पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४९७

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कुसुम--सा पुं० [ कुसुम्भ, कुनुवक ] १.३० "कुसुद' । २ हनुमत् के मत से मेघ र का एक पुत्र । यह पाइव जाति का राग है और इसके गाने के समय दोपहर है । ३.लात रंग। जैसे--कुनु । कुसुमसुङ्गा पुं० [ल० कृसुभ] एक पौधा जो पाँच छह फुट ऊंचा होता है और जो रबी फसल के साथ खेतो में वीज या । फुनों के लिये दोपा जाता है। बर। । विशेष—यह दो प्रकार की होती हैं एक जगली और काँटेदार, और दूसरा विना काटे का । जंगली कुसुम की पत्तियों को नोकों पर कटे होते हैं और उनके बीच से तेच निकलता है। इसके फूल पीले, लाल, गुलावी और सफेद होते हैं। दूसरी जाति में कांटे नहीं होदे ग्रयेव चुत कम होते हैं। इसके बीजो से तेल और फनी से वढियी लाल रंग निकलता है। इसके फून प्राय पीने या नारगी रंग के होते हैं। कभी कमी बैंगनी या गुलाबी रंग के फून मी पाए जाते हैं। पीले और साल फून याले कुसुम वेत्रो में वीज और फूल के लिये पौर दूसरे रंग ॐ फूलवाले कुसुम वगीचों में शोभा के पिये लगाए। जाते हैं। इसी डालियों के सिरे पर छोटा, गोल नुकीला ढोड निकलता है, जिसपर पतने पतले बहुत से फून होते है। जो पेड फुल के न्निये वोए जाते हैं, उनके फल नित्य प्रति काल चुनें। लिए और छाया में सुखाए जाते हैं, पर बीज के लिये वोए वाते हैं, जो पहले वृक्षों में ही लगे लगे सूख जाते हैं। चुने दुए फूल एक कपड़े में रखकर ऊपर से वार मिला हुआ। जल गिरते हैं, जो पहले तो पीला होकर निकलता है, पर पीछे चार अादि मिलाने से वह लाल हो जाता है। इनका वीज झोल्हू में डालकर पेरा जाता है और उससे जो तेल निकलता हैं, वह खाने, जुलाने शोर शरीर में लगाने के काम में अाता है । वैद्यक में तेल को दस्तावर माना है इसके सिवा यह कई वैरह से पधियों में काम आता है और इससे मोमजामा मी वनता है। कुसुमकामुक-सज्ञा पुं० [सं०] कामदेव । कुसुमकु तला-सच्चा स्रो० [स० कसुम +फुन्तला] वेणी मे पुष्प लगाने । वाली स्त्री । ३०-नदन की शत शत दिव्य कुसुमकुतला।। -हर, पृ० ६६। संवा स्त्री॰ [स० फसुमदल] फले । ५खरी या पत्ती । पुष्पदल । उ०—कलि कुसुमदलि भौतरि जाता,दश अगुलि। के बीच समाता - प्राण ०, पृ० ६३ ।। सूमववा-सी पुं०[ सुं० कुसुम +घन्ने दे० 'कुम्याए । मप'च---० ० [सं० फसुमपञ्चक] कमल, अशोक, अग्नि, नवमल्लिका और नीलकमल ये पाँव फल कामदेव के वाण में कहे गए हैं ० । कुसुमपल्ली-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पाटलिपुत्र। पटना नगर । ३. रजस्वला स्त्री (ले०]} ३५मपुर-सा पुं० [सं०] पाटलिपुत्र । पदन। का एक प्राचीन नाम । सुमबाण-सुद्धा पु० [सं०] कामदेव । मदन को॰] । कुसुमरेणु-सा पुं० [सं०] पराग । पुष्परेणु । सुमित कुसुमविचित्रा--सज्ञा लो० [सं०] एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण मै गुण, पण, नगण, वगण का क्रम होता है। जैसे-नयन यही ते तुन वदनामा । हरि छवि देखो किन बसु जामा । अनुजसमेत जनक दुलारी । कुमुमविचित्रा कर फूलवारी । कुसुमार-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'कुसुमवाण' [को०] । कुसुमसर -सञ्ज्ञा पुं॰ [स० कुसुमार] घामदेव । उ०-बचने अगोचर चरितु अति, नमो कुमुमतर देव --ब्रज० प्र०, पृ० ९६ । कुसुमसायक- संज्ञा पुं० [क्ष०] दे॰ 'कुसुमबाण' [को॰] । कुसुमभस्तवक-सच्चा पुं० [स०] दइक का एक भेद जिसके प्रत्येक पद मै नौ या नौ से अधिक सुगण होते हैं। जैसे---भजिए हर को हर को हर को हर को हर को हर को हर को ।। कुसुमाजन--सञ्ज्ञा पुं० [सं० कुसुञ्जिन] जिस्ते का भस्म । कुसुमांजलि -सच्ची ली० [ वि० कुसुमाञ्जलि ] १, फून के मरी हुई अजली । २ पोडशोपचार पूजन में अतिम उपचार जिसमे देवता पर हाय की अजुलि में फूल भरकर चढ़ाते हैं । पुष्पा जलि । ३ न्याय का एक ग्रंथ जिसे उदयनाचार्य के बनाया है। कुसुमाउ हु}---बी० पुं० [सं० कुसुमायुघ, प्र० कुसुमाउह ] ३० ‘कुसुमायुध' । उ०—-तसु दिन भोगी सरा, वर मोग पुरंदर । हुअ हुग्रासन तेजिक ति कुसुमाउँह सुदर --कीवि०, पृ० १० । कुसुमाकर--सा पु० [सं०] १ वसूत । २ छप्पय का एक भेद जिसमे ६ गुरु और १४० लघु अर्थात कुल १४६ वर्ण या १५२ माए अथवा ६ गुरु, १३६ लघु, कुल १४२ वर्ष या १४६ मात्राएँ होती हैं। ३ वाग। बगीचा । वाटिक; । उ०-अरु फुलि रहे कुसुमाकर मैं से कहू पहचान की वास नहीं - घननद, पृ० ६६ । कुसुमागम-संज्ञा पुं० [सं०] वचत । कसमादपि–क्रि० वि० [सं० कुसुमात् +अति] फूल से भी 1 शु०-- | वह शोभा पात्र नहीं कुसुमादपि मृदुल गात्र ।---ग्राम्या, पृ० २० । कुसुमाधिप, कुसुमाधिराज–सा पु० [३०] १ चम्पा का वृक्ष २. चपा का पुष्प (को०] । [सं०] कामदेव । ई०-- प्रियवर'। मैं तवे हृदय कुसुमायुधसभा पु० [मं०] कामदेव । ई०- fयव' ।* की नहीं जानती बात । सतापित करता मुझे कुसुमायुध दिन रातृ l-शकु०, पृ० १३ । कुसुमाल--सी पु० [सै०] चोर । कुसुमावचाय-सच्चा पुं० [सं०] पुष्पो का चयन । फूलो झा | चुनना [को०] । कुसुमावतंसक-- पुं० [स० कुसुम + अवतन्सक] फूलो छ। गजरा। २. कुसुमाभरण (को०] । कुसुमावलि सम्रा सी० [सं०] फूलो का गुच्छा । फूलों का समूह । कुसुमीसवे-सा पु० [सं०] १. फूल का रस । मकरंद । २. मध । पुष्पमधु । कुसुमित---वि० [सं०] फुली हुन्न । पुष्पित । कुसुमल-सुवा स्त्री॰ [सं० फुसुमदल!