पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५११

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१०२६ कृपाणिका कृत्यादूपण कृपणता—सबा बी० [सं०] १. कंजूसी । २. दीन । दैन्य (को०)। कृत्योदूपण-- सी पुं० [सं०] १ एक प्रकार का कृत्य जो कृत्या के प्रतिकार के लिये किया जाता है । २ एक प्रकार की प्रोषधि कृपणधी--वि० [सं०] क्षुद्रबुद्धि । कपणी-वि० [सं० कृपणिन] दृ खी। विपन्न । दयनीय (को॰) । जिनने कृत्य के दोष का निवारण होता है। ३. अगिरमे वश -सा पुं० [सं० कृग्ण] ६० 'कृपण'। उ०---मीजि हाय के एक ऋषि, जो कृत्या के दोष का निवारण किया भरते थे। कृपन सिंह धुन पबिताई । मननु कृपन घन सि गंवाई।-- मानस, कृत्वार -सज्ञा स्त्री० [सं० कृन्या} क्रिया । उ०—हम है नूप राज २ । १४४।। | विचार जो पूछो कारन कृत्यार -पृ० रा०, २५ । १६५ । कृमनाई -सा स्त्री० [सं० फुग्ण+हिं० श्राई (प्रत्य॰)] कृपता । कृत्रिम—वि० [सं०] १ जो असुली न हो । नकली। बनावटी। कंजूसी । उ॰—दानि कहाउन अरु कृपनाई । हाइ नि मेम | जाली । २ वरिह प्रकार के पुत्रो मे से एक । कुल रौताई ।--मानस, ३।३५।। विशेष–पुत्राभिलाषी पुरुप, यदि किसी माता-पिता हीन बालक कृ पन् -वि० [हिं०] दे॰ 'कृपण' 1 उ०--कृपनु देइ, पाइप परो, फ धन संपत्ति का लोम विदाकर उससे अपना पुत्र बनना विन साधन सिधि होइ --तुसी J० पृ० ६६ ।। स्वीकार करके उसे पुत्रवत् अपने संग रखे तो वह बालके उस कपया-क्रि० वि० [सं०] कृपापूर्वक । अनुग्रहपूर्वक। जैसे---कृपया पुरुष का कृत्रिम पुत्र कहलाएगा। | हमारा यह काम कर दीजिए । कृत्रिम-सी पुं० १ काच लवण । कचिया नोन। २. अवादि। कपॉन -सा श्री॰ [ सुं० कृपाण ] दे॰ 'कृपाण' । उ०--- गधद्रव्य । ३ रसौत । रसाइन । दाँत कृपनि विधान अखिल भूपति मन मोहै ।–० रासो, कृत्रिम अरिप्रकृति-सा पुं० [सं०] वह राजा जो किसी दूसरे को पृ० १३।। विजेता कै वि व मराठी हो । , कपा- सच्चा भी० [सं०] [वि॰ कृपालु] १ बिना किसी प्रतिकार की। कृपा --सुश पुं० [सं०] दशागादि धूप जो अनेक प्रकार के सुगंधित अापणा के दूसरे की भलाई करने की इच्छा या वृत्ति । अनुग्रह । | द्रव्यों को मिलाकर बनाया जाता है। दया । मेहरवानी। कृत्रिमपुत्र-संज्ञा पुं॰ [सं०] वह पुत्र जो माता पिता की सहमति के यौ०-कृपादृष्टि= दया की दृष्टि । कृपानिकेत = दे० कायन'। विना गोद लिया गया हो (को॰] । कृपापात्र, कृप, भजन= दया का पात्र । दया के योग । कृत्रिमभूमि -सच्चा स्त्री० [सं०] वह चबूतरा जो किसी मकान या कृपायतन = दया के निवास । दयालु । कृपासिंधु कृ के इमारत के नीचे उसे सीट अादि से बचाने के लिये बनाया सागर ( भगवान् ) । जाता है। कुर्मी । २ क्षम। माफी । जैसे-जो कुछ हो गया, सो हो गया, अब कत्रिमपुत्र-ज्ञा पुं॰ [सं०] गुड्डी । गुडुवा [को॰] । कृपा करो ! कत्रिम मित्र-सपा पु० [सं०] वह मित्र जिसके साथ किसी उपकार । पादि के कारण मित्रता स्थापित हो । शास्त्रों में ऐसा मित्रग्रौर कृपाचार्य- सा पुं० [सं०] गौतम के पौत्र मौर शरद्वा के पुत्र ।। अश्वत्थामा के मामी। प्रकार के मित्रो से श्रेष्ठ माना गया है। कृत्रिम मिञकति--सा पुं० [सं०] वह रवि जो धन तुपा जीवन विशेष—इनका वहन कृपा से द्राचार्य का विवाह हुमा था। ये घनुविधा में व प्रवीण थे। द्रोणाचार्य की भांति इन्होने के इतु मित्र न गया हो। मी कौरवों और पांडवो को अस्य शिक्षा दी थी । कुरुक्षेत्र के कृत्रिभवन–ज्ञा पुं॰ [सं०] उपवन । उद्यान । बगोवा (को०) । युद्ध में ये कौरवो की ओर से लड़े थे, पर युद्ध समाप्होने । कत्रिमारति प्रकति--स) पुं० [सं०] दे० 'कृत्रिम परिप्रकृति' । पर युधिष्ठिर के पर रहने लगे थे । राजा परीक्षित को भी कृत्स–सञ्च पु० [सं०] १ जन । २ भीड़। समू३ । ३ कलुष । इन्होने अस्त्र विद्या सिखाई थी। पाप । अध [को॰] । कपाण--संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० अल्पY० फुपाणी ] १. तलवार । २ । कृत्स्न'- वि० [सं०] सुपूर्ण । सत्र । पूरा [वै] । कटार । ३ दडश बुत का एक भेद ।। कृत्स्न -सा पुं० १. जुने । २. उदर | कुक्षि (को०)। विशेप---यह छः ३२ दण का होता है। प्रठि पाठ वर्गों पर कृत-सेश पुं० [सं० वृदन्त] वह शब्द जो धातु में कृतृ प्रयये लगाने यति होती है। इसमें ३१ व वयं गुरु पौ। ३२व लघु होar से ने । जैन,-पाचक, नवन, भुक्त, भोक्तव्य, भोक्ता आदि। है । यतियो पर अनुप्रास का मिलान और प्रज में 'नफार' का । कृप-सा पुं० [सं०] १ वैदिक काल के एक राषि का नाम । २. होना इस धद की जान है । उ०—च नी छ के विरान, | दे० वायं । महा कालहू को काल, किये दोऊ दुग लाल, घीप र समुन। कृपण'-वि० [सं०] [सा कृपणत] १ कम । सम । अनुदार । वी लागे लहरान, निसिचरह परवि, वह कालिका रिसान, कयं । २ द्र। नीच। ३ विवेझरहित (को०)।४ गरीब।

  • कि झारी किरपान । दयनीय । अगा (को॰) । कृपण सो पु० १ अनुदार या सूम ब्यविठ । २. एक प्रेशर का कृपाणके--संज्ञा पुं० [सं०] १. ते वार । २ कटर।

कुपाणिक-सा जी० [सं०] १, छोटी तनपारे। २, कारी । कोट । ३, बुरी हात। दुर्दशा ने] ।