पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४९५

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कुष्ठी सवारी ४१५ । कुठा- सुज्ञा स्त्री० [सं०] टोकरी का में है। कुसयारी -संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'कुसवारी' । कटारि-ज्ञा पुं० [सुं०] १. अंकपत्र । १. धके । ३ परवल । कुसर--सन्न पु० [देश॰] पानवेल या मुस। नाम जुता की जड़ कसर'.-सज्ञ प० f o} पानवेल | tr: जो दवा के तौर पर काम में आती है। कठी-सज्ञा पुं० [सु० कुष्छिन् । [ली० कुष्ठि] वह जिसे को हुआ कुसर -वि० [ स० कुशल ] ३० ‘कुशन' 1 उ०---तुमरी कुरा | हो । कोढी । कुमर मृदा ब्रज मैं नित है हो ।-धनद, पृ० १६३ । कूदमन-सी पुं० [सं०] १ कर्तन ! काटना। २ पत्र | पत्ता किो॰] । यो०--कुसरखेम = कुशलक्षेम । उ०—–ब्रज में कुतरतेम ती कुष्मा • मुज्ञा पु० [सं० कुष्माण्ड ] ६. कुन्डा । २ एक प्रकार के अाहि । कारन कवन कहह किन वाहि १–नद० ग्न ०, पृ० देवता जो वि के अनुचर हैं । ३ जरायु । गर्भग्थनी ।। ३१६ ।। प०-कुरमाड नवमी = कार्तिक शुक्ल नवमी । इस दिन कुम्हरे कुसरात --सच्ची श्री० [ हि० कुशलत] ३० 'कुशलात' । उ०— | में स्वर्ण आदि रखक' दान करते हैं । चाहे निरबाई नित हित कुसात की। घनानद, १० ६२। कुष्माइ- सुज्ञा पुं॰ [H० कुष्माण्इक ] दे॰ 'कुरुपांड' (को॰] । कुसरो(५--वि० [म० कुशलिन् ] ३० 'कुश ?"। उ०-गोवरधन कुम्माडीसुज्ञा स्त्री० [सं० कुष्माण्डी] १ पार्वती का नाम । २ एक । | को मूरति दुमरी। श्री गोविद द हित कुस ।-नद० प्र०, ऋचा । दे० 'कुष्माडी' । ३ यज्ञ में प्रयुक्त क्रिया वा कार्य । १० ३०६।। ४ का६ि । कुम्हडी (को०)। कुसल 91--वि० संज्ञा पुं॰ [सं॰ कुशल दे० 'कशन'। कुमा- संज्ञा पुं० [स० कुसङ्ग] बुरे लोगों का साय 1 बुरी सोहबत । कु मलई-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० कुशल +ई (प्रत्य॰)] निपुणता । ३०-उपजइ बिनसई ज्ञान जिमि पाइ संग सुसग ।—मानस, चतुराई । उ०-जो कहू सिखई बाहि सुनैनी कला कुसलई सारी । तो मनुजन को कौन चलाई मोहित होय चतुरन्जकेयुगति--ज्ञा स्त्री॰ [ सं० कुसङ्गति ] चुरो का सग । बुरे लोगों के घारी ।--प्रताप (शब्द॰) । सवि उठना बंठना । उ॰--को न कुसमवि पाइ नसाई । कुसलछेम कुसलछेम-सज्ञा पुं० [हिं०]दे० 'कुशलक्षेम' । —मानस, २३४।। कसलाई)---संज्ञा स्त्री० [सं० कुशल, हि० फुसल + प्राई (प्रत्य॰) । सस्कार--सज्ञा पुं० [स०] अ तु.कृरण में अयथार्य या निषिद्ध वात १ कुशलता। निपुणता। २. कुशलक्षेम । पैरियत । शानद का प्रभाव जिससे बुद्धि ठीक निश्चय न कर सके या मन अच्छे मगल । उ०—-सिक राउ लिए उर लाई । केहि असील पूछी कामों की अोर ने बाप । चित्त में बुरी बातो कई जमना। कुसलाई !-—तुलसी (शब्द०)। दु संस्कार। कुसलात---सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'कुशलत' । स-सज्ञा पुं० [सं० कुशा] दे॰ 'कुश' । उ॰—दुरवाता दुरजोधन कुसलायत --संज्ञा स्त्री० [हिं० कुसल + प्रायत (प्रत्य॰)] दे० पट्यो पाइव अहित विचारी । स क पत्र ले सबै अघाए न्हात ‘कुशलता', 'कुशलते । उ०—तन कुसलयत तुणी बालम | भजे कुसे डारी - सूर०, १ । १२२ । पूछ वात ।--बाँकी० ग्र०, भा० ३, पृ० ३५ । सगुन- संज्ञा पुं॰ [सं० कु+हि० सगुन] १. बुरा मागुन । असगुन । कुसली)'---संज्ञा स्त्री० [सं० कुछ ती दे० 'कुशल' । | कुलक्षण । उ•--कुसगुन सो अवघ अति सोकू । —तुलसी कूसली+-सज्ञा पुं० [हिं० कसली अथवा सं० कोश = आवरण, खोल ( शब्द )। + हि० ली (प्रत्य॰)] १. अाम का गुन । २. एका पकवान सब्द -सज्ञा पु० [सं० कुशव्द। बुरे शब्द ! उ4-३जहु कुसब्द जो आम की गुठल! क अकार का होता है और जिसक अ दर वालु सुभ वानी, अपने मारग चलिये। जग० वानी, पृ०२४। मीठा पूर या कूरा भरा रहता है । गाझा । पर।। सन्न पुं० [सं०] १. बुरा समय । २. वह समय जो किसी कुसवा सज्ञा पु० [सं० कुछ जड़ हुने का एक राम, जिसमें उसके प कार्य के लिये ठीक न है । अनुपयुक्त अवसर।। पोले पड़ जाते हैं, और उन छ। रग खंर के एसा लाल है। मागे या पीछे की समय ।४, सकट झी समय । दु ख के दिन । जाता है । वैरा । ५- संज्ञा पु० [सं० कुश्मल | ३ कश्मन' । उ०—सफल कुसवारी-सज्ञा पुं० [सं० कृच्चि = हि० सवारी (प्रत्य॰)] १. रेशम भुवन सव अात्मा, निविप करि हरि लई । पइदा है सा दूर का जगवी * ॥ बर और पियसाल यादि प ५१ छाय। रि, कुसुमल रहण न देई-दादु०, पृ० ४५२।। दनाकर उसके ५ दर रहता है। ५H५-१३। पु० [सं० कू+समज वुर। समाज । बुवा विशेप-इस कीड़े के जीवन म चार अवस्थाए la} हैं, जिन्; ६। ३५ या सोबत । उ---बिगरी जनम अनके को सुधर युग कह सकते हैं । सव के पहले यह भ ड के रूप में रत। * अजु । हाइ राम की, नाम जपु तुलस; af है। अ ३ से निकलकर यह कामलों की तरह फ का कुमाजु ।---तुलस ग्र०, १० ८८ ।। हो जाता है । फिर उसमें पञ्चावरण दिखाई पड़ते हैं । य३ 11गे इनका 13। है । म त म ८ ' को सेन६८ मद१ । ५८५६न्द।। ३०व: ५० १० सुम। ६-४ अ५ If ३दन, मोह चढ़ मान । जाल पि फतिंगा है।क्षर उदने लगता है। मई id: ६ र भर सम५, नु, मन चाहति प्रान {--विज०, ३५ } । ६ । जिने का काम चार अपार । १३ पो ११५ -१३३: ५० [सं० [सुम का