पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५१०

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१२६ कृतमाला तत्संबंधी। उ०-फूले फाँस सकल महि छाई । जनु बरपा कृतघ्न--वि० [सं०] किए हुए उपकार को न माननेवाला । अकृतज्ञ । छत प्रगट वुढाई ।—तुलसी (शब्द०)। नमकहराम । विशेष--यहाँ ‘कृत' सबंध विभक्ति ‘का' के स्थान पर आया है। कृतघ्नता--सच्चा श्री० [सं०] किए हुए उपकार को मानने की भाव। कृत—सज्ञा पुं॰ [सं०] १ चार युगो में से पहला युग । सतयुग । कृतज्ञता । नमहरामी। २ पद्रह प्रकार के दासो में से एक । वह दस जिसने कुछ कृतघ्नताई -सा। स्त्री० [सं० कृतघ्नता+हि० ६ (प्रत्य॰)] ३ नियत काल तक सेवा करने की प्रतिज्ञा की हो । ३ एक 'कृतघ्नता' । । प्रकार का पासा, जिसमें चार चिह्न बने होते हैं । ४ चार कृतघ्नी --वि० [सं० मृतघ्न + हिं० ई (प्रत्ये०) ] दे॰ 'कृतघ्न' । की सख्या 1 ५ फल । परिणाम । ६ उद्देश्य ! लक्ष्य । ७. ३ मुक्तिदाता । कर्मनाश करनेवाला । बधन से छुड़ानेवाला। उपफार 1 उ०—इन चित्त चकोर कछुक धरौ । मिय देह । उ०—कृतघ्नी कुहावा कुन्याहि चाई। म चं०, पृ० ६६ । वताय सहाय फरौ ।-राम० च०, पृ० ७६ । ६ क में । कृतज्ञ--वि० [सं०] [सा कृतज्ञता] किए हुए उपकार को मनिने काम ! कृत्य । उ०—रोवत समुझि कुमातु कृत, मीजि हुये वाला। एहसान माननेवाला । जैसे,—यह कार्य कर दीजिए, घुनि माथ --तुलसी यू १, पृ० ७४ । ६. सेवा 1 लाभ तो हम अापके वडे कृतज्ञ होगे । (को०) । १० युद्ध में प्राप्त धन या इनाम (को०)। ११. देवता कृतज्ञ--सी पुं० कुता । श्वान [२] । या समानित व्यक्ति को अपत वस्तु । भेंट (को०)। कृतज्ञता-सज्ञा भी० [सं०] किए हुए उप कार को मानने फा भाव । कृतक-वि० [सं०] १ किया हुआ । २ अनित्य । नैसगिका का निहोरा मानना । एहसान मद । उलटा (न्याय) । ३ कृत्रिम । फरजी वनविटी। ४. कृततीथै--वि० [सं०] १. झो तीर्थस्थानों में भ्रमण कर चुका हो । २. कल्पिते । दिखावटी । उ०--ये राज्य, प्रजा, जन, साम्य तंत्र, अध्यापन वृत्तिवाले अध्यापक से शिंदा प्राप्त करनेवाला । ३ शासन चालन के कृतक यान ।—युगात, पृ॰ ६० ।५ दत्तक । जिसे तरकीय पूर्व सूझती हो। ४. पथप्रदर्शक । ५. सरल गोद लिया हुआ (को०)। किया हुआ [को॰] । यौ०-कृतकपुत्र = दत्तक पुत्र। कृतदंड--सा पुं० [सं० कृतदण्ड] यमराज । उ०—गोपन सखा कृतक-सज्ञा पुं० एफ प्रकार का नमक 1 विट्टलवण [को०] । मार्च करि देखे, दुष्ट नृपति कृतदड ! पुत्र ‘माव वसुदेव देवकी, कृतकम---वि० [सं० कृत मेन्, १ जो अपना काम सिद्ध कर वेसे नित्य अखड।