पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५०९

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कृतमुख १०२७ कृत स्त्र । कृतमुख-सज्ञा पुं० [सं०] पंडित । कृतकृत--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. किया और बिना किया इअ । २ कृतयुग-सज्ञा पुं॰ [सं०] सतयुग । अधूरा काम । ३ कार्य और कारण । ४ सोना और चाँदी । कृतवर्मा---संज्ञा पुं० [सं० कृतवर्मन] १. राजा कनक का पुत्र और ५. वह हव्य द्रव्य जो कच्चा और अपक्व हो । जैसे-कच्चे कृत्वौर्य का भाई । २ हृदक का पुत्र । ३ जैन मतानुसार चावल आदि । वर्तमान अवमपिणी के तेरहवें अर्हत के पिता। | कृतागम-वि० [सं०] प्रवीण । समर्थ । कुशन [को॰] । कृतविदुषण संधि–सुज्ञा स्त्री० [ स० कृतविदूपण सन्धि ! कौटिल्य कृतागम’---संज्ञा पुं० परमात्मा । ब्रह्म [को॰] । के अनुसार शत्रु के बागियो या अपने गुप्तचरों द्वारा यह सिद्ध कृतात्मा--संज्ञा पुं० [सं० कृतात्मन्] वह मनुष्य जिसकी प्रात्मा बुद्ध | करके कि शत्रु ने सधिभरा किया है सधिभंग करना । हो । महात्मा । कृतविद्य---वि० [सं०] जिसे विद्या का अभ्यास हो । जानकार । कृतात्यय- सपा पुं० [सं०] साढ्य दर्शन के अनुसार 'मोग द्वारा फेम उ०—ा रूप दर्शन जव कृतदिद्य तुम मिले ।-अपरा, पृ० झा नाश । विशेप-साख्य का मत है कि एक बार जो कर्म ग्त्पन्न होता कृतवीर्य–सज्ञा पुं॰ [सं०] १. राजा कनक का पुत्र और कृतवर्मा का है वह बिना भोग किए हुए नष्ट नहीं होता । यद्यपि ज्ञान | भाई । १ सहस्राजुन का पिता (को॰) । उत्पन्न होने पर कर्म का मत हो जाता है और नए कर्म की कृतवेदी-वि० [म० कृतवेदिन] उपकार माननेवाला । कृतज्ञ । उत्पत्ति नहीं होती, पर इममें पहले का किया है। कर्म विना कृतवेश-वि० [सं०] सुसज्ज । विभूपित कि० । भोग किए नष्ट नहीं हो सकता । इसी ये मुम्न पुरुप की कृतशुल्क-वि० [सं०] कौटिल्य के अनुसार (मान) faसपर चु गी दी दो अवस्थाएँ होती हैं-जीवन्मुक्ति और विदेकैवल्य । श न | जा चुकी हो । 'उत्पन्न होने पर मनुष्य के कर्मों का अंत हो जाता है और कृतशोभ- वि० [सं०] १. शानदार। २. सुदर । ३ पट ! चतुर। उसे जीवन्मुक्ति मिलती है । लेकिन पूर्व सचित या प्रारब् कमें दक्ष (को॰] ।। का फल भोगने के लिये या तो मुक्त पुरुष का शरीर विद्यमान कृतशोच-वि० [सं०] पवित्र । शुद्ध किया हुआ । २. जिसने रहता है और या उसे पुरा शरीर धारण करना पड़ता है। स्नानादि नित्यकर्म कर लिया हो (को॰] । इसी अवस्था में फल भोगकर कर्म की जो ममाप्नि की जाती कृतलेपण संधि-संज्ञा वी० [सं० कृतश्लेषा सन्चि ] कौटिल्प के है, उसे 'कृतात्यय' कहते हैं। विदेहकैवल्य इसके बाद अनुसार वह पक्की सधि जो मित्रों को बीच में डालकर की मिलता है। जाय और जिससे युद्ध या विग्रह की सभावना न रह जाय। कृतान्न--सज्ञा पुं० [स०] १ पकाया हुअा अन्न । २. ( भोजन के कृतसंकल्प- वि० [सं० कृतसङ्कल्प] दे० 'कृतनिश्चय' (को०] । बाद ) पचयी हुमा अन्न ।। कृतसज्ञ - वि० [सं०] १ होश में लाया हुप्रा । चेतनाप्राप्त । ३ कृतापराध-वि० [सं०] दापी । अपराधी | मुजरिम [को॰] । उद्बोधित । जगाया हुआ । ३ पनी बुद्धिवाला । तीक्ष्ण कृताभिषेक-वि० [सं०] (राजा) जिसका अभिषेक हो चुका हो (को०)। बुद्धि [को॰] । कृतायास---वि० [सं० फूत+अयास ] १ परिश्रम करनेवाला । २. कृतसाप -सज्ञा स्त्री॰ [सं०] वह स्त्री जिसके पति ने उसके जीवन | कुष्ट उठानेवाला [को० । । काल में ही दूसरा विवाह कर लिया हो । | कृतारय-सुला पुं० [सं० कृतार्य] दे० 'कृतार्थ' । उ०—'क) माइ है। कृतस्त- वि० [मु.] १ किसी काम के करने में होशियार । चतुर । जनम कृतारय भेला --विद्यापति, पृ० १६२ । (ख) हृमहि कुशल । ३ बाण चलाने में निपुण । कृतरथ करन लगि फल तृन X कुर लेहुं ।—मानस, २५२४६ । कृताक'-वि० [सं० ताङ्क १ चिह्नित । दाग । ३ संख्याति । कृतार्ध-सा पुं० [सं०] गत अवसविली के १९ वे अर्हत का नाम । कृतक-संज्ञा पुं० पासे का वह भाग जिमपर चार विद् ह (को॰] । कृतार्थं- वि० [सं०] १ जिसका अभिप्राय पूरा हो चुका हो । जो कृतांजलि-वि० [सं० कृताञ्जलि] हाथ जोड़े ६ए । हाथ बांधे हुए। | अपने मन काम कर चुका हो । कृतकृत्य । सफर मनोरयं । कृतांजलि- सुब्बा स्त्री० लाजवती । लजाधुर। २ सतुष्ट । ३ कुल । निपुण । होशियार । ४. जो मुक्ति कृतात - वि० [सं० कृतान्त] १ समाप्त करनेवाला प्रत करनेवाला । प्राप्त कर चुका हो । कृतात-संज्ञा पुं० १ यम । धर्मराज । कृतालक-सज्ञा पुं॰ [सं०] शिव का एक अनुचर । यौ०--कृतातजनक = सुर्य । कृतातपुर= यमलोक । कृतातभ कतालय'-- वि० [सं०] जिसने केही घर बना लिया हो । घर गिनी= मुना । बना लेनेवाली (न्ये । ३ पूर्व जन्म में किए हुए शुभ मौ' अशुभ कर्मों का फन । ३ कृतालय---सी पुं० १ मेडक । मंडूक । ३ कुता [फो॰] । सिद्धात ! ४ मृत्यु ।५ पाप । ६ पानिवार । ७. देवतामात्र । कृतावधि-वि० [सं०] १ जिसकी समयसीमा निश्चित है। निश्चित ८ भरणी नदाय । ६ दो की संव्या । १० पानि ग्रहु (को॰] । समय का । २. सीमित (को०] । कृतीता--ससा सी० [सं० कृतान्ता रेणुका नाम का गंध द्रव्य । कृतास्त्र-वि० [सं०] १. स्त्रियाला। शाययुक्छ । २.मन्त्र के प्रयोग २-६३ मे कुशल ०] ।