पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/५००

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कुसुमितलत।वेल्लिता कुहनिको वि। कुसुमितलतावेलिनता--सद्या स्त्री० [सं०] अठारह प्रक्षरो का एक वृत्त मक्कार । वचक । ३ मेढक । ३ मुर्म को कूक । ५ नाग जिसके प्रत्येक चरण में मगण, वगण, नगण, यगण, यगण का विशेप । ६ इंद्रजाल जाननेवाला । । क्रम रहता है । जैसे---माता नायो काल इन बरजोरी दही यौ०- कुहकफार = कपटी । छली । कुहफचर्शित = दाँव पेंच से में हमारे । झूठे लाई तो यह उलहनो अाज होत सफारे। डर। हुग्रा । सदेह करनेवाला । स ज । कुहनी= इद्रजा । में ना जाऊँ त कतहु लखौ नित्य 'मान् सुता की । शो मा वारी मायावी । वं चक । कुहकस्बन, कुहुकस्वर= मुगई कुहुकवृत्ति= है कुसुमितलतावेल्लिा वीचि जाकी ।—(शब्द॰) । दे० कुहकजीवी' ।। कुसुमेष-सम्रा पुं० [सं०] १, कामदेव । २ पुष्पमय वाण । फूल फा। कुहक -वि० [सं० फुह + फ] अाश्चर्यजनक । उ०—कालि कलह अलि |बाण [को०] । करहु कुहुक विक्रम सुर्ण जिम ।–१० रासो०, पृ० १७४ । कुसुमोदर-सज्ञा पुं० [सं०] प्रोट का पेड (को०]। कुहकना-क्रि० अ० [स० कुहुक यो कुहू या अनुर०] पक्षी का ननु कुसुली-सच्चा स्त्री॰ [हिं॰] दे॰ 'कुसली'। स्वर में बोलना । पीकना । उ॰—कुहकहि मोर सुहावन कुसूते---सञ्ज्ञा पुं० [सं० फु+सुत्र, प्रा० सुत्त, हिं० सूत] १ बुरा सुत । ला। होय कुराहर वोल हि काका (--जायसी (शब्द॰) । उ०--कहति कवीर फरम सो जोरी । सुत कुपूत बिनै भल विशेष---प्रय मोर और कोयल के हो बोलने को कुहकना कोरी -कवीर (शब्द०)। २. कुप्रबंध । कुब्योत ।उ० कहते हैं। रोग भयो भूत सो, कुसुत भयो तुलसी को भूतनाथे पाहि पद कुहकनी-सा श्री० [हिं० हफना] कुहकनेवानी । कोकिल । पकज गहतु हौ ।--तुलसी प्र ०, पृ० २४० } कोयले ।। कुसु-सा पुं० [अ० कुसर] दे० 'कसूर' ।। कुहकाना)---क्रि० स० [हिं० कुह ना] कूकने या फुनने के लिये यौo-कुसुरमद । कुसूरवार । अपराधी । दोषी। प्रेरित करना । उ०—-पिक गवाय केही कुहाई --नंद कुसूल- सच्चा पुं० [सं०] १ एक देवयोनि । २ ३• 'कुशल' । ग्र ०, पृ० १४१ ।। कुसूति- सझा पुं० [सं०] १ इंद्रजाल । हथकडा । २. दुराचार । ३ कुकुह -सद्या पुं० [सं० कुम] केसर। कुमकुम । जाफरान । शठता । दुष्टता । उ०—कनका डि सव कुहकुई ली । वैठि महाजन सिंहलदीपी। कुसेसय—संज्ञा पु० [सं० कुशवाय] कमल । पम । उ०—-राजिवदल —जायसी (शब्द॰) । इदीवर सदल कमल कुसेसय जाति । निसिमुद्रित प्रातहि वे कुहुकुहाना—किं० अ० [सं० कुहू = कोयल