पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५०२

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कुहुकबान १०१३ कुहुकबान-सज्ञा पुं० [हिं० कुहुकना + वान] एक प्रकार का दाण, कुहीकुही-सच्चा स्त्री० [हिं० कुहू कुहू वा अनु०] कोकिल की बोली। जो वाँस की कई पट्टियो की जोडकर बनाया जाता है और कोयल की कक। जिसे चलाते समय कुछ शब्द निकलता है। के प्रा—सज्ञा पुं० [H० फूप दे॰] 'कु' 1 कुहुकाना -क्रि० अ० [हिं० कुहुक दे० 'कुहुकना' ।उ०—केइ ई ----सुज्ञा स्त्री० [हिं० कई ] ६० कई '। मधुमत्त मधुप सँग गावत । केइ मिलि कल कोकिल कुहुका के ख-सुज्ञा स्त्री॰ [म० कुक्षि ] कोख ! पेट । गर्ने । वत ।-नद० अ०, पृ० २६० । के खना--क्रि० अ० [सं० कुन्थ२= कलेश] दु ख मा पीड़ा से वह कुहू पु--सच्चा झी० [सं० कुहू] दे॰ 'कुहू' । उ०—तिन हेरे अँधेरेई | हूँ शब्द फरना । काँखना । दसै सवे, विन सुझ तें पून्यो अबूझ कुह !-घनानंद, पृ० ७४ । गसुज्ञा पुं० [हिं० कुनना] एक यंत्र जिसपर कसेरे पीतल, तवे कूह–सच्चा ली० [सं०] १ वह अमावस्या जिममें चंद्रमा विलकुल के बरतन बादते और जिला करते हैं । खराद । चरख। दिसलाई न दे । २ अमावस्या की अधिष्ठात्री देवी और कंगा-संज्ञा पुं॰ [देश०] बबूल की छाल का फाढा जिससे डुबोकर अगिरा ऋषि की कन्या, जो उनकी श्रद्धा नाम की स्त्री के चमड़ा मिझाया जाता है । गर्भ से उत्पन्न हुई थी। प्लक्ष द्वीप की एक नदी । ४ मोर कूच'- सज्ञा स्त्री॰ [हिं० कूचा] १ खस या नारियल के रेशे का या कोयल की कक । मोर या कोयन की उनी । वना ह य डेढ़ हाथ लंवा एक वडा द्रुश जिससे जोलाहे ताने विशेष—इस अर्थ में 'कुहू' के साथ कठ, मुख, रव आदि शब्द का सूत साफ करते हैं। २ लोहारो की बडी सेड सी । लगाने से कोकिलाची शब्द बनते हैं। जैसे-हकठ' कुष्टमुम्बु, कच-सज्ञा ची० [स० कुचिका = नली] मोटी नस जो मनुष्यो की कुहूर्व, कुशब्द 'दि । ऍडी के ऊपर और पशुप्रो के टखने के नीचे होती हैं । १ । यौ०-कुहू कुहू = मयूर या कोयल की वो ली। उ०•--(क) घोड़ा नस ।। डहुडहे भए द्रुम रचक हवा के गुन कुहू कुहू मौरव पुकारि मोद महा०—कचे काटना:= घोड़े की नस काटकर उसे वेकाम भरिगे ।-- रस कुममा कर (शब्द॰) । (ख) का कुरूप फसाइने कर देना ।। ये सु कुहू कुहू क्वेनिया ककन लागी । पद्याकर (शब्द०)। केचना—क्रि० स० [हिं० फूटना या अनु० 'कुच कुच'] कटना । कुहूकबान- सच्चा पुं० [हिं०] ६० कुहू वान' । उ०—चले चंदवान । कुचलना । उ०—कह सग अहैं हम पाय र सच वात वरन । घनदान ध्रौ कुहूकवान चत कमान घूम असिवान छुवै रहो - समर यात्रु मुख कृचत छन मे कटिन फरे करनी ।