पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५१६

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कृष्णकंचुके कृष्णमंडल पीछे ये द्वारका चले गए और वही इन्होने यादचो को राज्य कृष्णग्रीव-- सच्चा पुं० [स०] नील कठ। शिव [को॰] । स्थापित किया । महाभारत के युद्ध में इन्होंने पाडवो को वहृत कृपाचचुक-सच्चा पुं० [स० कृष्णचञ्चुक] नीले रंग की मटर । सहायता दी थी। इनकी म त्यु एक वहेलिए का तीर लगने से काली केराव [को०] । हुई थी । ये विष्णु के दस अवतारो मे से अाठवें अवतार माने कृष्णचद्र---सच्चा पुं० [स० कृष्णचन्द्र] ३० 'कृष्ण' । जाते हैं। कृष्णचूडा- सच्चा बी० [सं०] १ गु । घुघुची ३ एक प्रकार का २ एक असुर जिसका जिक्र वेदो मे अाया है और जिसे इद्र ने कॅटीला वृदा जिसके फून पीले या लाल होते हैं और जिनमें मारा था । ३ एक ऋषि जिन्होने ऋग्वेद के कई मत्रो हर की सुगध होती है । यह साधारणत सब ऋतुयो में मौर का प्रकाश किया था । ४ अथर्व वेद के अंतर्गन एक उपनिषद् । विशेगत वरसाव में फूलता और फलती हैं। ५ छप्पय छद का एक भेद, जिसमे २२ गुरु और १०६ कृणचूडिका--सज्ञा स्त्री॰ [स] दे० 'कुणचुडा' [को०)। लघु, कुन १३० वर्ण या १५२ मात्राए', अथवा २२ गुरु कृष्णचूर्ण -- सम्रा पुं० [सं०] लोहे का चूरा । लौहमल [को०] । १०४ लघु, कुन १२६ बर्ण या १४६ मात्राएं होती हैं । कृष्णचैतन्य-सच्ची पुं० [सं० कृष्ण + चैतन्य] दे॰ 'चैतन्य' । ६ चार अक्षरो का एक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में कृष्णछवि - सच्चा सी० [सं०] १ काले हिरन का चमग । २. काली एक ‘तगण' और एक लघु होता है । जैसे--तू ला मन । | वादल । । गोपीधन । तृष्ण तज । कृष्ण भज । ७ वेदव्यास । ८ कृष्णजटा--संज्ञा स्त्री० [स] जटामासी । अजुन । ६, कोयल । १०. कौवा) ११ कदम का पेड़ । १२ कष्णजीरक -सुन्नी गु० [सं०] काला जीरा । मास का वह पक्ष जिसमें चद्रमा को ह्रास हो । अँधेरा पक्ष । कृष्णताम्र-सी पुं० [सं०] एक प्रकार का चदन किये। १३ फलियुग । १४ शाल्मलि द्वीप के निवासी शुद्र। १५ कृष्णतार--सच्चा पुं० [सं०] १. काले मृग का एक भेद या जाति । करौंदा । १६, नील 1 १७ पोपले । १८ जैनियो के मतानुसार २. मृग या हरिण किये । । नौ काले वसुदेवो में से एक । १९ वौद्धों के मतानुसार एक कृष्णदेह सच्चा पुं० [ स० ] काले रग की वडी मधुमक्खी' या राक्षसे जो बुद्ध का शर् माना जाता है । २० चद्रमा का भ्रमर [ो । धन्वा । २१ लोहा । २२ सुरम।।। कृष्णद्वैपायन-सा पुं० [सं०] पराशर के पुत्र वेदव्यास । पाराशयं । कृष्णकचुक--संज्ञा पुं० [सं० कृष्णकञ्च] काला चना (को०)। कृष्णघन--सज्ञा