पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४९१

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१००१ कुवाक्य कुल्ली-सी झी० [फा० काकुल, मि० स० कुन्तल] वाल । जुल्छ । कुल्हू-सया पुं० [सं० कुलूत] एक देश का नाम जो काँगडे के पास है। पट्टा । उ०—विश्वामित्र ने अाकर उस यज्ञ की रक्षा के लिये कुलू । । कृतियोंवाला राम मगा।-लक्ष्मणसिंह (शब्द०)। कुल्हैया –सझा जी० [हिं०] ६० कुनहीं'। उ०—नंददास कुल्लुक–सको वृं० [देश॰] एक प्रक र का बसि । वि० ३० ‘वामिनी'। बलिहारी छवि १ वारी नवल पाग बनी नवन कुल्हैया - कुल्लूक-संच पुं० [सं०] अनुसंहिता (मनुस्मृति) के टीकाकार जो नद० ग्रं॰, पृ० ३७३ ।। | दिवाकर भटट के पुत्र थे । कुतूक भट्ट। कुदग-संवा पु० [मुं० कुवङ्ग] सीसा नाम की घातु । कुल्ला पु० [दजीकुल्ल] कंठ। ग्रीवा 1 गला । कुव--संज्ञा पुं० [सं०] १ कमल २. फूल । दुवक-मुझको पुं० [सं०] जीभ पर जमी हुई मैले । जिह्वामल (को॰] । कुवज-सया पुं० [सं०] कमल से उत्पन्न । ब्रह्मा । उ०—भुत मरीचि, कुइया-सा उौ• [हिं॰] दे॰ 'कुही' । उ०-छोटी छोटी नाती कुवज, देव दनुज के तात् । तपत यहाँ परजापती, सहित चीन टुरिया भ्रमबलि जनु प्राई री। वैसी नुनिक कुल्हुइया सुरन की मात --लक्ष्मणमिह (शब्द॰) । तारै देवत अति सुखदाई दी ।--भारतेदु ग्रं॰, भा॰ २, कुवटवि० [स० कु+अत्यं, प्रा. कुबट्ट] कुमागं । खराव रास्ता । पृ० ४३३ । उ०-तिमिर वीर गवने कुवट । त्रिगुन तेज रवि त्रास --- कुल्हे ई–स। श्री॰ [ म० कुलर ] [ौ० कुल्हिया} पुरवा । चुक्कई । पृ० रा०, २५/३०८ । कुव्ही-सच्चा स्त्री॰ [हिं०] दे० 'कुल्हाडी' । उ०—काटि हैं जमदूत कुवत -सच्चा स्त्री० [सं० कुवार्ता, प्रा० कुवा] बुरी बात न कहने कुन्ह, अझै नहिं कोई काम ।-जग० वानी, पृ० ३०।। योग्य अनुचित वात् । ३०-दुल्लव ब्रह्म कुमार, अस कुवत कुल्हा- सुब्बा श्री० [हिं०] दे० 'कुल्हा' । । किम बुझियों -प० रा०, पृ० १६६ ।। कुन्हाईसा पु० १० 'कुल्ड ' । उ० –साखी के कुल्हाड़ अचान, कुवम-संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य । रवि । आदित्य [को॰) । | मनुके दुनिया भर । गरीवदास शाह या हैं व शो प्रवकी कुवर्ष-संम्रा पुं० [सं०] बहुत अधिक वर्षा होना। अतिवृष्टि । चार –वीर में, पृ० १२० । कुवल-संज्ञा पुं॰ [सं०] १ कुमुदिनी । कुई । २. मोती। ३ जल । कुन्हाडा-सा पुं० [सं० कुठार] [त्री० अपा० कुहाडी] एक अौजार, पानी ।