पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५०५

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कूदना कुबर १० [सं०] १.३° 'कुवा कहीं बाहर न गया हो, या वाह्य जगत् की जिसको कुछ भी मग करके एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच जाना । जैसे, खवर व हो। तुम तो ममी चौया पन्ना पढ़ते थे, वीसवें पन्ने में कैसे कूद कूपयत्र--सज्ञा पुं० [सं० कृपयन्त्र] दे॰ 'कूपचक्र' (को॰] । पए ? ५ अत्यंत प्रसन्नहोना । खुशी से फूलना । उछलना । ६ व बढ़कर व तें करना । शेखी बघारना। यौ--कृपयंत्रघटिका, कृपयन्नघटी= कुएं से पानी खीचने के यंत्र मुहा०—किसी के बल पर कूदना= किसी का सहारा पाकर में लगी छोटी डोन । रहट में लगी हुई डोलची जिनसे पानी वहुवे व वकर वोलना । । क्रमश गिरती रहती है। कृपयत्रघटिका न्याय = सांसारिक कृदना-क्रि० स० किसी वस्तु की एक अोर से दूसरी ओर चला अस्तित्व की विभिन्न अवस्थाम्रो को व्यक्त करने का न्याय वानी । उसेवन कर जाना । लाँघ जाना । फुलगि जाना । जिसमें रहट की डोलों के क्रमश ऊचा नीचा, भुरा खाली, जैसे—जब महाबीर जी समुद्र कूद गए, तव सर्वको वे भरता हुआ खाली होता हुअा अादि के द्वारा सांसारिक स्थिति आश्चर्य हुअा ! व्यक्त की जाती है (मृच्छकटिक) । सुयो० क्रि०—बना ।—पड़ना । कूपार–सा पुं० [सं०] सागर । समुद्र [को०] । यो०- कूदाकूदी । कूवाँव । कृषी-सक्षा स्त्री० [सं०] १ छोटा कुष्ठ । १ कुप्पी ! वोतल । ३ कुंदर-सच्चा पु० [सं०] ऋतुमती ब्राह्मणी और ऋषि के संयोग से उत्पन्न सवान [को॰] । नाभि (को०] । कुदा-सा पुं० [हिं० कुदना] खेत अादि नापने का एक प्रकार का कृपुप सा पुं० [सं०] मूत्राशय । परिमाणि, जिसमें कुछ निश्चित कुदानें कूदनी पड़ती हैं। कूव संशा पुं० [सं०] दे॰'कवड़' । कूदी-सवा औ० [सं०] पैर वाँधने की शृखता या जजीर को॰] । कुवड-सज्ञा पुं० [सं० कूवर] १.पीठ का टेढ़ापन २ किसो वस्तु कुहाल-सा पुं० [सं०] पहाडी कचनार (को०] । का टेडरिन । कुन-सा पुं० [हिं०] १ दे० 'कडा । ३. दे० 'कु द' ।। क्रि० प्र०—उठना -निकजना । कुनी संज्ञा स्त्री० [हिं० केडी] कोल्हू का वह गड्ढी जिसमे कख के कवर'-.-सुश पुं०:[पुं०] १ कुबड़ा व्यक्ति । २.गाड़ी या रये की वह टुकड़े डालकर पेरते हैं । कही। इल्ली जिससे जुआ वाँधा जाता है [को०] । कूप-सा पुं० [सं०] १.कुञ्ज । इनारा। २.छिद्र । छेद । सूराखे । कुबर-वि० १. सदर । रुचिकर प्तिय २ कूबड़वाला (को०]। जैसे-रोमकूप । ३. गहरा गड्ढा ! कुडे । केवरी-सझा ० [सं०] १.३० 'कुवरी' । २. पर्दै अदि से ढंकी गाडी (को०)। ३ रथ या गाड़ी की वल्ली जिससे जुअा वांधा जाता ४चम का कुप्पा (को०)। ५ नदी के बीच की चट्टान है (को॰) । या वृक्ष (को०)। ६.नाव अादि वाँधने का खुटा (को०) । लकड़ी कवा-सा पुं० [हिं० कूबड] १ कूबड। २. वह धनुषाका मस्तूल (को॰) । जिसपर बँडेरा रखा जाता है। इसके दोनो सिरे दीवार पर कृपर्क-सवा पुं० [सं०] १ छोटा कुआ। २.चुमड़े का बना हुआ तेल । रहते हैं, और इसके वीच के टेढे उभडे हुए भाग पर बँडेरा या घी रखने का पात्र 1 कुप्पा । ३ नवि वधिने का खूटा । रखा जाता है। .नाव या जहाज का मस्तूल । ५ चिता । ६. कूल्हे के नचि का गड्ढा (को०) । ७. नौका। नाव 1 किश्ती (को०)! ८.छिद्र कवा-सुझा पुं० [देश॰] विटाई करने वालो का सीसे का एक गोलाकार औजार जिसे टेकुरी को मारी करने के लिये उसके छेद । नीचे चिपका देते हैं । यह दुअनी या एन्नी के बराबर गोल कूपकच्छपसा पुं० [सं०] १. कुएँ में रहनेवाला कछुम । २. | सुमित जानकारी रखनेवाला मनुष्य । कृपमचूक । अनुभवनि गोल होता है। व्यक्ति [को०] । कम--सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] तालावे । जलाशय [को०] । खोदनेवाला मादमी कार-पवा पुं० [सं०] कुत्रां यनाने या कु कम-सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक पेड़ जिसकी लकड़ी बहुत मजबूत [यै]। कृपलानक–सम पुं० [सं०] दे० 'कूपकार' को॰] । विशेष-गढवाल और चटगाँव में यह पेड़ बहुत होता है । इपको च*-सु पु० [सं०] कुएं से पानी खीचने की चरखी । रही। लकड़ी इमारत के काम में आती है और कहीं कही, जही यह कृपयत्र (को०] । अधिक होता है, जलाई भी जाती है। सेवा पुं० [सं० कूपदण्ड] जहाज या नाव का मस्तूल [को॰] । कमटा-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का पेड़ जो राजपूताने मोर मढ़ नस पु० [अं०] १.मनीअाईर फार्म का वह भाग जिसपर सिंध देश में होता है। । जनवाला कुछ समाचार अादि लिख सकता है और कूमटा-सा " [६] धावार प्रांत में पैदा होनेवाली एक्छ पेयी पानेवाले के पास रत्न जरता है। २. नियत्रित या । प्रकार की कृपास । मत पस भी वस्तु को प्राप्त करने की चिठ या पुरजा । निर्वय । ३ , का मेढक । कुएं में कूर'--वि० [सं० कुर] १,दयारहित । *"*"धा पुं० [सं० कपमण्डक] १.कएँ भावना ३ ,मन हुस । असंगनियो । दुष्ट | बुरा। कुमार्गी । नदीला मेव । २ व भनुष्य जो अपमा स्यान छोड़कर यौ॰—कूपमंस ।। जिससे जुअा वाँधा जाता