की अवाज] १ कोयल या विगत ए बिगसत दिनराति -सूर (शब्द) । मोर का बोलना। कान के अंदर पानी जाने से हुलकी कुसेसे, कुसेस –सा पुं० [सं० फुशेश्य दे० कुसेसय' । उ०— सुरसुरी या खुजलाहट होना । (क) फूल फूलि रहे जलज सुदे से । इदीवर, राजीव, कुसेसे । कुहक्के---सज्ञा पुं० [सं०] ताल के साठ भेदो में से एक । इसमें दो -नद० ग्न ०, पृ० ११६। (ख) कुसल रहैं वे केस कुसेसे नैनि द्रुत और दो लघु मात्राएँ होती हैं । सुघारे ।—दीन० २ ०, पृ० ६७ । । कुक्कडा सज्ञा स्त्री० [हिं० कुहफना भयवा से० कुह्वान = फर्कश कुस्टि, कुस्टी--वि० [सं० कुष्ठिन्] दे॰ कुष्ठी' । उ०—(क) ध्वनि] पुकार । कूकना । मावाज। उ०—-दान” वावा बाहुन बैल कुस्टि कर भेसू ।—जायसी ग्र०, पृ० १६० 1 (ख) देसउ, वाँणी जहाँ कुवाँह । अाधी रात कुरुक्का, ज्यच ।। | कुस्टी अग कठ विष वाँध ।-चित्रा०, पृ०, १९ । माणस गुवाह।-ढोला० ० ६५५।। कुस्तबरु–सम्म पुं० [स० कुस्तम्] धनियाँ का बीज । कहन-वि० [सं०] ईष्य करनेवाला । २ मक्कार । धोखेबाज । कुस्ती-सहा लो० [हिं०] दे॰ 'कुश्ती । कुन--सच्चा पुं० [सं०] १ चूहा । मूसा । २ मिट्टी का वर्तन। कुस्तु बरी-सच्चा ज० [सं० कुस्तुम्बरी धनियो । ३. शीशे का बर्तन । ३ सप । कुहना-क्रि० स० [स० कु+हुनना= मारना] मारना । बुरी तरह से कुस्तु बरु-सच्चा दे॰ [सं०] धनियाँ । मारना । उ०—पाहि हुनुमान ! कनुनानिधान राम पाहि । कुस्तुभ-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ विष्णु। २ समुद्र । सागर [को०] । कासी कामधेनु कालि कुद्दत कसाई है ।—तुलसी ॥ ०, कुस्थानी(५:१-सा • [फा० खुशहाली प्रसन्नता की स्थिति। पृ० २४५।। खुशी की हालत । उ०—-वाग। वादिस्याँहा के कुख्याली वादिस्याहा के स्याना का कहना–सम्रा पुं० [अनु० कुछ = फोफिल की बोली] गाचा । कटना कुगारा।शिखर०, पृ० १६ ।। अलापना । उ०—अषु व्याघ को रूप धरि कुही कुरगह कस्सा--सज्ञा पुं॰ [देश॰] कुदाल । राग । तुलसी जो मूग मन मरे पर प्र म पय दाग ।-तुलसी कृहुंचा--सज्ञा पुं० [सं० फफोण हि० फोहनो,] कोहुनी } पहुचा। (शब्द॰) । कधाई । उ०—-मुच्छा उमेद चमड़े पैठत कठिन कर कुइँचोद कुना--वि० [फा० कुहन, 1 जी । पुराना । बेकाम का [को॰] । की ।—पपा कर म ५ पृ० १६ । कुना–सच्चा भी० [सं०] दे० 'कुनिका (थो०)। कुइ---सा पुं० [सं०] १. कुवेर । २छली या फरेवी व्यक्ति (को०)। कुनिकासा • [सं०] १.स्वार्थसिद्धि के निमित्त घानिक इस हक'--सा पं० [सं०] १, माया । घोबा । जाले । फरेब । २,मृदं । पूजा का दिखावा । ३.ढोग । पाप । दम को॰] ।