पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५१३

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१९६१ कशतास ४० [सं०] १ दुबलापन । टुर्यन । दोणता । कृयण---सा पुं० [सं०] किनान । ऐतिहर। Car३ नकार । पतलापन । २ ग्रातृ । सूक्ष्मता 1 कमी कृषि- सद्या स्त्री० [सं०] [दि० कप्य] १. अंती । काश् । किसानी । कृशताई-सम धी० [सं० कृशता+हि० ई (प्रत्य)] ३० कुश' । २ हर घलाना । जोतना बोन (को०)। ३. पृथिवी । जमीन । कशत्व--सपा पुं० [सं०] १. क्षीणता । दुलापन ! २, अल्पता ! धरती (को०) । सूक्ष्मता । कमी। कृपिक-सा पु० [सं०] १ खेतिहर । किन । २ हुल का फल । केशन-सा पुं० [सं०] १ मुक्त: । मोती। २. सोनी । हिरण्य ।। कृषिकर्म--- संज्ञा पुं० [ कपिफर्मन्] खेती कर बम । किसानी (०] । ३ अाकार । प्रकृति । गठन (को] । कृषिकार-सया पु० [सं०] सिन । खेतिहर । कृशनास-सा पुं० [सं०] शिव। कृपिजीवी----वि० [सं० कृविजीविन] खेती के द्वारा जीविका उपाजव भत्य-वि० [सं०] भत्य या नौकरों को कम खाना देनेवाला । फरनेवाला (किसान) (को॰] । कृयर--सी पुं० [सं०] [ जी० केशरा ! १ तिल और चावल को कृषी-सा सी० सं० फूवि दे० 'कृ' । खिचडी। २. खिचडी । ३ लीरिया मटर 1 केसारी। दुवियः ।। कृपा-सा सी० [सं०] झर्पण भूमि । पुत ०] । कुशरान्न-सुज्ञा पुं॰ [सं०] खिचड़ी । कृषीवल-सा पुं० [सं०] किसान । वेतिहर । कृषिकर (को॰] । कला -सच्चो औ० [सं०] सिर के केवा । शिरोरुह चिो०] । कृष्कर-सा पुं० [सं०] शिव । महादेव ०] । कशोग'--सच्चा पु० [सं० शहि शिव ०] । कृप्टे---वि० [सं०] १ जोता हग । हुन ३या हुआ । ३०-उभे कृशाग-वि० [सं० कृशाङ्ग! दुबला पतला 1 क्षीणकीय क्षे] । | उचित है कि कृप्ट भुमि पर न रहे 1----हिंदु० सम्यता, कृशाशी--संवा स्त्री॰ [ स० काङ्गी ] १. दुबले पतले शरीर की पृ० १३३ । २. खीचा हुआ { घसीटा हुन । युवती । तृन्दै १२, प्रिय लन (को०] । कृप्टपच्द--वि० [त०] खेत में वोने से पैदा होनेवाला । खेत में पकने कृशाक्ष--सा पुं० [सं०] ऊर्णनभ । सप्टपदं । मकड़ा [को॰] । ये तैयार होनेवाला । उ०-ग्रन दो प्रकार के होते थे, फष्ट्र कृयातिथि-वि० [सं०] १. अतिथियों को कम भोजन देवाला। २ । पच्य तथा अष्टपच्य |--संपूर्ण० ममि० ०, पृ० २४८! कृपणता के कारण जिसके घर ऋतिथि कम आते हो (को॰) । कृष्टपाक्य-वि० [k०] दे० 'कृष्टपच्य' [२] । कृशानुसया पुं० [सं०] १. अग्नि । २ विग्रेक । चौतर । कृष्टफल-सज्ञा पुं० [सं०] खेड में पैदा होनेवाली फसल (वै । यौ---कृशनानुयश् । कानुरे । कृष्टि-संज्ञा पुं० [सं०] विद्वान् पुरुष [वै] । कृशानुयत्र--सज्ञा पुं० [स० कृशानुपन्त्र] अग्नि येश। कृष्टि-सया धी० [सं०] १ वचन । कृप्ट फरना। २. खेद कृशानुरेता-सा पुं० [सं० कृशानुरेतस्] शिव । महादेव । | जोतना। खेत झमान! (फो०)। कृशाश्व-सा पुं० [सं०] १ भागवत के अनुसार तृणविद् वश का कृष्टीप्त--वि० सं०] (खेत जोता वोया हुआ है। [ये० । एफ राजपं जो सयम का पुत्र और महादेव का का वडा भाई कृष्ण'--वि० [सं० १ श्याम । फ़ा ता । सियाह । २. नीला पा था । २. दक्ष के एक जाभाता । । | मास मानी ३, दुष्ट । अनिष्ट र [ये। विशेष--भागवत के अनुसार इन्होने दक्ष की शुचि और धीपणा कृष्ण-सुद्धा पुं॰ [स्त्री कृष्णा] १ विष्णु के दस अवतारों में प्राठवाँ नाम की मान्यझिो से विवाह किया था। अचि के गर्भ से अवतार । यदुव ची वसुदेव के पुत्र, जो भोजवशी देवक की धूमकेश और छापणा के गर्भ से देवेन भुमिक पुत्र हुए थे। न्या देवी के गर्भ से उन्ल द्वैए थे। रामायण के मत से कृशाश्व ने दक्ष की जया और सुप्रमा विशेप-उस समय देव के भाई र उग्रसेन का पुत्र कंस नाम की कन्या को उपहा था, जिनसे पचास पचास अपने पिता को कैद कर शस्त्र स्वरूप पुत्र हुए थे। भय का राज्य करता था। देवकी के विवाह के समय फर्म को किसी प्रार यह बात ३. हरियश के अनुसार धुध मारवशी एक राजा, जो नाट्ययास्त्र मालुम हो गई थी कि देवकों के 15वें गर्भ से जो बारक के एक प्राचार्य माने जाते हैं। उत्पन्न होगा, वह मुझको मार गिा । इसलिये कंस ने कृशाश्वी---सा पुं० [३० काश्यिन्] १. कृयाश्यकृत नाट्यशास्त्र देवी यौर वसुदेव को अपने यह कैद छर लिया था। देवकी के पढ़नेवाला या पढ़ानेवाला । २. नाट्यकला में कुल के सति चालकों को तो स ३ जन्म नै हो मार डाला था, भ्यक्ति । ३ } पुः अठवें पालक कृष्ण को, जिनका जन्म मोदी की है। कृति-वि० [३०] दुबला पतन । दुल । क्षीण काय । अष्टभी को घी रात के उम्म दुमा था, वसुदेव बी गोकूच कृशोदर-वि० [स०] जिसका पेट बढ़ा न हो । कृय उदरवाता [e] । में जाकर नद के घर प माए थे। बड़े होने पर कृष्ण ने कृशोदरी--वि० डी० [२] पतली कमरवाली (स्) । अनेक मत कार्य किए थे, जिनमें वारस तक होकार कृशोदरीता • [१०] प्रनतमुस । क्रस ने उन्हें मरवा इदने के हुने उपाय किए, पुर सय कृषक--- पुं० [सं०] १. किसानु । खेतिहर । फवार । २. हुत यदै हुए ! म ने 5 ३ फल की धर । । इन्होने झा झाव । ३, वैत (को०) । विदर्भ के राजा के झा इनिणी में विवाह किया ।