पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४९६

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कुशिक १०१३ से यह विदित हो कि कुणिक व श के द्वारा उनके वश में कुश्ती सद्या पुं० [फा० फुश्तह] १ वह गम म जो धातु ग्रो फो रासा• क्षत्रिय धर्म का सचार होगा, तब उन्होने कुशिक वश फो। यनिक क्रिया में फेंककर उनाया जाय 1 नम्म । जैसे–अवरक भस्म करना विचार र वे राजा कुशक के पास गए । का कुश्ता। चोदी को फुनो । सोने का कुना । ३ व जो वहत दिनो तक अनेक प्रकार के कष्ट देने पर भी जब राजा मार डाला गया हो। नि हुन । ३ लाश । मृत शरीर (को॰) । और रानी मे उन्होने शाप देने के लिये कोई छिद्र न पाया कुश्ती-सच्चा स्त्री॰ [फा०] दो प्रदभित्रों का परस्पर एक दुमरे को तब उन्होने प्रसन्न होकर राजा कुशिक को वर दिया कि । उलपूरक पाउ7 या वेटर ने के लिये लहा। मरल युद्ध। तुम्हारा पौत्र जाह्मणत्व लाभ करेगा । पकड। ३ कुशिक व श फी पुरुप । ४. हल की कुसी । फाल । ५ बहेडी। यौ० कुइनोवा को=कुश्ती लड़ने वाला । ६ साल । साखू । ७. तेल की तलछट। कि० प्र०-लड़।।--जीतना ।—छारना ।---करना |---:ोना। कुशिक--- वि० [सं०] जिसकी असे टेढ़ी मेढी हो । ऐचाताना । मुहा०—कुश्ती में बढ़ रना= कुश्ती में जीत होना । कुश्ती कुशित-’ि [सं०] जल मिला हुआ । जनयुक्त (को०) । बराबर रहना या छूटना= कुश्ती में किसी का न हरिन । कूशिवा --सपा जी० [सं० कु + शिवा ] अमगले सूचित करनेवाली दोनों पक्षों का परापर रहना । कुश्ती मारना= कु । जीतना । | सियारिन । उ०—मुख पे उलका लए फिरति हैं कुशिवा कुश्ती में दूसरे को पछाना कृती बदना= कुशव नडने फारी ।- श्यामा०, पृ० ५।। का निश्चय करना । कश्ती मगना = (किग्दी को) ग्र ने कुशी-संज्ञा पुं० [सं० कुशिन्) १ वह जिसके हाथ में कुश हो । साथ कुश्ती लेने के निये कहनः । कुश्ती लड़ना=(किमी कुशवाला या कुशधारी व्यति । २.वाल्मीकि कृप । को) शिक्षा देने के लिये (उसमें) लडना। कुश्ती शीना - कुशी-वि० १ कुश का बना हुआ । ३ जल से युक्त [को०] । कुश्ती में हर जाना । कुश्तप्रकृश्ना= मुठभेड़ । लडाई । कुशी--संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ हल की फाली । २ एक प्रकार की दव। कुश्तीबाज–वि० [फा० फनीन] कुश्ती चुड़नेवाला । उता । कुशीद--सपा पुं० [सं०] दे॰ 'कुसीद' ।। | पहनवान ।। कुशीनगर--सबा पु० [सं०] ३० कुणीनार' । कुश्तोखून-मेघा पुं० [फा०] खूनखरा । भार फाट । ग्यत: कुशीनार- सच्चा पुं० [सं० फुगनगर] वह स्थान जहाँ साल वृक्ष के | पात । (को०] । नीचे गौतमबुद्ध की निवड हुअा था। यह स्थान गोरखपुर कुपन वि० [सं०] १० कुशन' [को०)। जिले में है और इसे अाजकल कसया कहते हैं। कुपाकु–सच्चा पु० [सं०] १ सूर्य । दिनकर । २ अग्नि । प्राग। कुशीलव--सज्ञा पुं० [सं०] १ कवि । चारण । २ नाटक खेलने ३ वानर । वदर 1 कपि [मे०] । बाला । नट) ३ गवैया । ४ वाल्मीकि ऋषि का एक नाम । | कुपाकु'–वि० १ जलता हुआ तप्त। २ बुरा । खराव । घुणित ५ वातप्रसारक । संवाददाता (को०)। ६ गप्प हुकनेवाला कौ०] । व्यक्ति (को॰) । कुषित-वि० [सं०] जलमिश्रित । पानी मिना दृप्रा ली।। कुशु भ-सा पुं० [सं० कुशुम्भ] १ सन्यासी फी महलु । २ जल कुपीतक–सच्चा पुं० [सं०] १. एक ऋषि का नाम । २ एक पक्षी । का पात्र (को०)। कुपोद'—सूझा पुं० [सं०] ३० फुसीद' (वे] । कुशुल–सा पुं० [सं०] १ अन्न रखने का घेरा । कोठला । कोठार।। कुषीद-बी तटस्थ । उदासीन (को॰] । | डेहरी ।। कुप म--संज्ञा पुं० [सं० कुषुम्भ कीड़ो की वह थैली या कोश जिसमे यौ०–कुलघान्य । कुलघान्यक। उनका विष रहता है । ३ तुपारिन् । ३ कड़ाही । ४ एक राक्षस । ५ वी पीड़ा । कुष्ठ-सच्ची पु० [सं०] १ फौढ़ ३ फुट नामक अपधि । ३ कुड़ा बुरा दर्द।। नाम नी । ४ नितंत्र का गड्ढा (को॰) । कुशुनधान्यक-सा पु० [सं०] गृहस्थो का एक भेद । वह गृहस्थ कुष्ठकेतु-सी पुं० [सं०] भूई' खेबसा नाम की लता । मार्क डिका । जिमके पास तीन वर्ष तक के लिये खाने भर को अन्न । | भुम्पेल्यि । । सचित हो। कुष्ठगधि-सा ही० [सं० फुगठगन्ध) एनुप्रा । कुशेश--सझा पु० [सं० कुशेशय] ३० 'कुशेशय' । कुष्ठन-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] हितावली नाम की प्रोष । कुशेशय - सच्ची पुं० [सं०] १ पद्म । कमल । २ सारसे । ३ कक कुघ्नी --सच्चा स्त्री० [सं०] कठूमर । कोदु बरिका । | चपा । कनिम्ना हो । ४ कुशद्वीप का एक पर्वत। कुष्ठनाशन--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] क्षीरीश नामक वृक्ष (को॰] । कुशोदक----सज्ञा पुं० [सं०] (दान आदि के लिये हाथ में लिया । कुष्ठसूदन सझा पुं० [H०] अमलतासि ।। | इ) कुरा मिल जल । कुष्ठहता--सज्ञा पुं॰ [सं० कुष्ठन्तु] हस्तिकंद नमक ग्रोपधि (को०)। कुशोदकामक्षा स्त्री० [सं०] एक देवी का नाम । कुष्ठत्री - संज्ञा स्त्री० [सं० कुष्ठन्त्री बकु (को॰] । कुश्तमकु -सद्मा पु० [फा० कुश्ती] उठापटक । गुत्थमगुत्या । कुष्ठहृत्-सा पुं० [सं०] १ खैर का पेड २ वि इखदिर' । ३। कुश्दी । मुठभेड़ । लाई । | कुष्ठनाशक ।