पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५०३

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१०२१ फूटय' कूटमान--सूझा पुं० [सं०] १ वह पैमान। जो ठीक नाप से बड़ा मा अनुवार उ वेलवे सृमय देईमानी करना या हाथ की चतुराई हो । छोटा हो। २ वह बाट जो ठीका तौल ३ हुन या ना चा सफाई से पसे उलटना । कटमुद्र--सूज्ञा पुं॰ [सु० ]कौटिल्य के अनुसार जाली मुहर या frt कम-वि० [१० फूटकर्मन] छली । कपट । धोखेबाज । | वनानेवा। कुटकारसा पुं० [३०] १. दुष्ट या धोखा देनेवाला व्यक्ति । २. कूटमुद्रा--सज्ञा स्त्री० [सं०] कौटिल्य के मत में जाली मुद्र य? झूठ गवाह । । । परवाना। कृत्-वि० [सं० ]१ घोवे बाज । ठगने वाला । २ जाली दस्तावेज कूटमोहन-सा पुं० [सं० ]कद । कुमार कातिय [यै] । | वनानेवाला । ३ उत्कच या घूस देनेवाला [को०] । कूटयत्र-सच्चा पुं० [सं० कूश्यन्त्र] पशु योर पक्षियों को फैशाने कुकृत्-सा पु० १ छ।यस्य । २ शिव (को०] । का जाल । कोष्ठ-सबा पुं० [*] १.मकान का सबसे ऊपर का माम् । २. | कुश्शार चे०] ।। कूटयुद्ध--संज्ञा पुं॰ [सं०] वह नडाई जिसमें शय को धोवा दिया जाय । धोखे की लड़ाई । कुटखेड्ग सा पुं० [१०] वह तलवार जो किसी छड़ी में छिपी हो ]ि । मुन्नी ।। | कूटरचना-समा स्त्री॰ [सं०] १ जाल । फेद। २, कुटवियों को। मायाजाल (क]। कुच्छमा-सा पुं० [सकूदच्छद्मन् ] ठग । धुतं । धोखेबाज [को०] 1 सूटना--सधा पी० [सं०] १ कठिनाई। २. झूठाई। ३. छल । कुटरूप-सा पुं० [अ०] कौटिल्य के अनुसार जाली दया या मिकका। कैपट। हो या जिसकी कटरूप¥रिक-सधा पुं० [मुं०] जाली सिवका वार करनेवाला । नुत्री - सच्चा स्त्री० [सं०] वह तराज जिसमें पुना दिशेप-कौटिल्य अर्थशास्त्र में चाणक्य ने दिखा है fऊ के लोग | डडो में कुछ हेर फेर हो । डाँ ड्रीचोर तराजू। भिन्न भिन्न प्रकार के लोहे के औजार बीवन हो त जिनके कूटरव-संश्च पुं० [सं०] दे० 'कूटता' ।। पास से दो प्रकार के रासायनिक द्रव्य है। पर जो उएँ मैं कूटन–वा स्त्री० [हिं० कूटना ]१. कूटने की क्रिया या भाव । २. सने हों, उनको जाली सिक्का तैयार करनेवाला समझन। मारना। पीटना । कुटाई । उ०-फेरत नैन चेरि सो छूटी। चाहिए। इनको गुप्त दूत लगाकर पकड़ना और देश से निकाले भइ झूटन कुटनी तृच कूट 1-जायसी (शब्द॰) । देना चाहिए । कुटना-क्रि० स० [सं० कुट्टन] १ किसी चीज को नीचे रखकर) कटहनियदिए-मा पुं० [सं०] फोटिल्य के अनुसार जाल निका ऊपर से लगातार बलपूर्वक ग्राघात पहुचाना। जैसे---धान कुटरूपानयादण-- पु° ९० निकालना या चनीनः ।। कूटना, सड़क कूटना, छाती कूटनी।। में कर कूटपत्रातहणसं कटरूपप्रतिग्रहण-सय पुं० [सं० [ काटिल्य के अनुसार जात्र) सिफा ३९१-८ फूट कर भरना-ठूस इ स कर भरना । कस कस कर | ग्रहण करना । भरना । ठसाठस भरना । जैसे,—उसमें कूट कूटकर चालाको कूटलिपि-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] झू या जानी दस्तावेज । फर। भरी है। | कागज पत्र [क्वे०] । २. मरिन । पटना । ठोकना ३, मिल, चक्की आदि में टों की से छोटे छोटे गड्ढे करना या दाँत निकालना ।४ वैल या कुटलेख-या पुं० [सं०] ऋ51 या जानो दस्त वेज । कटलेखक-सी पुं० [सं०] जाली दस्तावेज निउनेवाला। जा ताज । सं का अटकोप कटकर उसे बधिया करना । कटलेल्प-सी पुं० [सं०] ३० 'कूटलेख (०) । धमा °ि [सं०] ददि पेच की नीचि या चाल । वह चाल कशाल्मलि-सा पु० [मु.] १ एक प्रकार का तात्नति जो अग : | या नीति जिस का रहस्य कठिनता से खुले । | में होता है। भूटपणकारक- सद्बा पुं० [सं०] १ जाली सिक्! या माले तयार विठोप-इसके प जिगनी के से माने प्रोर हुने गरे नाग करनेवाला । २ जाली दस्तावेज बनानेवाला। बाल के होते हैं। इसकी ज! मपघ के काम में माना है। वंश वाज -(को॰) । में इसे कमा, चरपर, गरम मोर कफ, दी!, उदरनि टपर्व, कूटपा कल-सच्चा पु० [स०] पितज्वर। ३० 'कटपूर्व' । मौर ६धिर विकार को दूर करनेवाचा माना है। के झटपाठ-सा पुं० [सं०] (गीत में) मृदग के चार वर्षों में २ यमराज की गदा । ३ पुराणानुसार नरक में शान्ति एक वर्ण । प्रकार की लोहे का एक फल। वृक्ष। १५ल-सा पु० [सं०] १.कुम्हार । कृभकार । २ कुम्हार का कुटशासन-संग पुं० [सं०] अली या इरजी पात,१५ [३०। व । ३,दे० 'कटपूर्व' (३०] । । गवाह । कटाक्षी'-सया पु० ४० फूटबाधिन् *६१ -सा पुं० सै०। पक्षियों को पाने का जाल । फुदो । कटसाक्षा-सा ६० [सं०] 5 गवाही । । महा।। *ट पर्व-सा पुं० [१०] इवियों का त्रिपज ज्वर। - [३०] । कृट साइ9-सा पुं० [सं०] फर' गाही । वनापटी ३१ । पुं० [सं०] पहेली। बुभवले । प्रहेलिका [a] । कदस्य'-वि० [सं०]१. सुपर किं । प्रा । ॐ ॥ ३ ३ ३३२ इध- ६० [सं० कटवाघ ८० कूटपाव' [२] ।