४ साँप का पेट (ो] ।। जिसमें बटई ग्रादि पेड़ काटते और लकड़ी चीरते हैं। कुवलय-सझा पुं० [सं०] [स्त्री॰कुलयिनी] १ नीली कोई । ३ कि । कुठार 12fगा । २ नील कमल । ३ भूमंडल । १.एक प्रकार के असुर । विशेप--यह बारह चौदह अगुन लवा और नार छ; अ गुले कुवलयानंद-सा पुं० [सं० कुवलयानन्द] संस्कृत का एक प्रसिद्ध चौड़ा लोहे का होता है, जिसके एक f/रे पर, जो तीन चार अलंकार अथ जिसकी रचना अप्पय दीक्षित ने, जो द्रविण ये, अंगुल मोटा होता है, एक लवा, गोला छे की थी । इनकी समय १७वीं शताब्दी है । व्याप्त का होता हैं जिसमें लकडी का दस्खा लगाया जाता है, कुवलयापीड-सुझा पुं० [सं०] एक हाथी का नाम, जिसे कस ने और दूसरे मिरा पतला, लव और धारदार होता है। कृष्ण को मारने के लिये धनुषयज्ञ के मंडप के द्वार पर रख कुल्हाडेसा ० [हिं० कुल्हाड़ा का बौ• अल्पा० 1 १. छोटी । छोडा था । इसे कृष्णचंद्र ने मार डाला था। कुन्हाड ।। कुदार । टाँगी। २. वसूला( नश० )। कुवलयाश्व-सवा पुं० [सं०] १ धु'धुमार राजा का एक नाम । २ ३' रिसा पुं० [हिं० कुल्हू ] वह स्वान जहाँ ईख पेरने का प्रदर्दन का एक नाम । ४ ऋतुध्वज राजा का नाम । त्तूि चलता है। कोल्हू चलने का स्थान । उ०-चलते ४ एक घोड़ा, जिसे ऋपियो का यज्ञ विध्वस करनेवाले कुल्हार जवे कोल्हून पर चढ़त धाय कोड --प्रेमघन॰, पातालकेतु को मारने के लिये पुराण के अनुवार सूर्पने मा० १, पृ० ४४ । पृथिवी पर भेजा था। * -संज्ञा पुं॰ [हिं॰] दे॰ कुल्हाडा' । उ•- जल पोंडे मैं चहु कुवलयित-वि० [सं०] नील कमलोंवाला । नील कमल युक्त [को॰] । दिभि परयो पात्र कुल्हारी मारी --सुर०, ११५२।। कुवलयिनी--सृज्ञा सी० [सं०] २.नीली कुई' का फूल और पौधा । २ । हावि में कुल्हारा मारना = अपने हाथों अपनी हानि । नीले कमल से व्याप्त स्थान ०] । कवलयी-वि० [सं० कुवलयिन्] १. नील कमल से भरा हुआ कुवलय--सा नी० [६० कुड] छोटा पुरा । छोटा कुन्। वाला (को०)। चुक्कड़ । उ०—तोरे चोच ने कीर तु यह पजर है लो। बुनि बुले कपाट के तजि कुहिया को मोह !-दीनदयालु कुवा कूवाँ-संज्ञा पुं० [सं० कूप, प्रो. कुत्र] दे० 'कु' । (शब्द०)। कुवट-संज्ञा पुं० [स० कु + पाटल] जगनी गुव । हाकुल्दिया में गुड़ फोइन = कोई कार्य इस प्रकार करना कुवा–संज्ञा पुं० [कूप प्र० कुन] दे॰ कुआँ । उ०---[ar है। जिसमें किसी को कानों कान खबर न हो । उ०--सतगुरु अपमपि सागर हुवा, काहे के कारण देता है कुव|-- र बिचारि कहैं, क्या फुल्हुिए में गुड़ फोरना जी -- दक्खिनी, पृ० २२ । कुवाक्य-संज्ञा पुं० [सं०] अयोग्य वात । दुर्वचन । गाली । करना। कौर० के०, १० ४७ ।