पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५१

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उत्क्रश उत्कलाप ५६३ उत्कृति-संज्ञा पुं॰ [ स०] २६ पण के वृत्तों का । सुख प्रार यो०i=-उत्क लखी =स्कदपुराण का एक भगि। | २-वलिया । ३ वोझा ढोनेवाला । ४, ब्राह्मणों का एक भुजग विजू भित्र इत्यादि इन्ही के अतर्गत हैं । भेद (को०] ।। उत्कृति- वि० छवीस (संख्या) । उत्कलप---वि० [ स० ] ऊपर की तरफ पूछ फैलाए हुए को०]। उत्कृप्ट–वि० [स०] १ उत्तम । श्रेष्ठ । अच्छे से अच्छा । सर्वोत्तम । २ ऊपर से उठाया हुआ (को०)। ३ जता हुअा। (को०)। उत्कलिका—संज्ञा स्त्री० [सं०] १ उत्कंठा । २ फूल की कली। ४. तोडा हुा । काटा हुआ (को॰) । | ३ तरंग । नहर । ४ वह गद्य जिसमे बडे बडे समोसवाले उत्कृष्टवेदन--सज्ञा पुं० [ १० ] अपने से उच्च जाति के व्यक्ति से | पद हो ।। उत्कलित--वि० स० ] मुक्त । प्रस्फुटित । उ०—हर पिता कठ विवाह करना [को॰] । की दृप्त र, उदकनित रागिनी की बहार !-अनामिका, उत्कृष्टता-सज्ञा स्त्री० [न०] वडाई । श्रेष्ठता । अच्छापन । वड़प्पन । उत्कृष्ट होने की स्थिति । उ०--यह मनुष्य जिससे वेनिस के पृ० १२५। प्रत्येक निवासियो को घृणा है, जिसके निकट महत्व और पानिप उत्कर्पण-सा पु० [ सं०] १ चीरना। फाइना। २. हल से कोई उत्कृष्टता नहीं रखता, जो वृद्ध और युवा सव पर कराघात | जोतन[ [को॰] । करने को उद्यत है ।-अयोध्या (शब्द०) । उत्का-वि० ० [ म० 1 ३० ‘उत्कठिता' । उ०—अाप जाय संकेत मे, पीव न आयो होय । ताकी मत चिता करें उत्का कहिए उत्केंद्र-वि० [ स० उत्केन्द्र ] १ केंद्र से निकाला या ग्रल ग किया सोय –मतिराम ग ०, पृ० ३०४।। | हुआ । २ विना नियमवाला [को॰] । उत्केद्रक–वि० [सं० उत्केव्रक ] केंद्र से अलग या बाहर करनेवाला उत्काका-सच्चा स्त्री॰ [ स० 1 वह गाय जो प्रति वर्ष वच्चा दे। | [को ।। | वरसाइन गाय । उत्केद्रकशक्ति-सज्ञा स्त्री० [स० उत्केन्द्रकशक्ति केंद्र से दूर फेंकनेवाली उत्कार-उबा जी० [ स०] १ अनाज फटकना या पोरना। २. शक्ति 1 यह शक्ति जोर से चक्कर मारती हुई वस्तुप्रो में उत्पन्न अनाज की राशि लगाना। ३. वह जो वीज बोता है किो०] । हो जाती है, जिससे उस वस्तु का कोई खडित अश अथवा उत्कारिका–संज्ञा स्त्री॰ [ स० ] लोथा । पुलटिस । लेप [को०)। ऊपर रखी हुई कोई और चीज उनके केंद्र से बाहर की ओर उत्काशन–सा पुं० [ १० ] अाज्ञा देना को०] । वेग से जाती है, जैसे, पहिए से लगा हुअा कीचड गाडी चलते उत्कास--सज्ञा पु० [ १० ] गला साफ करना । खखारना [को०] । समय दूर जा पडता है। उत्कासन--संज्ञा पुं० दे० 'उत्कसि’ (को०] । उत्केंद्रता-सज्ञा स्त्री॰ [ स ० उत्केव्रता ] केंद्र से च्युत होना । धुरी- उत्कासिका–सझा स्त्री० दे० 'उत्कासन' [को०]।। हीनता । उ०—दुर्बोधता, प्राचुई और उत्केंद्रता शास्त्रीय उत्कीर्ण--वि० [सं०] लिखा हुआ ! खुदा हुआ। छिदा हुआ। विधा सपूर्णता के विरुद्ध है ।