पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५०८

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कुँला उ०—राम नाम ललित ललाम कियो लाखन को बडो र कुर्म-सज्ञा पुं० [सं०] १ कप । कछुग्रा। २. पृथिव । ३ प्रजापति कायर कपूत कोही अाप की ।—तुलसी (शब्द॰) । ५ जिसका का एक अवतार !४ एक ऋपि जिन्होने ऋग्वेद के कई सूत्रों किया कुछ न हो सके । अकर्मण्य। निकम्मा । उ०—मुमट का विकास किया था। ५,एक वायु जिसका निवास पाखों में शरीर वीर चारी मारी भारी तहाँ सूरन उछाह कूर कादर है और जिसके प्रभाव से पलकें खुलती और बंद होती हैं। यह सरत हैं ।—तुलसी (शब्द॰) । ६. नासमझ । अनजान । मुखं । उ० हँसिहहि कूर कुटिल कुविचारी। जे परदूपन भूपन दस प्राणों में से एक है । ६. नाभिचक्र के पास की एक नाडी । धारी ।—मानस, १३८ । कछुपा । पोतनहर 1 ७ विष्णु का दूसरा अवतार , ६, तत्रके कुर-सच्चा पुं० [हिं० कुरा = अश] लगाने की वह कमी जो उच्च अनुसार एक मुद्रा या शासन जिसका व्यवहार देवता के ध्यान जातियो को मुजरा दी जाती हैं, जिससे वे लोग हलवाहा के समय किया जाता है १ दे० 'कमसिन'। कूर्मक्षेत्र–सम्रा पुं० [सं०] हिदुओ का एक तीर्थ, जहाँ कूर्मावतार रख सकें । भगवान् के दर्शन होते हैं । कुर—सा पुं० [सं०] उवाली हूंपा चावल ! भात [को०] । कुर्मख-सद्भा पुं० [सं० कूर्म खण्ड] पुराण के अनुसार एक वर्ष या कूर+—सच्चा पुं० [हिं० पूर= भरना] गुझिया, समोसे अदि में भरने खई का नाम [को०] । का मसाला। कुर्मचक्र-सम्रा पुं० [सं०] एक प्रकार की चक, जो तात्रिक लोग बनाते कुरता-सया जी० [सं० करता वा हि० फूर+ता (प्रत्य॰)] १. निर्दयता! | हैं और जिससे शुभाशुभ का शकुन ग्रोर फन जाना जाता है। कठोरता । बेरहमी । २ जडता । मूर्खता । ३ अरसिकता ।। कमद्वादशा---सा स्त्री॰ [सं०] पोप शुक्ला द्वादशी । इसी तिथि को उ०—कृष्णचरित रस पूर, नमो सुर कलि सुर कवि । जासु भणित रमूर, होत दूरि सुनि कूरता रघुराज (शब्द॰) । कूमविवार का होना माना जाता है। ४. कायरता । डरपोकपन । कमपुराण--सज्ञा पुं॰ [सं०] अठारह मुखप पुराणो में से एक। कुरपन–सच्चा पुं० [हिं० कर+पन (प्रत्य॰)] ३० ‘कूरवा'। कूर्मपृष्ठ-सा पुं० [सं०] १.कछुए की पीठ । २. बहू स्थल जो कछए कुरम --सच्चा पुं० [सं० कर्म] ३० ‘कूर्म' । उ०—कुरम पै कोले की पीठ तरह ऊचा नीचा हो। ३. वायुपुष्प या अम्लान कोलहू १ सेप कु डली है, फु दली पं फदी फैल सुफन हजार नामक वृक्ष । ४ तरी या किसी वस्तु का ढक्कन (को०)। की ---पद्य कर इं०, पृ० २५३ । कुर्ममुद्रा-सच्चा सौ॰ [सं०] तात्रिको की उपासना में एक प्रकार की कुरा--सा पुं० [सं० फूट, प्रा. कूह = ढेर] [लौ० कूरी] १. ढेर। मुद्रा जिसमें एक हथेली दूसरी हथेली पर इस प्रकार रखते हैं। राशि । उ००० सीस वसे वरदा वरदानि चढयो वरदा घनिउ कि कछुए की आकृति बन जाती है। वरदा है। धाम घतृरो विभूति को कुरो निवास तद्द सब ले कर्मराज-सज्ञा पुं० [सं०] १.