पुं० [सं०] अनैतिक उपाय से अजित धन [को०] । कृष्णकद--संज्ञा पुं० [सं० कृष्णकन्द रक्त कमल । लाल रंग का । कमल (को०)। कृष्णपक्ष-सा पुं० [स] १. वह पक्ष जिसमे चद्रमा का ह्रास हो। कृष्ण क--सच्चा पुं० [सं०] कृष्ण वर्ण के मृग का चर्म (को०] । अँधियारी पक्ष । २ अर्जुन का एक नाम (नै । कृष्णकर्म-सज्ञा पुं० [सं०] १ हिसा आदि पापपूर्ण कर्म । २ वह कृष्णपर्णी---तम्ना स्त्री॰ [स०] काले पत्ते ची तुलसी । कृष्णा । में जो विना फल की कामना के किया जाये। ३ फोड़े की कणपवि---संज्ञा पुं० [स] अग्नि [को०] 1 चिकित्सा की पक प्रक्रिया ।। कृष्णपही-सच्चा पुं० [स०] एक प्रकार की गानेवाली चिड़िया । कृष्णकर्मा-वि० [सं० कृष्णकर्मन् दुष्कर्म करनेवाला । अपराधी । विशेष--लंबाई में यह एक बालिश्त होती है। यह कश्मीर से पापी [को०] ।। भूटान तक पाई जाती है और जोड़ों में नीचे उतर आती है। कृष्णकाय---सज्ञा पुं० [सं०] १ महिष । पैसा । २ कोई भी वस्तु या यह वृक्षो की जद में घोंसला बनाती है और एक बार में | प्राणी जो काले रंग का हो । कृष्णकाष्ठ–सज्ञा पुं० [सं०] कृष्णागुरु । काला चदन था अगर कौ०] । चार अडे देती है । कष्णकेलि--सज्ञा पुं० [सं०] १ गुल अब्स 1 गुलाबींस का फल । कृष्णपाक-सा पुं० [सं०] केरौंदा । २ गुलाबसि का पेड़ । कृष्णपिंगलासच्चा ली० [सं० कृष्णपिङ्गला] दुर्गा [को०)। कृष्णकेलि-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] कृष्ण की झीछा । कृष्णलील । उ० कृष्णपुच्छ-सच्चा पुं० [स०] रोहू मछली । कृष्णकेलि मोतिग कहौ ताकी कथा बनाय ।-व्रज० ग्र०, कृष्णपुष्प—सच्चा पुं० [स] काला धतुरा । पृ० १ ।। कृष्ण कोहल–सुज्ञा पुं० [सं०] जुआ खेलनेवाला । जुप्रारी [को०] । कृष्णफल-सा पुं० [स] करौंदा । कृष्णगगा--संज्ञा स्त्री॰ [सं० कृष्णगङ्ग] कृष्णा नदी । कृष्ण वेणी । कृष्णफला-संज्ञा कृष्णफला--सज्ञा स्त्री॰ [स०] १. मिर्च की लता । १२. एक प्रकार का कृष्णगधा-सज्ञा स्त्री० [सं० कुष्णन्विा] सहिजन । शोभाजन। | छोटा जामुन । कृष्णगति-सज्ञा पुं॰ [सं०] अग्नि । झाग (को०)। कृष्णवीज-धी० पुं० [स०] तरबुज । कृष्णगर्भ-सुज्ञा पुं॰ [सं०] कायफल ।। कृष्णभुजग--सज्ञा पुं॰ [सं० कृष्णभुजङ्ग] करेत साँप । काल सर्प । कृष्णगभर--सज्ञा स्त्री कृष्ण नामक असुर की भार्या । कृष्णभूमि--सज्ञा भी० [सं॰] वह स्थान जहाँ की मिट्टी काली हो । कृष्णगिरि--संज्ञा पुं॰ [सं०] नीलगिरि पर्वत (को०] । कृष्णभेदा-सज्ञा स्त्री० [सं०] कुटको । कृष्णगोघा--संज्ञा स्त्री॰ [सं०] एक जहरीला झी । विष कीट (को०]] कृष्णमुड़ल-सज्ञा पुं० [स० कृष्णमड़स] अाँख की पुतलो।