--पा० सा॰, पृ० १७१ ।। हुआ। उ०—गवर्नमेंट ने पडित जी की विद्वत्ता की प्रशंसा उत्कोच-सज्ञा पु० [सं०] घुस । रिश्वत । उत्कीर्ण कराकर एक सोने का पदक पुरस्कार में दिया । यौ॰—उत्कचाही । उत्कोचजीवी । सरस्वती (शब्द॰) । उत्कोचक-वि० [सं०] [वि० स्त्री० उत्कोचिका ] घुसखोर i रिश्वत उत्कीर्णकर्ता----वि० [सं०] लिखने या लिखवानेवाला । उ०—आगे । खानेवाला । के पल्लव अभिलेख सस्कृत में हैं जिसके अध्ययन से पता चलता उत्कोचक-सज्ञा पु० रिश्वत खाना । रिश्वत लेना [को०] । , है कि उनके लेखक तथा उत्कीर्णकर्ता पाँचवीं तथा छठी उत्कोटि-वि० [सं०] नोकवाला । नोकदार [को॰] । शताब्दी में हुए ये 1-प्रा० म०, पृ० ५९१ ।। उत्क्रम--संज्ञा पुं० [सं०] १ उलटप नट ! क्रम भग । विपर्यय । २. उत्कोर्तन-सज्ञा पुं० [ स० ] [ वि० उत्कीतित ] १. प्रसशा । स्तुति । असमान होना। करना। २ चिल्लाना । जोर से पुकारना । ३ घोषणा करना । उन्क्रमण-सज्ञा पुं० [सं०] [वि० उत्क्रमणीय] १. ॐ उत्क्रमण-सज्ञा पुं० [सं०] [वि० उत्क्रमणीय] १. क्रम का उल्लघन । २ मरण । मृत्यु । ३ बाहर या ऊपर जाना (कौ०] । ३ वृद्धि उत्कुट–सज्ञा पुं० [ स० ] चित्त सोना । (को०] । होना । वढ़ना (को०] । उत्कुटक–वि० [सं० ] ऊपर मुंह करके सोया हुआ (को०] । उत्क्राति--सज्ञा स्त्री॰ [स० उत्क्रान्ति क्रमश उत्तमता और पूर्णता की उत्कुण–सच्ची पुं० [सं०] १. मत्कुण । खटमल । उडुस । ओर बढती हुई प्रवृत्ति । ६० ‘आरोह' । उ०—मनोमदिर की मेरी २ वालो का कीडा । जू । शाति । वनी जाती हैं क्यो उत्क्राति ?--साकेत, पृ० ३२।। उत्कृज--धम्रा पु० [सं०] कोयल का गान करना । कोयल की कूकना । यौ--उत्क्रातिवाद । उ०—मा पाविज्ञान और उत्क्रातिवाद दे (को॰) । | भी बहुत सी ऐतिहासिक घटना में तार्किक सद्धि ता दिखाई। उत्कुट--संज्ञा पुं० [ स० ] छाता या छतरी [को०] । -पा० सा०, पृ० । उत्कृर्दन–सज्ञा पुं० [म० ] कूदना । उछलना [को०] । उत्कूल-वि० [सं० 1 १ ऊपर जानेवाला ( पर्वत या नदी) 1 ३ उत्क्रोश-संज्ञा पुं॰ [सं०]१. शोरगुल । हलना । चिल्लाना । जोर की अावाज । २. घोपण | राजाज्ञापत्र द्वारा प्रकाशन । ३ कुररी किनारे पर पहुँचानेवाला । ३. किनारे की तरफ बढ़ने- पक्षी [को०] ! वाला [को०] । १