विष्णु की कूर्मावतार । २.बहुत व मरवा है ।—तुलसी (ब्द०)। २ भाग । अश। हिस्सा । | कछुवा किये । । करी-सच्चा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार ी घास जिसे चपरेला या कम सा बी० [सं०] एक प्रकार फी वीण। मोतिया भी कहते हैं। कमसिन- सच्चा पुं० [सं०] योग में एक आसन का नाम । इसमें दोनों कूरी-सा बी० [हिं० कुरा ] छोटा 3र । ढेरी। पैरों को तले ऊपर रखकर ऍडियों से गुदा को दवाकर घुटनों कार्य---सा पुं० [सं०] १ मुद्द्वी भर कुश । २ दोनो भौंहो के बीच फा के वल खड़ा होना पड़ता है । स्थान 1 ३ अँगूठे और तर्जनी के बीच का स्थान। ४ झ६ । कुमका, कूर्मी-सच्चा श्री० [पुं० शूमिका ] एक प्रकार का बहुत असत्य । ५ दंभ । ६. एक प्रकार का असन । ७ एक । प्राचीन बाजा, जिसमें बजाने के लिये तार लगे होते थे । वीजभत्र । ६.कू ची। 8.मस्तक सिर । १२ गोदाम ) झाडार । ११ पूला (को०)। १२. दाढी (को०) १३ मोर कूलकष-वि० [सं० फूल] तट को छुनेवाला (२] । कूल पख (को०) । कुलकष—सज्ञा पुं० १.नदी की धारा या प्रवाह । २ समुद्र । सागर कूर्चक–सा पुं० [सं०] १ कूची । २. दाँतो को स्वच्छ करने की [को॰] । | कुची । ३ एक माप या तोल (को०)। कूलंकषा-सच्चा स्त्री॰ [सं० फूलषा] सरिता । नदी [को०] । कुचका-सा सी० [सं०] १ कूची । २. कली। ३ कु जी । ४ कुलज-सद्धा पुं० [अ०] मौत का दर्द । अंतकियो की पीड़ा [को०] । सुई । ५ फटा हुआ दूघ । छेना । कुल- सबा पुं० [सं०] १.किनारा। वट । वीर। कुन-सच्चा पुं० [सं०] १.कूदने भी किया। उछलना कूदना (यो । यो०-फूलवती = नदी। कर्दनी सच्चा स्त्री० [सं०] चैत्र मास की पूणिमा । इस तिथि को २ सेना के पीछे का भाग । ३,समीप । पास । ४ बड़ा नाला । कामदेव का उत्सव होतीं था | नहर । ५ तलाब । ६ ठूहा टीला (को॰) । कुपैसा पुं० [सं०] भौहों के बीच का स्थान । त्रिकुटी किये । । कुलकसच्चा पु० [सं०] १ तट । किनारा । २ बल्मीक । । । कर्पर-स) पुं० [सं०] १ पैर के बीच का जोड । घुटना। २.हाथ । ३ यूह । टीला [यै] । " के बीच का जोड़। कुहनी (को०] । कुलचर-सज्ञा पुं० [सं०] अायुर्वेद के अनुसार नदी किनारे विचरनेवाले कुटमि--संज्ञा पुं० [सं०] कौटिल्य के अनुसार घडू की रक्षा के लिये हाय, भैस, हिरन, सु र मादि पशु । म हे झी जानियो का छोटा कवच । कुवा-सा पुं० [सं० कुल्या] [नी कुलिया] १.वह छोटा माना