—गोपाल भूषण { शब्द॰) । (शब्द०)। कुहुकाल- सज्ञा पुं० [सं०] अमावस्या का दिन [को०] । म हा०—-मुह कूचना= (ल) मारना पीटना (२) मान ध्वस कुहूमुख-सी पुं० [सं०] १ कोयल २. विपलि 1 ३ दूज का चाँद करना । ध्वस्त करना । [को०] । कुचा–संज्ञा पुं॰ [स०कुर्च या हू] [स्त्री॰ कुची] १. म्ति सी रेशेदार लकड़ी या मज आदि का कूटकर बनाया हुआ झाई, जिसमे कुहेडिका - सज्ञा चौ॰ [सं०] अह ! कुहेलिक। चीजो को झाडते या साफ करते हैं। २. दोहोरी ।। कुहेडो-सा मी० [सं०] ३० । 'कुहेदिका' को । ३ टूटे हुए जहाज के टुकड़े । कहेरा -सज्ञा पुं० [सं० कुहेलिफा] दे०' कुहरा' । उ० –म विनों के चारसा पु० [हिं० कर] भड़भूजे का वड़ा कर छा। ससार धो कुहेरी सिरि प्रगट्या जुम का पेरा ।-कचौर ग्र’०, कूची–सङ्गा जी० [हिं० के चा] १ छोटा कुचा । छोटी झाङ,। | पृ० १६५।। कुहेला--सज्ञा पुं० [सं० कुवि ] एक प्रकार का शिकारी पक्षो । एक २ कूटी हुई मूज या वालों का गुच्छा, जिससे चीजो की मैल साफ करते या उनपर ए फेरते हैं । जैसे---सफेदी करने की प्रकार का छोटा दाज उ०—कुही कुहेला बाज दिय नृप कुची, सोनार की कूची, तस्वीर मने की कूची । जुलेहन । हुथ्य --प० रासो पृ० १०० ! कुहेलिका–सुज्ञ भी० [सं०] १ फुहरा । २.कुइरे के कारण फैला । मुहा० --कूच देना = (१) केची से रंग चढ़ाना । (२) कूची । से साफ करना । निखारना । (३) वेन की एक कोने से । अंधकार । उ०-भाषा में विपय में आज हम अनिश्चितता की दूसरे कोने तक जोतना ।। कुलिका मे नही हैं ।-- पोद्दार अम० र २, पृ० ७५ } । ३ चित्रकार की रग भरने की कूची । तुलिका ।। कुहेलो-सज्ञा [सं०] दे० 'कुलि का' नै । कूचीसा औ० [फा० जह] १ कुल्हिया जिसमे मित्रो जमाई कुहेसा--संज्ञा पुं० [हिं० कुहासा] ६० कुहामा' । उ०--जनो के । जाती है । जैसे-कूची की चीनी । ३ मिट्टी का वह वरतन को नास करके भक्तमाल (श्री), जिसमें कोल्हू से निकलकर रस इकट्ठा होता है । १० ३७७ । कूची --सच्चा स्त्री० [हिं० कुची] ताली । कु जी । कुहौ -सज्ञा स्त्री० [सं० कुहू या अनुर०] १ मीर या कोकिल की के ज-सच्चा पुं० [सं० क्रौञ्च प० कौंच] क्रौंच पक्षी । कर कुल । । कूल ! ३०--वन वाल्नु पिक वटपरा लछि विरहिन | के जुड़ा—संज्ञा पुं० [हिं० कु जहा! दे० 'फु जडा' । मत में न । कुरो कुह कहि कहि उठे करि करि ते नैन !- के जडो-- सच्चा स्त्री० [हिं० कु जहा] १. कु जड़े ही स्त्री । ३ वह स्त्री । विहारो र०, दो० ४७५ । जो शाक तरकारी इत्यादि वेचती हो। फबाडिन् ।