पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४९४

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कृवाच्य १०१० कुशपत्रक कुवाच्य----वि० [सं०] जो कहने योग्य न हो। गदा । वुरः । घनद ! राजराज । धनाधिप । किन्नरेश । वैश्रवण । नर वाच्य-सज्ञा पुं० कठोर शब्द । दुर्वचन । गालीं । वाहने । यज्ञ । एकपिंग । ऐलविल । श्रीद । पुण्यजनेश्वर । कुत्राट'--सज्ञा पुं० [सं० कपाट] किवाउ । दरवाजा । (डि०) । हर्यक्ष । अलकाधिप ।। कुवाट-सज्ञा पुं॰ [सं०] दरवाजे कर पल्ला (को०] । | ३ जैन मत में वतमान अवसपिणी ( कालगति ) के १९ वें कुवाण-सुज्ञा पुं० [सं० कृपाण] घनुप ।—(डि०) । । । अर्हत् का एक उपासक । ३ तुन का पेड। कवी--वि० [मं०] परनिंदक । नीच । निम्न कोटि का [को०)। " कुवेर-वि. १ बुरा । खरन । ३ बुरे या वेढगे होठवाजा (को०) । कुवेर -वि. १ बर ! खर । व Tr; कवार--सज्ञा पुं॰ [स० अश्विनी = कुवार][ वि० कुवारी ] याश्विने कवेराचल--सज्ञा पुं० [सं०] कैलास पर्वत का एक नाम । का महीना । मसोज । उ०—ाई सरद रितु अधिक पियारी। कवेराद्रि-संज्ञा पुं० [सं०] कैलास पर्वत । नव कुवार कानि, उनिअारी --जायसी ग्र०, १० ३५० । कुवेल - संज्ञा पुं० [] प प । कमल ! पद्म [को०] । कूवार-सज्ञा पुं० [सं० कुमार] कुमार । पुत्र । उ०--फिर वदनेस कुव्वत-ज्ञा स्त्री॰ [ अ० फव्वत 1'६० कुवत' । उ०—-पं इत कहे। कुवार विमसु फनै पनी, गैठे इकले जाइ करन मसलति मली। | माई मौत गई कुव्वत अकल की ।—दखिनी०, पृ० ४७ । --सुजान, पृ० १२ । कुशडिका–सज्ञा स्त्री० [सं० कशद्धिका] दे० 'कुशकडिका' । कुवारी–वि० [सं० कुमारी जिमका विवाह न पा हो । कुमारी । कुश'. संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० कुशा, कुश] १ काँम की तरह की २ ३०–सुरनि कुवारी कन्या ईसा से ग पाहिये ।--कवीर श०, ' एक पवित्र रि' प्रसिद्ध घाम । दाभ । इमि । बमं । ३०--- । कुश किसलय साथी सुद्राई । प्रभु सुगे मजु मनोज तुरई।भा० ४, पृ० ५ । । तुलसी ( शब्द०) कुवारी–वि० [हिं० कुवार] कुवर के महीने में होनेवाला 1_कुवार विशेप--इसकी पत्तिय नुकीनी, तीखी और कही होती हैं । का । जैसे--- कुवर फसल । कुवारी घान । प्राचीन का में यज्ञों में इसका बहुत उपयोग होता था। इसकी कुवासना- सल्ला स्त्री० [सं०] दुष्ट इच्छा । बुरी इच्छा । रस्सियाँ ईधन लपेटने, जुआ वमने अादि कामो में अती थीं। कुबाहुल--संज्ञा स्त्री० [सं०] ॐन । उष्ट्र (को०) । । अवे भी कुश पवित्र माना जाता है और कर्मकार्ड या तर्पण कुविद-सज्ञा पुं० [सं० कुवि द] जुलाहा। कोरी । , आदि में इसका उपयोग होता है । कुविचार-सज्ञा पुं० [म०] दृष्ट विचार । वुर। विचार ! . पर्या० - कु छ । दनं । पवित्र । यज्ञिक । वह । ह्रस्वगर्भ । कुविचारी--वि० [सं० सुविधरिन्] [स्त्री० फुविचारिणी]. बुरे विज़ार कुतुप 1 चम् । | वाला । जिसके विर बुरे हो । • २ जन । पानी । ३ एक राजा जो उपरिचर वसु का पुत्र था । कुविसन--संज्ञा पुं॰ [सं० कु +व्यसन] बुरा व्यसन । बुरी अदित् । ४ रामचंद्र का एक पुग्न ! ५ पुराणानुसार सात द्वीपो में से एक पाप १ म । उ०-- कुविसन कर कुसंगति जाइ । खोवे ,दा. द्वीप । ६ वलाकाश्व का पुत्र १७ फाल । कुसिया । कुसी अमल व दु खाई । - २६०, पृ० ३२।। कुवेणा–सद्या स्त्री॰ [सं०] १० 'कुवेणी' [को०] । कृश-वि० १ कुत्सित । न च । २ उन्मा । पागल । कुवेणी - संज्ञा स्त्री० [सं०] १.तुरत पकड़ी गई मछलियों के रखने की, कृशकडिका–संज्ञा स्त्री० [ स० कुशकण्डिका ] वेदी पर या कु उ मे टोकरी । मछन रखने की डलिया । ३ बिना तरीके बँधी हुई अग्निस्थापन फरने की अनुष्ठानिक क्रिया, जिसका विधान वे । सिर के बेतरती के गुच्छ [को०)। ऋग्वेदि, यजुवें दिया और सुमिवेदियो के लिये भिन्न भिन्न है। कुवेर-सज्ञा पुं० [सं०] १ एक देवता, जो एद्र की नौ निधियो से इसमें होम करनेवाला कुशासन पर बैठ दाहिने हाथ में कुरा ‘भडारी और महादेव ही के मित्र समझे जाते हैं। लेकर उनकी नोक से वेदी पर रेखा खीचता जाता हैं। विशेप---यहू वियन ऋवि के पुत्र और रावण के सौतेले भाई कुशकेतु-संज्ञा पुं॰ [सं०] १. ब्रह्मा । २ राजा कु ज । थे । इनकी माता का नाम इलवित था। कहते हैं, इन्होने कुचीर-सज्ञा पुं० [सं०] कुश का बना है। वस्त्र (को॰) । विश्वकर्मा से लकवावाई थी 1 पर जब रावण ने इन्हें वह कुशद्वीप-सज्ञा पुं॰ [सं०] पुराणानुसार मान द्वीपों में से एक, जो से निकाल दिया तव इन के तपस्या करने पर ब्रह्मा ने इन्हें । चारो शोर घृननमुद्र से विर है । देवता बनाकर उत्तर दिशा का राज्य दे दिया पर इद्र का कुशवज---संज्ञा पुं० [सं०] १ ह्रस्वरोम राजा के पुत्र और सीरध्वज भडारी बना दिया । यह समस्त ससार के स्वामी समझे । जनक के छोटे भाई 1 इनकी कन्याएँ मौहबी प्रौर श्रुतकीति जाते हैं। इनके एक अखि तीन पैर और छठ दाँत है । देवता । भरत और शत्रुघ्न को ब्याही थीं । २, एक ऋवि जो वृहस्पति होने पर भी इ7 का व ही पूजन नहीं होता । मोई कोई इहे। के पुत्र अौर वैदवती के पिता थे । पुलस्त्य ऋषि का भी पुत्र बतलाते हैं । कुशन-संज्ञा पुं० [अ०] मोटा गद्दा । यौ०.---कवेराचल । हुवेद्रि । हुवेर दिशा = उत्तर दिशा । कुवेर- कुशाभ-सज्ञा पुं० [सं०] अयोध्या के राजा कुश का पुत्र । वाघव = शिव । कुशप-सज्ञा पुं० [सं०] जल पीने का पात्र । पर्या०--ॐ यवकता । यक्षराज । गुह्यकेश वर } मनुष्यधम । । : कुशपत्रक-सज्ञा पुं० [सं०] फोडी चीरने का एक मोजार (वैद्यक) ।