पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५०४

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ककरनिदिया १०२० कूटकम् का नाम, जिसकी पत्तियों को पीसकर कुत्ते के काटे हुए स्थान के जन-सा औ० [सं०] [वि० कूजित] दे० 'कुज़' । पर रखते हैं। कूजना-कि० अ० [सं० कूजन] १ कोमल और मधुर शब्द करना । कुकरनिदिया---सज्ञा स्त्री० [हिं० । फर+नीद +इया( प्रत्य॰)] वह उ०—(क) विमल मलिन सरमिज वरगा। जन तुग कुजत इलकी नीद जो थोड़े ही खटके से टूट जाये । गुजठ मृगा ।—तुलसी (शब्द॰) । (7) फनक किंकणी नूपुर कूकरवसे रा- सच्चा पु० [हिं० कूफर + वसेरा] थोडा विश्राम । कलरव, कुजत वाल मल ----सूर (शब्द०)। क्रि० प्र०—करना ।—लेना ।। कूजा-सा पुं० [फा० कन्ह, } १ प्याने या पुग्वे के आकार का कुकर भेंगरा–सझा पु० [हिं० कुकुर+हिं० भेंगराः] १ काला 'मॅगरा। । मिट्टी का बरे तन । कुल्हड़ । २. मिटटी के पुरवे में जमाई हुई २ कुकरौघा । अद्धं गोलाकार मिसरी । ३ कुन्ज । कुबड [को०] । कुकरमुत्ता-सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'कुकुरमुत्ता'। कूजा-सा पुं० [सं० फुजक ] मोतिया या वेले का फूल । उ०— कूकरलेंड-सुज्ञा पुं० [हिं० क् फुर+लेंड] कुत्तो का मैथुन । कोइ क र सतर्ग चमेती । कोई कदम मुरम रस बेली --- कूका-सच्चा पुं० [हिं० कूकना = चिल्लाना] + १ चिल्लाहट भरी लवी जायसी (शब्द०)। पुकार । २ सिवखो का एक प्रय। । कूजित-वि० [सं०] १ जो वोला या फेहा गया हो। ध्वनि । २. विशेष - सन् १८६७ में रामसिंह नामक एक वेतृई ने यह पथ गूजा हुआ या ध्वनिपूर्ण । ( स्थान अादि ) उ०—कोकिन चलाया था । वह अपना उपदेश बहुत विना चिलाकर कूजित कुज कुटीर ।-हरिश्चंद्र ( शब्द०)। देता था और श्रोता लोग भी खूब भक्ति में लीन होकर चिल्ला कूट-सा पुं० [सं०] १, पाड़े की ऊँची चोटी । जैसे-हे भकट, चिल्लाकर ग्रंथ साङ्घ के पद गाते थे, इसी में इस पथ का चित्रकूट। २ सीन । ३. (अनाज ग्रादि की) ची और बड़ी राशि या ढेरी । --कोस भरे ला हेम मणि अन्नने नाम ही कूका' पड़ गया। कुकी- चा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का कीड़ा, जो जाड़े की फसलो के करि कट । विप्रन दोन्ही नद नूप नई अलौकिक सूट - | को हानि पहुंचाता है। गोपाल (शब्द॰) । यौ--प्रश्नकूट ।। कूकुद-सद्मा पुं० [सं०] दे॰ 'कुकुद' । ४, हल की वह लसडी जिसमें फल लग रहा है । खों। कुख!- सच्चा लो० [स० कुक्षि] दे० 'कोख' । परिहारी । ५ लोहे का मोगरा । यौड़ा । ६ हरिनों से कूच'- संज्ञा पुं० [तु०] १. प्रस्थान । रवानगी । २ मृत्यु । मौत । फैमाने का फदा या जाल । ७ लकड़ी के पनि में छिपा | पर लोकयात्रा (को०] । हमा हथियार ! जैसे- तलवार, गृप्ती अादि । ८ छल । मुहा०-कब कर जाना = मर जाना । ( किसी के ) देवता कूच धोखा। फरेन । जैसे—कुटनीति । ६ मिथ्या ! असर । झूठ। कर जान = होया हुवाश जाता रहना । 'भय या किसी और १०. अगस्त्य मुनि का एक नाम । ११. घडा । १२ गुप्न वैर। कारण से विवेक नष्ट हो जाना। कुच का बका यी नेकफारा कीन।। १३ नगर का द्वार । १४ गूढ भेद। गुप्त रहस्य । बाजाना=( १ ) फौज या समूह का रवाना होनः ।(२) १५, जिसके अर्थ में हेर फेर हो । जिसका समझना कठिन हो । मर जाना । कूच बोलना= प्रस्थान करना । जैसे, सूर का फूट । १६ वह हास्य या व्यंग्य जिसका अर्थ कूच–सा पुं० [सं०] ३० 'कुच' [को॰] । गूढ हो । उ०—करहि कट नारदहिं सुनाई । नीक दीन्ह हरि कच-- सच्चा पुं० [देश॰] महुए के पेड़ में पतझड़ के बाद टहनियो मे सुदरताई।—तुलसी (शब्द॰) । १७ निहाई । १८ वह वैले लगने वाला वह गुच्छा, जिसमें फूल निकलते हैं । जिसके सींग टूटे हो । १९ घर । अावास (को०)। २० घट । कच-सच्चा पुं० [सं० के चिका, हि० च] पैर केनचले भाग की घडा (को०)। २१ उमार सहित माथे की हड्डी (को०] । २२ एक न स । घोड़ा नस । । सिर । छोर । किनारा [को०)। कूचा--सज्ञा पुं० [फा० कूचह] १ छोटा रास्ता । गली । कूट-वि० [सं०] १ झूठ। मिथ्यावादी । २ धोखा देनेवाला । यौ०-कूचागर्दी == इधर उधर फिरना। व्यर्थ घूमना । छलिया 1 ३ कृत्रिम् । बनावटी । नकली । ४ प्रधान। मुहा०—कूचा झकना = इधर उधर ठोकर खाना । गली गली श्रेष्ठ ५ निश्चल । ६ धर्म भ्र। मारा फिरन।। कट–सच्चा स्त्री॰ [हिं० कूट] कुट नाम की ओषधि ।। २ रेशेदार लकड़ी या मूज को कूट कर बनाया हुआ। झाडन । ३. कुट-सवा बी० [हिं० कोटat या कूटन। 1 कटने, कूटने या पीटने | झाटू । वोहारी।। अादि की क्रिया । जैसे—मारकूट, का फूट । कुचिका-सा स्त्री॰ [ स० ] १ के ची। फूचिका । २ फुजी। कट–संज्ञा स्त्री॰ [हिं० कुटी] झोपड़ी। ताली को०] । कटके--सज्ञा पुं॰ [सं०] १ छल । कपट । धोख । धूर्तता । २ कूची-सझा जी० [सं०] १ ३० 'कू'ची' । २ ३० कुचिका' (को॰) । | उठान । मुख्पता। ३ हल का फाल । ४ वेणी । केवरी । कूज-सद्या स्त्री० [हिं० जना 1 १ ध्वनि । शब्द। पावाज । २ ५ एक सुगधद्रव्य [को०] । । शब्द करने की क्रिया । ३ पहियों की घरघराहट (को॰) । यौ०-कूटकाख्यान= दे॰ कूटापान' । ४, कुजने की क्रिया । के कु की वनि (को॰) । कूटकर्म-संज्ञा ५० [सं०] १, छल । कपट | धोखा। २. कौटिल्य के