हसहि । प्रथिराज कुवर —तुलसी (शब्द०) ! २ घोड़ा । | कोवई उर, गिर कर केर बस६ि ।–० ० ६१०३ । केहरी--सा स्त्री॰ [फा० कसा = ये वी] एक छोटा जुजदान जिसमें केसराचल-सुज्ञा पुं० [म०] मेरु पर्वत [को । द, मोची अदि अपने सीने की चीजें या fम् मावश्यक केसराम्ल-मज्ञा पुं० [सं०] विजौर नामक नीव (को०] । समान उठी हैं। छोटी थे। केसरि --३• सच्चा स्त्री० [सं० केसर दे० 'केमर' । उ०—पेट पत्र केहा - सच्चा पुं० [सं० केका, प्रा० के ग्रा] १ मोर । मयूर } २ एक चदन जनु लावा । कु कुह केसर बरन सोहावा ।—जायसी छोटी जगली पक्षी जो बटर के समान होता हैं उ०-धरी ग्रं ० (गुप्त), पृ० १६५ । परेव पादुक देरी । केही कद उवर वगेरी ।—जायसी केसरि'—सच्चा पुं० [सं०] हनुमान के पिता का नाम [को०]। (शब्द०)। यौ॰—केसरि किशोर =(२) हनुमान । (२) सिहशावक । केहि -वि० [प्रा० किस्स) किस । उ० केहि कारण आगमन केसरितनय । केसरिनदन । केसरिपुत्र । केसरिसुते = हनूमान । तुम्हारा । कहहु सो करत न लाहु बारा -तुलसी (शब्द०) केसरिका-- सच्चा स्त्री० [सं०] सहदेई । विशेष ..- यह अवधी के' का कम । सपदान र अधिकरण केसरिया--वि० [सं० केमर+हि० इयर (प्रत्य॰)] १ कैसर के रग । का पीला। जदं । जैसे -- कमरिया ब्राना। २ केसर के केहु)- मवं० [म० केऽपि] कोई । उ०—मतगुरु जानु सत्त सुवा रग में रंगा हुअा । ३. केसमिश्रित । केसरयुक्त । जैसे--- बान, । शब्द सूचि विरग केहू जानी-दf-य० वानी १०८ । केसरिया चंदन । केसरिया वरफी। । केहुनी-सच्चा सौ० [सं० कोणी] १ कोहनी । कुइन। २ पीतल केसरी—सा पुं० [सं० केसरिन् ]१ मिह । घोड़ा ३ नागकेसर।। पर तावै की वह टेढ़ी न जो नंचे में हैं और जलेबी को ४. पुन्नाग । ५ विजौरा नोवू । ६ हनुमान जी के पिता का जोड़ती है । नाम । ७ उडीसा का एक प्राचीन राजवा । ६ एक प्रकार केहू --क्रि० वि० [सं० कयम्] किमी प्रकार ! किसी भईति । की व गुला। ९ एक प्रकार का चारखाना (कपा) । किसी तरह । केसारी- सच्चा स्त्री० [सं० कृसर, प्रा० किसर] मटर की जाति फ के कर्य सबा पुं० [सं० कैद्ध] किं करता । सेवफाई । सेवा । विदमत । एक अन्य, जिसे दुविधा मर भी कहते हैं। ३०-गज जहि मंदाकिनी नित जाई ।निज कर करि ककय विशेप--इसके दाने छोटे चिपटे चौकोर और मटमैले होते हैं। सदाई--रघुराज (शब्द०)। और पत्तिय लंबी तथा पतली होती हैं, इसकी फलियाँ छोटी कैचा'-- वि० [हिं० कानी+ऍचा ऐवातानः । 'मॅगा । और निपटी होती हैं जिन पर कमी की छोटे दाग भी होते । केचा- सच्चा पुं० [] वह वैल जिसका एक सीग सीधा खड़ा हो और हैं । वैद्यक में यह कदन कहा गया है अौर हावट मत से इसे खाने से लकवा हो जाता है । इसे कसारी, खेसारी प्रौर । दूसरा सीग अब के ऊपर होता हुआ वे को जाता है। तरी भी कहते हैं । | कैचा---सा पुं० [हिं० के ची] बडी की। केसु, केसू-सा पुं० [सं० किंशुक ढोक । टेसूपलास । उर--- कैची—सा बी० [तु०] १ लाल कपडे मादि काटने या कतरने का (क) केसु कुसुम सिंदूर सम मास' केतकि धून विथुरल एक औजार । कतरनी ।। पर वास ।—विद्यापति, पृ० १०६ । (ख) कहीं ऐसी रचिनि विशेष—इसमे समान प्रकृति के दो लदे काल होते हैं जो परस्पर हरदि केसु केसरि मैं, जैसी पियराई गात परियै रहति है - एक दूपरे के ऊपर रखकर होल से जड़े जाते हैं । के ची कई घननद, पृ० ७१।। प्रकार की होती है-जैसे वलि काटने की कैंची, वत्ती काटने केसौ -सा सुं० [सं० केशव दे० 'केशव' । उ०—ता पाछे एक की कैची, दर्ज की कैची लोहार को केंची आगवान को कंत्री, बार ही रोई सकल वजनारि हो करुणामय नाथ हो के सौ डाक्टर की केवी इत्यादि। कृष्ण ! मुरारि --नद ग्र०, पृ० १८६ ।। मुहा०--कैचो झरना = काटना छाँटना । जैसे--वागवान पे केहइ–वि० [सं० कीदृश, अपO केह) दे० 'कैमा' ० --धन मथ्यइ, को कैची कर रहा है । केची काटना = नजर बचाकर निकल ऊजाडउ, थे इण केहइरंग ! धण लीजइ, प्री मारिजई, जाना । रास्ता फाटकर निकन जाना । कतरना । (२) पहले छडि विहाँणउ संग ।---ढोल३०, ६० ६५३ । कहकर किसी बात से इनकार पर जाना । फाट आना। केहर--सच्चा पु० [सं० केसरी> पुं० हि० केसर केहरी। सिंह । उ०- कैची बांधना = (१) दोनो रानो से दबाना |--(सवार) । केहर रे हायल करी, फीधी दात चहि ।-बाँकी० प्र०, भा० (२) विपक्षी को अपने नीचे लाकर दोनों रनों से दबाना - १, प० २ । (कुश्ती) । केवी लगाना = (१) काटना । बाल छाँटना कलम केहरी, केहरी'- सदा पुं० [सं० के सरो] सिंह । शेर । करना । (२) सिर के बालों को कवी से काटना । छाँटना । उ०—(क) लंक पुहुमि असे हि न काहू' । कहौ केरि न २.दो सीधी तीलियाँ या लकडियाँ जो केवी की तरह एक दूसरी ओहि सूर ताहू।- ज़ायसी ग्र० (गुप्त), पृ० १६७ (ख) के ऊपर तिरछी रखी, बाँधी या जड़ी हो ।