पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५२१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

फेरि व है और संध्या के समय गाई जाती है । इसका व्यवहार प्राय सवव सूचक अव्यय जो अवधी भाषा तथा अन्य भाषाओं में वीर मर ऋ गार रस के वर्णन में किया जाता है । 'का' और 'के' विभक्तियों के स्थान में आता है। उ०—(क) केन'-सा पुं० [सं०] एक प्रसिद्ध उपनिषद् जिसका पहला मैत्र छमहु चेक अनजानत ोरी । चहिय विप्र उर कृपा घनेरी । 'कैनेपितम्” ••• 'के' घाब्द से आरभ होता है । इसे विलु तुलसी (शब्द॰) । (य) भुजे गेहू' केरा झाड़ दिखलाया झार उपनिपद म के हुने हैं। यह सामवेदी है और इसमें चार हैं ।—दविखनी॰, पृ० ३०० । (ग) सुनत जु वेनुगीत पिय खंडो में ३४ मंत्र हैं। केरो!--सुंद० ग्र०, पृ. २६५ । केन-सच्चा सौ० [देश॰] जिला वादा की एक नदी जो विध्याचल केरक-सच्ची पु० [सं०] महाभारत के अनुसार एक प्राचीन दे । से निकलकर यमुना नदी में गिरती है ।। केरल-सच्चा पुं० [स०] १, दक्षिण भारत का एक देश । केना--सज्ञा पुं० [सं० ॐ ति=नोल लेना] १ वह थोड़ा सा अन्न विशेष—यह कन्याकुमारी से गोकर्ण तक मलयवार (मलीवार) जिसे देकर देहात में लोग तरकारी इत्यादि मोल लेते हैं । पर समुद्र के किनारे किनारे फैला हुआ है। इस देश की कनका । केजा । २. सागपात ! तरकारी । भजी । ३ एक सीमा भिन्न भिन्न समय में बदलती रही है । तत्रों के अनुसार प्रकार की बरसात घास जो साग के रूप में काम आती है। केरल के तीन विभाग थे। (१) सिद्ध केरल (सुब्रह्मण्य से केनारस पुं० [सं०] १. एक नरक का नाम । कु भी पाक नरक । २ जनार्दन तय), (२) हुम केरल (रामेश्वर से वेंकटगिरि कपोल । ३ खोपड़ी । ४. सिर । ५ सति । जोड [को०] । तक ) और (३) केरल (अनंतशैल से अव्यय वक) । आजकल केनिपात, केनिपातक-सी पुं० [सं०] बांड़ या वल्ली जिससे नाव इस देश को कोनार (कन्नड) कहते हैं और यही कनारी | चलाई जाती हैं । बहूना ! अरित्र । (कन्नड ) भाषा बोली जाती हैं । केनिपातन-छा पु० [सं०] दे॰ 'केनिपात' ।। २.[ी० केरली] केरल देशवासी पुरुप । ३ एक प्रकार का केम-सा पुं० [सं० कदम्ब, प्रा० फयम्व] कदंब । कदम । उ०-- फलित ज्योतिष, जिसका अविष्कार केरल देश में हुआ था। | अब तृजि नाउ' उपाय को आए पावस मास । खेलु ने रहिवौ इसमें स्वर और व्यंजन अक्षरों के लिये कुछ अक नियत होते खेम स केम कुसुम की वसि ।-विहारी (शब्द॰) । हैं और उन्ही की सहायता से गणित कारकै प्रश्न का फल या केम -क्रि० वि० [सं० किम, गुज०] किस प्रकार। कैसे । क्यों । उत्तर निकाला जाता है । ४.एफ घठे के बराबर का उ०—वीसल राज़ कधि पुव्व कथ्य । ज ताप उघरों समय । होरा (को॰) । केम नभ्य --पृ० रा०, ११५५६ । केरा--सच्चा पु० [हिं०] दे० 'केला' उ०—सफल रसाल पुगझल केमद्रुम-सुझा पुं० [सं० केनोड़ोमस् ] ज्योतिप में चंद्रमा का एक केरा -मानस, २६ । केरा सच्चा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की बत्तक जिसे 'पतारी' भी कहते हैं। विशेष-वृहज्जातक में वाराहमिहिर के अनुसार यह योग कैराना—क्रि० स० [स० किरण या हि० गिराना] सूप में अन्न उस समय होता है जबकि चद्रमावाली राशि के आगे या रखकर उसे हिला हिलाकर बड़े और छोटे दाने अमग पीछेवाली राशि पर कोई और ग्रह न हो। फलित के करना । अनुसार यदि इस योग में किसी राजकुमार का भी जन्म हो, ३ जन्म है। केराना-सच्ची पुं० [सं० क्रयेण] नमक, मशाला, हुलदो आदि चीजें २मा पं० [सं० क्रयण नमक, माला, इल तो वह सदा दुखी और दरिद्र रहता है । जो नित्य के व्यवहार मे झाती और पसारियो के यहाँ कैमरा-सा पुं० [अ० कैमरा फोटो खीचने का यत्र । दे० 'कमरा' मिलती हैं। २ । ३०-- केमरा कुचे से उतारकर रखा और कुर्सी पर बैठ केरानी_सच्चा पुं० [अ० क्रिश्चियन] १ वह मनुष्य जिसके माता भी गए ।---किन्नर, १० १४ । पिता में से कोई एक यूरोपियन और दूसरा हिंदुस्तानी हो। केमि---क्रि० वि० [हिं०] ६० ‘कि म' । उ०—व्रत टरे कैमि छ। किरटा । यूरेशियन । २ अँगरेजी दफ्तर में निबने पढ़ने अभग – रासो, पृ० १०७ । का काम करनेवाला मु यो । क्लार्क । केमुक-सा मुं० [सं०] के उमीं । वडा । यौ०-केरानी खाना अंगरेजी दफ्तर । पूर-सा पुं० [सं०] १. वह में पहनने का एक अभूपए । केराया--सच्ची पुं० [हिं॰] दे॰ 'किराया। विजापेठ ।वजुल्ला । अगद । वहा । मुज़वेद । भुजभूपण । केराव--संज्ञा पुं० [सं० कलय] मटर । । १०–कोऊ विशाल मृणाल के केयूर वलय वनविते -- केरावल-सुब्बा पुं० [हिं०] दे॰ 'किरावल । प्रेमघन०, पृ० ११३ । २. एक प्रकार का रतिबध (को०)। केरि' -प्रत्य॰ [सं॰ कृत] दे॰ 'करी'। उ०——हाथ सुलेमा केरि "वखसा पुं० [सं०1 ललितविस्तर के अनुसार एक वौद्ध अंगठी । जग कहूं दाने दोन्ह भरि मूठ !-—जायसी न ६ ,,, | देवता । केरि --सेवा भी० [सं० के लि] दे० 'केलि । उ०—तिन ठाम अाइ यरी--[सं० केयूरिन् ‘जो केयूर पहने हो । केयूरघारी ।। । नाहर सुघेरि। बहुत दृश्य जनु करिय के रि -पृ० ०, अर-अव्य• [सं० कृत। [० कैरि, केरी ! [अन्य प-केरा, केरो। ७ । १०१ । यो ।