-सूर (शब्द॰) । चुका हो । सफलतप्राप्त । कामयाब । २ चतुर । प्रवीण । कृती--वि० [सं०] १. दुरदशी । २ विद्वान् । शिक्षित । ज्ञानवान् कुशल । को । कृतकर्मा-- संज्ञा पुं० १ तीनो ऋण (ऋषि, देव और पितृ) से युयत । कृतनदक–वि० [सं० कृतनिन्दक] कृतघ्न । ना शुकरा । नमकहराम्। संन्यासी । २ परमेश्वर । कृतकाम-वि० [सं०} जिसकी कामना पूरी हो गई हो । उ०-जो न तर भवसागर नर समाज अस पाई। सो कृतकृतकारज)---वि० [सं० कृतकार्य] दे० 'कृतकार्य' । निदक मदमति अरमान गति जाइ।—मानस, ७ । ४४। कृतकार्य- वि० [सं०] जिस प्रयोजन सिद्ध हो चुकी हो । सफल- कृतनिश्चय–वि० [सं०] जिसने दृढ़ निश्चय कर लिया हो । कृत ॐ | मनोरः । कामयाव ।। सकल्प । दृढ़प्रतिज्ञ [को०] । कृतकाल-स:T पुं० [स०] निश्चित समय । निर्धारित काल [को०] । कृतपुख-वि० [सं० कृतपुङ्ख] बाणविद्या या धनुविद्या में कुशल [को॰] । कृतकालदास--सच्चा पुं० [सं०] वद् दास जिसने कुछ ही समय के कृतपूर्व---वि० [सं०] पहले किया हुआ। । पूर्वत सपन्न (को०] । लिये ६ पने को दास (नया हो । कृतप्रतिज्ञ--वि० [सं०] जिसने प्रतिज्ञा कर ली हो [को०] । कृतकृत -वि० [सं० कृतकृत्य] दे० 'कृतकृत्य'। उ०—ह तो कृतफल- सज्ञा पुं० [सं०] सफल [को॰] । | कृतकृत हुँ गयो इनके दर्शन मात्र ।-नद० प्र०, पृ० १८६ । कृतफल-सज्ञा पुं० [सं०] १ शीतल चीनी । ३ कोलर्थिी । सुमरा कृतकृत्य–वि॰ [सं०] जिसका काम पूरा हो चुका हो । कृतार्थ । सफलभ नोरथ । वैसे---हम अापके दर्शन से कृतकृत्य हो गए। कृतम —वि० [सं० कृत्रिम[ ३० कृत्रिम' ।--यातम महैि ऊपजे विष- इस शब्द को 5 योग प्राय, अविर, समान, श्रद्धा आदि | दादू पंगुल ज्ञान । कृतम जाइ उलधि फरि, जौ निरजन सूचित करने में होता है। थान दादू०, पृ० ५। कृतक्रय-सज्ञा पुं० [सं०] क्रय करनेवाला व्यक्ति । खरीददार [को०)। कृतबुद्धि-वि० [सं०] दे० 'कृतधी' (को०] । कृतक्षण–वि० [स०] १ निर्धारित समय की उत्सुकता के साथ प्रतीक्षा कृतमाल--संज्ञा पुं० [सं०] १. अमिलतास । २ चितकबरा सृग । | करनेवाला । २ सुअवसर पानेवाला । सुयोगप्राप्त (को॰] । घव्वेदाय हिरन (को०)। ३. कसदा फा एका भेद । कासमर्द कृतघन –वि० [सं० तन] दे॰ ‘कृतघ्न' । उ०सकट पर तुरत (को॰) । । उठि घ}वत, परग सुगट निज पन कौं । कोटिक करे एक नहि कृतमाला-सुज्ञा स्त्री॰ [सं०] दक्षिण ( द्रविड ) देश फी एक छोटी |, माने सुर महा कृतवन की --सूर०, १६ । नदी, जिसके जस के पान का माहात्म्य भागवत में लिखा है। । । ६ ।