पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५२४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

केरि १०४8 कैलिनि केरी--प्रत्य॰ [ प्रा० कर, केरक ] की ।---सुरपति रवनी रमा की हरे रग के केले भी मिलते हैं। केले की फलिय चार अगर चैरी । सो वह चेरी जसुमति केरी नद० ग्र०, पृ० २५७ । से लेकर डेढ़ दिन तक की होती हैं । जावा में एक प्रकार का । विशेष—यह 'केर' का स्त्री० रूप है । केला इतना बड़ा होता है जिससे चार आदमियो का पेट भर केरी–समा जी० [देश॰] ग्राम की कच्चा और छोटा नया फल । सकता है। इस केले का फूल पेड़ी के बाहर नहीं निकलता, | अविया । भीतर ही भीतर फलता फूलता है। पेड़ में एक ही फन लगता केरोसिन–सुझा पुं० [अ०] मिट्टी का तेल । है जिसके पकने पर पेड़ी फट जाती है। फिलीपाईन द्वीप में भी केल-सच्चा स्त्री० [सं० कदल, प्रा० फयल दे० 'केना' । ३०–केल बहुत बड़े वडे केले होते हैं वहुत से कैले वीजू होते हैं, जिनकी र नित काँपती कायर जणे कपूर।- बाँकी ग्र०, 'भा० १, फलियो में काले काले गोल वीज भरे रहते हैं। इन्हें झटकेल पृ० ३४। कहते हैं । कच्चे केले की लोग तरकारी बनाते हैं । कच्चे केले । केल-सा पुं० [सं० फेलिक, प्रा० के लिय ] एक वृक्ष जो हिमालय को सुखा कर अटा भी बनाया जाता है जो हलका होता है पर ६००० से ११००० फुट की ऊँचाई तक होता है। विशेष---यह पेड़ सीधा और बहुत बड़ा होता है । इसकी लाही और दवा के काम में आता है । वगाल में कैसे को डंठल प्रति घनफुट १७ सेय भारी होती है । इसके दो भेद होते की भी तरकारी बनती है । पत्तों के इठल से जो रेशे निकलते ६-देशी और विलायती । दोनो की लकडी प्रॉय इमारत के हैं, उनसे चटाई बुनी जाती है और कागज भी बनता है। काम में जाती है। देश केले की लकडी में से चीड़ के तेल की आसाम अौर चटगाँव की और केलों के जगल भी है। २ केले का फल । । तरह तेल निकलती हैं और उसका कोयला भी अच्छा होता है। पर्या-रभा । मोचा। कदली । अशुमत्फला । वारणबुषा । जिससे लोहा पिघल जाता है। विलायती केले की लकड़ी जलाने के काम में नहीं प्राती वह जलाने से चिड़चिड़ाती और वारबुषा । सुफला। नि सारा । भानुफला । गुच्छफला ।। जल्दी बुझ जाती हैं। दोनो की छाल बुढ़ होती है और छत वारणवल्लभा । वन लक्ष्मी । रोचक । चर्मण्वती । पाटने के काम में आती है। केले की पत्तियाँ और आलियाँ । ६ । कल का पाया आर आलिया ३ पुरुष द्रिय (बाजरू)। विलाची के काम में लाई जाती हैं। विलायती कल के पेड़ केलि-स। स्त्री० [सं०] १ खेल । क्रीड़ा । २ रति । मैथुन । देखने में सीधे और सुदर होते हैं, इसलिये सड़को पर मौर समागमन ! स्त्रीप्रसग । उ०—अस कहि अमित बनाये अगर । मैदामों में लगाए जाते हैं। कीन्ही केलि सबन के संगा -रघुनाथ (शब्द०) । केलक----सी पुं० [सं०] एक प्रकार के नाचनेवाले जो हाथ में तलवार, यौ०--केलिगह । कलिनिकेतन । केलि मदिर। केलिभयन, केसि कटारी आदि लेकर नाचते हैं। सदन = रवि या क्रीड़ा का स्थान । केलिनगर = कामासक्त । कला-साग पुं० [सं० कदलक, प्रा० ऋयल] एक प्रसिद्ध पेड़। फदली। केलियर=विलासी । केलिपल्लये= क्रीड़ा तालाब । क्रीड़ा- विशेष--यह भारतवर्ष, बरमा, चीन, मलाया के टॉपुत्रो, अफ्रीका, सरोवर। केलि रग = क्रीडा स्यान । केलिवन= क्रीड़ाउपवन । अमेरिका, दक्षिणी युरोप आदि गरम स्थानों में होता है। इसके केलि शयन = विलासशय्या । केलि सचिव =नमंसचिव । पत्त गज डेढ़ गज लवे और हाथ भर चौड़े होते हैं । इस पेड़, ३.वेंसी । ठट्टा । मजाक । दिनगी । ४ पृथ्वी । में हालियाँ नही होती, अरुई, बंडे अादि की तरह पेड़ी या केलि+--- सच्चा सौ० [सं० करली दे० 'कदली' । उ०--केलि पुती ही से एक एक पत्ता निकालता है। पेड़ी चिकनी, पर्तदार, फूल दासी कौ हेतू छिदमय और पानी से भरी होती है। केले के लिये पानी की माधवानल० पृ० २७६।। केनि,- सझा पुं० [सं०] अशोक वृक्ष । अावश्यकता बहुत होती है, इसी से इसे नालियों में लगाते हैं। केलिकला-सच्चा स्त्री॰ [सं०] १. सरस्वती की वीणा । २'रति ।। पेढ़ साल भर में पूरी बाढ़ को पहचता है और तब उसके नीचे केलि । रतिक्रीडा । । . से क्या मज़ के प्रकार का कालापन लिए लाल रंग का बहुत | केलिकिल- सच्चा पुं० [सं०] १. नाटक का विदूषक। २.शिव के ब फूल निकलता है, जो नीचे की ओर झुछा होता है। यह कुठमाडक नामक अनुचर का एक नाम । फुले एकबारगी नहीं खिलता। प्रति दिन एक एक दल खुलता केलिकिला-स। बौ॰ [सं०] कामदेव की स्त्री । रति । है, जिसके म दर आठ दस छोटी छोटी फलियो की पंक्तिया । हेलिकिलावती-सच्चा स्त्री० [सं०] दे० 'केलिकिला' (को०] । दिखाई पड़ती हैं। इन फलियों के सिरों पर । पीले पीले फुल कलकीर्ण-सया पुं० [सं०] ६० ‘मेलक। कैंट [को०)। लगते हैं। इन फलियों की पंक्ति को पंजा 'कते हैं। प्रत्येक | केलिकचिका-सा जी० [स० केविकुञ्चिका] स्त्री की छोटी बहन । दल के नीचे एक एक पजा निकलता है। पीले फूलों के गिर | छोटी साली [को०] ।। लाने पर यही फलियो बढ़ार बी पी होती है। पूरे इठल केलिकोष- साबा जी० [सं०] १.नट । अभिनेता | नर्तक । [२] ! है, जिसमें फलियों के कई पजे होते हैं, 'घव कहते हैं । केले केलिनि(@t-सा स्त्री० [सं० कदली, प्र ० काली हिं०क ति, की अनेक जातियाँ होती हैं, जिनमें मवान, चपा, धनिया, | केली, ३० 'केली" उ०—पथी एका संदेस लेग डोल। मा भोग आदि प्रसिद्ध हैं। केले के फन साधारणतया पहने पैहच्याइ। अधा के लिनि फ िगई स्वात जु बरस म ३ ।- पर पीसे होते हैं, पर कही ही लाल, गुलाबी, सुमरे पोय ड्रोना• ६०, १३२ ।।