पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४९३

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कुपुष्प कुशस्यल-संज्ञा पुं० [सं०] उत्तर भारत के ए छ म्थान का नाम जिसे कुपुष्पमुद्दा पुं० [सं०] ग्रुपूर्ण ०] । संभवत कन्नौज कहते हैं ।। पुष्प -- पुं० [स०] एक प्रकार का विप (को०)। कुशुप्लवन- सवा पुं० [सं०] एक तीर्थ जिसका उल्लेख महामरितु में कुशस्थली–सुज्ञा स्त्री० [सु०] १ द्वारिका का एक नाम । २. कुशावली अाया है । नामक नगरी जो विध्य पर्वत पर बी और जहाँ रामचंद्र जी कुमुद्रिका-सच्चा भी० [सं०] कुश की बनी हुई अँगूठी । पवित्री । के पुत्र कुश राज्य करते थे। पैती । उ०—कुण मुद्रिका समिधे छ वा कुश को कमेडल को कुशहस्त--वि० [स०] श्राद्ध, तर्पण यो दानादि करने के लिये उद्यते । लिये --केशव (शब्द॰) । कुशागुरीय-संज्ञा पुं॰ [सं० कशाङ्ग,रीय ] कुश की वन अँगूठी । पैती कुवायु–स्वा पुं० [म०] पानी पीने का बरतन 1 अविवार (वै]। पवित्री [को०] । * '–वि० [नु०] [स्त्री० कुशला] १ चतुर । दक्ष । प्रवीण । कुशागुनोय-सा पु० [स० कुशां.लीय] कुश मुद्रिका । पवित्री को॰] । ३०-पर उपदेश कुशल वइतेरे-तुलसी (शब्द॰) । २ कुशाव-सच्ची पुं० [सै० कुशाम्ब निमि वंशीय राजा कुवा फा पुत्र थंः । यच्छा । भव । ३ पुण्यशील । ४ प्रसुन्न । जिसने पिता के प्रदेश से कौशादी नगरी बनाई थी । बुज (३०) । कुशावु-सुवा पु० [सं० कुशम्बुि] १ दे० 'कुगाव' । २ कुश के अगले कुा -सा पुं० [मुं०] [० कुशला, कुशनी] १ ले म । मंगल ! | भाग से टपकना हुआ पानी ।। वैरितु ! रात्री स्खुशी ! उ--प्रव कह कुशन वानि कहें कुशा--सच्चा स्त्री० [सं०] १ कुश । रस्सी । ३ एक प्रकार का अह । दिर्हसि वचन अंगद ग्रह कई!--तुलसी (शब्द॰) । मीठा नीबू । ३ लगाम । वल II (को०)। ४ लकडी का टुकड़ा। योः–कुन्दन । कुशलमंगल } काष्ठखंड (को०) । २ वह चिमके हाथ में कुरा हो । ३. शिव का एक नाम । ४ कुशाक -- संज्ञा पुं० [सं० फुश +कार] पज्ञ की अग्नि (को॰) । कुश द्वीप का निवासी । ५ गुण (को०) ६.चतुरन्। कुशाक्ष-व्रज्ञा पुं० [म०] वानर । वंदर [वै]। चतुराई (को०)। कुद्यन्त्रकाम--वि० [सं०] कुशल की कामना रखनेवाला। राजीवशी कुशाग्र-वि० [सं०] कुश की नोक की तरह तीखा । तीव्र । तेज । नुकीला । जैसे- कुशाग्रबुद्वि = तीव्र बुद्धि रखनेवाला । चाहनेवार ३० । कुमादगी -- संज्ञा स्त्री॰ [फा०] कॅनाव ! विम्तार । चौडाई । कुशलक्षेम संज्ञा पुं० [म०] १ रा मृी। खैर अाफि ति । । २'दापि [१ या६,J [ता गाद] १. बुना हुग्रा । तासङ्गा जी नु०] १ चतुराई । निपुणता । चालाकी । २ अविरहित । २ विन्तृत । लव नौडा । जुनता । योग्यता । प्रवीणता | ३ क्षेम ! कुरालाई कि०] । मु०-कुशादी करना=( १ ) बोलना । (२) फैनाना । कुत्रप्रश्न-संज्ञा पुं० [सं०] कि पी का कुशन म गर्न पूछना । चौड़ा करना। क्रि० प्र०-- काना--पूछना । कुशादादिल-वि० [फा०] विशाल हृदयवाना' महान् । कुशुम्लु -सज्ञा पुं॰ [सं० कुशलमङ्गल ] दे॰ कुशलक्षेम' । 3|| इस झी० [हिं० कशल कल्याण । क्षेम 1 खैरियत । कुशासिया पुं० [सं०] दुवाँमा पि । कुन । उ०-मेरो कह्य नत्य के नौ । जो चाही वृज की कुशावनी-सच्चा नी० [सं०] रामचंद्र जी के पुत्र हुने फी राजघान । का नाम । कुशलाई तो गोवर्धन मान -सूर (शब्द॰) । कुशावर्त सा पुं० [म०] १. हरिद्वार के पास एक तोय का नाम । faq-वज्ञा दी० [d० कुशल +बार्ता, या सृकशल + हि० अति २ एक ऋषि का नाम । (प्रत्य॰)] कुशल सुनचार। मगल सुमाचार । खैरियन ।। --(क) दन्छ न कछु पूथी कुशला !-नुलसी (शब्द॰) । कुशाश्व - प्रज्ञा पुं० [सं०] इकुयशी एक राजा जिसकी राजधानी (ब) मयुक? ए यो दैलो । भली श्याम कुजलाते सुनाई विशाल यी । यह सहदेव का पुत्र प्रौर सोमदत्त का पिता था। सुन भयो देन !-—सूर (शब्द॰) । कशासन-उज्ञा पुं० [4० TT + सन] कुश का पनी हुमा प्रासन । कुलो'- वि० [कुशलिन्] [स्त्री० कशलिनी] १ कल्याणयुक्त । कुछ छी चटाई ।। सकुदान ! २,नीरोग । तंदुरुस्त । ३ निम्न जा!ि का । छोटी विशेष-शान्य में दान, मैज्ञ, श्राद्ध, इपासना प्रादि के से नय ढि छ: ०] ! कुगासन पर ही वैठने का विधान है ।। ला-सच्ची पी० [सं०] १ अमृत त प्रवेटा नामक वृक्ष । कुशासन-सज्ञा पुं० [सं० कु+कामन] जुर नि । अव्यवस्थित २ नो या अमानी नमक माग । सुदाम्नको । राज्य । अन्यायपूर्वक किया जानेवाला शासन । " पुं० [सं०] एक वृने जो जज ने गोकुन के पास है। शिक-ज्ञा पु० [सं०] १ एक प्राचीन प्रायंत्र । विश्वामित्र जो यारा--मेघा मी० [हिं०] ३० 'कुमुद री' । इसी वश के थे। २ एक राजा जो विश्वामित्र के पितामह वर -सा पुं० [३०] होम करने के पहले यज्ञभूमि या वनकुट और गाधि ॐ निता थे। | चारो झोर कुश बिछाने का काम कुशकफि । विशेप- महाभारत में लिया है कि जुब च्यवन ऋषि को ध्यान