पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४९९

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हुकनी कुहारा७-१०--(%) इदि मन यो ३५ जलशिय के किनारे कुहरी दी, हरे नीले पनो का घेरा था ।कुन–दा बी० [सं० फफोणि, १० फणि १ हाय और वाहू अपरा, पृ० १६१ ! के बड़ी हड्डी । उ०—किसी को चुटकी, किसी को कुहनी कुहलि-सज्ञा पुं० [सं०] पान की पत्ती कि०] । किज़ी को ठोकर निपट लड़का |--नजीर (शब्द॰) । २. कुहसार- सच्चा पुं० [फा० कोइसार] १ पर्वन् । पहाड । २. उपत्यका। ढवे या पीतल की बनी हुई टेढी नली जो हुक्के की निगाली घाटी (को०] । १ नगाई जाती हैं। कुहाँ- सज्ञा पुं० [हिं० कुम्हार दे० ' कूर' ।। कूटनीउडान--सुज्ञा स्त्री० [हि कहनी’ उड़ान] कुश्ती का ए पंच कूहा-मुघवा स्त्री० [सं०] कटुकी नाम की औध (को०) । जिनमे फुरती से कुहनी के झटके से प्रतिद्वद्वी के हायों को कुहाउG-सञ्ज्ञा पुं० [सं० कुठार, प्रा० कुहाड] दे० 'कुहारा' । उ०पकड़कर उड़ा दिया जाता है। यह पेच ऐसी अवस्था में बाबी म देस; मात्वा सूया एवाहि कवि कुइाह काम में लाया जाता है, जब ऋतिद्वद्वी के दोनों हाथ अपनी सिरि घउ वासउ मझि यहि ।--डोला, दू० १५६ ।। गर्दन पर होते हैं । यो०-कुहनीउडान की टाँग= कुश्ती का एक पेच । जब विपक्षी कुहाड़ा-सच्ची पुं० [हिं० कुल्हाडा सा दौ० कुहाडी कुठार। अपने दोनो हाई वैनाड़ी के कधे पर रखे, तो खेलाडी उनका परशु । उ०—(क) की तोड़ प न द पकडे पाँव स्वान। एक हाथ पकड़कर और दूसरा हाय कुइनी से उड़ाकर अपनी ज्ञान कुहाडा कर्म बन, काटि किया मैदान 1- कबीर सा० बगल में ददा उसी समय अपनी टाँग झोके से उसके पैर में स०, मा० १, पृ॰ २६ । (ख) शब्द कुडाडी सुई साँसौ सुकृत करि किरान । नान नि न कण वइन ने। भु दु । ननु न । मारे कि वह गिर पड़े। तोड़-उडाया हुअा हाथ खेलाडी की त्रि में अड़ा देना और पैर से पीछे की टाँग मारकर गिराना -राम०, धर्मः पृ० १।३।। इन दब का तोड है ! कुंदनीउड़ान की डुव= कुश्ती की एक कुहाना--क्रि० अ० [सं० झोघने, प्रा३ कोहून] रिसाना । नाराज होना । छन । उ०—(क) आप कुहाय मंदिर कडू सिंह पेच ! जब विपक्षी अपने कंधे पर हाथ रखे तव उसको दोनों जान गई गोन |--जयिनी (शब्द॰) । (ख) तुन्ह। कुहाव कुनियो ) उड़ाकर झट उनके पेट में घुसे थीर डाँव से पकड ठेवकै दोनों पैरो को उडाता हुआ गिरावे । परम प्रिय हुई ।-नुलसी (शब्द॰) । इप-सज्ञा पुं० [सं० हू = अमावस्या+प] रजनीचर। राक्षस । | कुहरा-सा पुं० [सं० कुठार [ मी० कुहारि, कुहारी] कुल्हाड़ा। गि । उ०—(क) इद्रिये स्वाद विवस निनिवासर ग्राउ २०–नुन मानव विनोकि मच्च मधुवन आज बुध होत देव, 3 दानव, कुप की -देव (शब्द॰) । अपनपी हारयो । जल उनमे मीन यो वपुरी, पाउँ कुहार कुहवर--सुधा पुं० [हिं० मोहव] दे॰ 'कोहबर' । मारयो ?--सूर ( इब्दि०)। (ख) विरह कुरो सुन बहैं। कुहर'-सा पु० [२] १ गड्डा । गर्त । २ विभ । छेद । सुराख ! घाव न बधेि रोह 1--कबीर (शब्द०) । (म) कविरा यह जसु - कर्ण कुर।४ कान । ४. गुला। कठ। ५ समीपता। तुन वन भयो करम जो भय कुहारि ।—कबीर (शब्द०)। निकटता ! ६ रतिक्रिया । ७. कस्बर । ८. वातायन । कुहासा-संज्ञा पुं॰ [स० कुडी] फुइ! | कुहेपा । विदको (को॰] । ६ गले का छेद । ६. कुहरा ।। कुहिर--संज्ञा पुं० [हिं०] १० 'कुरा' ।। हर'प्रज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का शिका जो पक्षियों को कुहिरासज्ञा पुं० [हिं० दे०] कुइरा'। पडता है । वल्री । १९९सी पुं० [देश॰] एक प्रकार का पक्षी जिसका मांस खाया कुही-संज्ञा स्त्री॰ [ कु ध= एक पक्षी ] एक प्रकार की शिका चिड़िया जरे वाज से छोटी होती है । कुइर । उ०—(क) बहू | जाता है। ही दाज सिच्चाने संच सुगर लग रगत किरे। --पृ० रा. १ –ता पुं० [अ० कूड वायु में जल के अत्यंत सुक्ष्म फुयी (उ०), पृ० ११६। (ख) नवीर्य नीती निपट दीठि कुडी का ममूह जो ईद पाकर वायु में मिली हुई भाप के जमने से लों दोरि। उठि ऊँचे नीचे दियो मन कुलग भकझोरि ।उत्पन्न होता है। ये जन्नकण पत्तियों और घास पर पड़े र बिहारी (४०)। वडी यही बु ६ प में दिखाई पड़ते हैं । कुही- संज्ञा स्त्री॰ [फा० कोही- पहाडी ] घोड़े की एE जाति । क्रि० प्र०—पड़ना ।। दगिन । ३० -तुरको ताजी कुही देश खारी बनेकी । अरबी मी पु० [अ० कर+अम] १ विलाप । रोना पौटना । एरात्री के पर्वतु। कच्छी बलकी --सुदन (ब्द॰) । अवं नदि । वीवेला । उ०—रनिवास में हमें पड़ गया। कुहु- संज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे॰ 'हे' । ३०-भने इ विद्यापति सुनह लल्लू ( शब्द०)। २. इलचल। उ०-सारे रावी गाँव के अभयति कुकु निकट पनिाने |–विद्य'ति, पृ० ८६ ।। प्राह्मणों में हराम मचा हुआ है।---किन्नर०, पृ० ३६ । कुहुक संज्ञा पु० [अनु॰] पक्षिया छ म गुर स्वर । पुस । प्र०—करना ।---डालना ।—पड़ना ।—-मुचना ।—होना। कुहुकना--क्रि॰ अ॰ [हिं॰ कुक+ना (प्र०) ] पक्ष की मधुर 35पुं० [सं०] ३ छोनि की कुक । २ ध्वनि ! स्वर । स्वर में बोल । कुइकन: । ३०-- फुह कोकिने कुछ * रक्रिया में मुख से निकला बन्द या सरकार (को॰] । रहे थे --सदल मिश्च (द)। कुह-स६ ० म० ऋहेड। हुला कुरा ।