पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५०१

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१०११ कूकरचदी विते हैं और चाँदनी रात में बढ़ते मनोहर नगते हैं। इसी अना -क्रि० प्र० [हिं० कूजना] दे० 'क्रूजन'। से छवियों ने चंद्रमा का नाम 'कुमुदवधिद' आदि रज़ा है। जरा-स्वा पुं० [हिं॰] दे॰ 'कु जडा' । सफेद फूत्र ही की कई अधिक देखने में आता है, पर कहीं कहीं रो-अ ० [हिं०] दे॰ 'कू'जी'। लाल यौर पीने फुन की कूई भी होती है। कमल के फूल की *-चक्र पुं० [सं० क्रौञ्च] दे० 'कू' । तरह इस फूल के अंदर छत्ता नहीं होता, बल्कि एE कूट- सा पुं० [हिं० सै० कूट] पैर का वधन ! शृखला । कणिका मञ्च होता है, जिसके नीचे नाले की पुडी होनी है। इस मौ० [सं० कुण] १. सिर को बचाने के लिये लोहे की यह घुडी बढकर लड्डू की तरह हो जाती है और बीज से एक ची टोपी, जिसे लड़ाई के समय पहनते थे । खोद । मर जाती है। ये वोज़ झाली सरसों की तरह चे होते हैं पीर उ०—-अॅगरी पहिरि के सिर घरही । फरसा बस खेल 'बैररा' कहलाते हैं। भूनने पर इनके नफेद ना या वीरें है। सम करही।--तुलसी (शब्द०) ! २ चौगोशिया टोपी के जाती हैं । व्रत के दिन इन बीजों के लावे पाए जाते हैं । प्रकार का मिट्टी या लोहे का गहरा बरतन, जिसे वे कुन में लगाकर निचाई के लिये कुए” से पानी निकालते हैं। ३ वह पटने में बेरे के लड्डू अच्छे बनते हैं। कई की जड़ गई गहरी लकर जो खेत में हुई जीतने से वने जाती हैं। कु ड । जाती है और दवा के काम में भी प्राती है। वैद्य में हुई। ४ मिटटी, ताँवै या पीतन आदि का बना हुआ वह गहरा का फूल शीतल, कफ और पित्तनाशक तथा दाई र श्रम को पात्र जिसके ऊपर चमड़ा मकर वायाँ' या ठेका धजाते हैं। दूर करनेवाला माना जाता है। । फछ । -- पुं० [सं० कुण्ठ] [ी० कूडी] १. पानी रखने का मिट्टी पर्या-कैरव । कुमुदिनी । कुमुई। गदंभ । सौगफि को गहरा वरतन । २ छोटे पौधे लगाने का घार । गमला। कुवे । सितोपल । कुवले । हुल्लक ( लाल फुई )। 'फोका । ३. रोशनी करने की एक प्रकार की वही हूही, जिसे कान उत्पख ( सफेद फूई ) रात्रिपुष्प । हिमाज । शीत जलज। भी कहते हैं !४, मिट्टी या काढ़ का वडा वरतन जिसमें निशाफुल्ल । कुवत । कुवेतय । कुवेत ।। प्राट नूयते हैं। कठौता । मौत। डो'–सच्चा बी० [हिं० कड। १ पत्थर का बना हुआ कटोरे के फूक'--सच्चा खौ० [सं० फुज ] १ ली सुरीली ध्वनि । ३ मोरया कोयल की बोली। उ०—(क) वोरन मन इंद्रधनु मोह भोर । पथरी । २ छोटी मिर का वरतत । पत्थर की प्ली कक सहनाई । बरसत अानंद प्रसु में बु सोइ अवध प्रजा नदि। ३ कोल्हू के बीच का वह 'इडा जिसमें जाठ रहता है। समुदाई --रघुराज (शब्द॰) । (ख) कोकिन कुछ कपोतून के सिवा दी० [सं० कुण्डली] एडुरी जिने सिर पर रखकर के कुन केलि करें अति प्रानैद वारी -मतिराम (शब्द॰) । | स्त्रियों घड़ा उठाती हैं । १. दु व से क्रि० प्र०-मारना ।। पना '- क्रि० अ० [ न० कून्यन = ६ से उठाना ३. महीन और सुरीले स्वर से रोने त शब्द (जैसे स्त्रिया )। स्पष्ट शब्द मुंह से निकालना । कहिनी । २ वूवरों का कूकर-सधा धी० [हिं० कु जी] घडी पा वाजे अादि में कु जी देने गुटरगू करना । उ०-गूढ गुइच। निरी चुरी चहचर करे की क्रिया, जिससे गति उत्पन्न हो । जैसे,—-यह प्राठे दिनों के बढ़ कपोत भई काम के कृटक के --देव (शब्द॰) । फी कूक ही घड़ी है। के वनr७ –सच्चा पुं० १ कराह । दु छ या कष्ट में । कुरुना'-झि ० अ० [सं० कूजन या अनु०] १ लची सुरी ध्वनि अस्पष्ट उब्द । २ फवृत ही गुटरग की ६वनि । निकालना। २. कोयल या मोर का पोनना। ३०--(%) *दना--क्रि० स० [हिं०] दे॰ 'कुनना' ।। कौंधत वामिनी कुकत नोर रटै मिलि ने की भयानक ठो? ।*HEI दी० [सं०] १. पिणाची । डाइन ।२ पृटी । घरत (को०] । रघुनाथ (शब्द०) । (च) फारौ फुरूप दिने पे सु । दुई व पु° ६० शूर, प्रा० कुवे, हि० कुत्री, कुव] दे॰ 'कु' । क्वेतिया कुइन लागी - पपाकर ( शब्द०)। ३-सा झी० [सं० कुमुदिनी] ज3 मे होनेवाला कमल की रहे की एक पौधा, जिसके पत्त कमुल ही के पत्तो के समान, पर कूकनारे-क्रि० स० [हिं० फु जी ! कमानी सने के लिये पड़ी ग वाने कैच को घुमाना । घडी चुत्राने या दा धजाने से कुछ नये और कटावदार होते हैं। मृर में ऐसे ताना,पोजरो वा । लिये कुनी घुमाना। यु । भरना। वाप-यह धिा भारत

  • ] उता। धान। में होता है, जिनमें बरसात के पानी इकटठा होता हैं। यई कर-सा पुं० [ १० कुर][६०

से निकलता है। वर सरन के पार भ भ वीज व पूराती जु । यौ॰—कुकरकोर) फूझरचदो । सुरनिदिया। | कुकरकौर--सया पुं० [हिं० फुकर + फौर] १ वह बचा चुरा जुटा इम है । पानी के ऊपर रहते हैं अौर इन अ दर । गैरद् ३ ६२ नो नो कुरो के प्राने दाना जाता है। टुटा । २. तुच्छ ऋतु यदि पवार हैनिक में, इचमे में दर सु दर वेपते हैं, जो बनी नंदी नाव म डंठलों में लगे रहते हैं। वस्तु । ३०-नाको ३चे का? तुनो । सः न मग ३ ३) जी ३को नव और कुमत की नाल में इतना भेदता है कि कूर5ौर। उनकीजीवन को इन द बरि मन छ नत * *पर इन रोई होती है, पर इसे ॥ ३२ रहि ।-तुनी (1)! । चिकनी हुती है । दुई या मुदनी के फूर रात को -1 • [ 7 कुकरची ० *र+मे } र जंग १ ।।